श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण का आदेश
1- क्लैब्यं मा स्म गम: पार्थ नैतत्वय्युपपद्यते । हे अर्जुन ! स क्लीवता को न प्राप्त हो, यह तेरे योग्य नहीं है, हे परन्तप ! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर खड़ा हो । 2- मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदु:खदा: । हे कौन्तेय ! शीत उष्ण और सुख-दु:ख देने वाले इन्द्रिय और विषयों के ये संयोग क्षणभंगुर और अनित्य हैं, हे भारत ! तू उन्हें सहन कर । 3- अविनाशि तु तद्धिद्धि येन सर्वमिदं ततम् । जिससे यह सारा विश्व व्याप्त है, उस (परमात्मा) को तो तू अविनाशी जान। उस अविनाशी का नाश करने में कोई भी समर्थ है। 4- अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ता: शरीरिण: । नाशरहित, अप्रमेय, नित्यस्वरु, जीवात्मा के ये सब शरीर तो नाश होने वाले बतलाये गये हैं, अतएव हे भारत ! (तू इनकी चिन्ता छोड़कर) युद्ध कर ! 5- हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् । (धर्मयुद्ध में) मरने पर स्वर्ग की प्राप्ति होगी और जीत जायगा तो पृथ्वी का (राज्य) भोगेगा, अतएव हे कौन्तेय ! युद्ध के लिए दृढ़ निश्चय करके खड़ा हो । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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