श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण की मधुर-मुरली
वंशीविभूषितकरान्नवनीरदाभात् । प्रत्येक हिन्दू को श्रीकृष्ण का नाम अत्यंत प्रिय है। गीता, महाभारत तथा पुराणों में एवं अनेकानेक संतों की वाणियों में श्रीकृष्ण का नाम जहाँ कहीं भी आता है, उसके श्रवण मात्र से ही सारे शरीर में बिजली सी दौड़ जाती है। श्रीकृष्ण के बाल रुप तथा दिव्य कैशोर रुप ने आज सारे भारतीय हृदयों को प्रेम के पवित्र पाश में बांध रखा है। श्रीकृष्ण का मनुष्य मात्र प्रेम था। उनकी आज पूर्णब्रह्मा के रुप में पूजा होती है और प्रेम की जो अजस्त्र धारा बह रही है, उसकी समता संसार के किसी धर्म में नहीं मिल सकती। ‘श्रीकृष्ण’ ! अहा ! इस नाम में कितना संगीत भरा है। उनका रुप जैसा मनोमोहक था, वैसी ही उनकी मनोहर मुरली की तान अनुपम माधुर्य से युक्त थी। त्रिभुवनकमनं तमालवर्णं रविकर गौरवराम्बरं दधाने । वे अपने हृदय में ऐसी पवित्रता लेकर आये, जिसके कारण वे मनुष्य मात्र को ईश्वरतुल्य समझते थे। इसी प्रभाव से वे अनेक गोप-बधुटियों के हृदयेश्वर बन गये। उनमें वह अन्तर्दृष्टि थी, जो स्त्री पुरुष, पशु पक्षी, वृक्ष लता, पुष्प पराग, नक्षत्र तारे सबके लिये आनंद दायक थी। हमारे इतिहास के एक विषम समय में उन्होंने प्रेम का अद्भुत स्त्रोत बहा दिया। श्रीकृष्ण को वनों मं घूम-घूमकर वंशी बजाने का बड़ा शोक था। वे संगीत-कला के जैसे असाधारण पंडित थे, उनकी वंशी भी वैसी ही असाधारण थी। जरा कल्पना कीजिये, एक पांच-छ: वर्ष के अत्यंत कमनीय एवं सुकुमार बालक क अंदर वह शक्ति, ज्ञान और प्रेम भरा हुआ हो, जो इस संसार में कहीं बिरली जगह देखने में आता हो- वह एक गांव से दूसरे गांव को वंशी की दिव्य तान छेड़ता हुआ जाये और गांव के लोग अपना धन्धा छोड़कर उसके पीछे हो लें, गौएं घास चरना छो़ड़ दे, विहग- वृन्द वृक्षों से उतरकर अपनी कोमल चहचहाहट मधुर काकली को उसकी मुरली की मीठी ध्वनि में मिला दें। वृक्ष अपनी शाखा रुप भुजाओं से उसका अभिनंदन करें, पुष्प अपने मधुर सौरभ से उसका स्वागत करें और सारी प्रकृति तन्मय होकर उसके मोहक संगीत का श्रवण करे ! कैसा अनोखा रहा होगा वह दृश्य ।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |