श्रीकृष्णांक
श्रीकृष्ण-चरण-सेवन का माहात्मय
ब्रह्माजी श्रीभगवान से कहते हैं- अथापि ते देव पदाम्बुजद्वय- (श्रीमद्भा.10।14।29)
हे देव ! जो लोग आपके उभय चरण-कमलों के प्रसाद का लेश पाकर अनुगृहित हुए हैं, वे भक्तजन ही आपकी महिमा के तत्त्व को जान सकते हैं; उनके सिवा अन्य कोई भी चिरकाल तक विचार करने पर भी आपके तत्त्व को नहीं जान सकता। यमराज अपने दूतों से कहता हैं- कृष्णांघ्रिपद्ममधुलिण् न पुनर्विसृष्ट- (श्रीमद्भा.6।3।33)
जो पुरुष श्रीकृष्ण के चरण-कमल के मधु का आस्वादन कर चुकता हैं, वह फिर दुर्गतिप्रद माया के विषयों में कभी अनुरक्त नहीं होता। इसकें विपरीत जो आदमी (सांसारिक) कर्मों से ही पाप का नाश करता हैं वह महामूढ़ हैं, उसके बन्धन का नाश नहीं होता। श्रीशुकदेव जी कहते हैं- समाश्रिता ये पदपल्लवप्लवं, (श्रीमद्भा.10।14।58)
जिसका यश महान पुण्यप्रद हैं, उस मुरारि श्रीकृष्ण के चरण-कमल- संसार- सागर में नौकारूप हैं। जो लोग उस चरण-कमल-नौका के आश्रित हैं, उनके लिये संसार-सागर गौके खुर टिके हुए गढ़े के समान हैं। फिर उन्हें विपत्ति के धाम इस संसार में नहीं आना पड़ता। श्रीप्रह्लादजी कहतें हैं- विप्राद्विषड्गुणयुतादरविन्दनाभ- (श्रीमद्भा.7।9।10)
बाहर प्रकार के गुणों से युक्त ब्राह्मण यदि भगवान पद्मनाभ के चरण कमलों से विमुख हो और एक चाण्डाल जो अपने तन, मन, वचन और कर्म श्रीभगवान के अर्पण कर चुका हो, इन दोनों में ब्राह्मण की अपेक्षा चाण्डाल श्रेष्ठ हैं, क्योंकि वह श्रीकृष्ण-भक्त चाण्डाल अपने सारे कुल को पवित्र कर सकता हैं; परन्तु वह बड़े मान वाला ब्राह्मण नहीं कर सकता। यमराज अपने दूतों से कहते हैं तानानयध्वमसतो विमुखान्मुकुन्द- (श्रीमद्भा.6।3।28)
जिन भगवान मुकुन्द के चरणारविन्दों की सेवा सर्वत्यागी परमहंसगण सब प्रकार की आसक्ति छोड़कर किया करते हैं, उन चरण कमलों के मकरंद रस के आस्वादन से विमुख होकर जो असाधु लोग नरक के पथस्वरूप घर के जन्जाल में फँसे रहतें हैं, उन्हीं को यमपुरी में मेरे पास लाया करो ! नागपत्नी श्रीभगवान से कहती हैं- न नाकपृष्ठं न च सर्वभौमं (श्रीमद्भा. 10।16।37)
हे भगवन् ! जो लोग आपके चरणों की धूलि को प्राप्त हो जातें हैं वे फिर स्वर्ग, चक्रवती राज्य, पाताल का राज्य, ब्रह्मा का पद और योग की सिद्धि की तो बात ही क्या हैं मुक्ति की भी इच्छा नहीं करते। |