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(लेखक- डॉ. एच. डब्ल्यू. बी. मोरेनो एम. ए. पी. एच. डी.)
जिस प्रकार एक धर्म का दूसरे धर्म के साथ स्पष्ट सादृश्य होता है उसी प्रकार उनके संस्थापकों में भी परस्पर सादृश्य दृष्टिगोचर होता है। जिन लोगों ने बौद्ध तथा ईसाई मत के सिद्धान्तों का अध्ययन किया है, वे इस बात को स्वीकार करेंगे कि उक्त दोनों मतों के सिद्धान्तों का एक ही चरम लक्ष्य है। वह है प्रेम, एकता और शान्ति। मनुष्यमात्र के जीवन के ये ही ध्रुवतारे हैं। स्वार्थसिद्धि को छोड़कर दूसरों की सेवा करना ही मनुष्यमात्र का प्रधान उद्देश्य और जीवन को उच्च बनाने का साधन है। इतिहास इन दो महापुरुषों में अर्थात बुद्ध और ईसा मसीह में एक सादृश्य बडे़ मार्केका है। ईसा मसीह के 12 शिष्य थे, बुद्ध के भी 5 शिष्य थे। ईसामसीह का प्रिय शिष्य जान (John) था, बुद्ध का प्रधन शिष्य ‘आनन्द’ था। हिन्दुओं में भी एक ऐसे महापुरुष हुए हैं, जो ईसामसीह से बडे़ नहीं तो समान अवश्य थे। वह महापुरुष श्रीकृष्ण थे, जिन्हें हिन्दू ईश्वर का अवतार मानते हैं। कृष्ण और क्राइस्ट (Christ) के नाम मे भी बड़ा सादृश्य है।
श्रीकृष्ण को बंगाल में ‘कृष्टो‘ कहते हैं, ईसा को भी यवन (यूनानी) तथा रोमनिवासी कृष्टांस (Christos) कहते थे। ईसामसीह के जन्म का वृतान्त किसी को ज्ञात नहीं हुआ। उनका जन्म घुडसाल में हुआ था, ईधर श्रीकृष्ण का जन्म भी कारागार में हुआ। श्रीकृष्ण के माता-पिता वसुदेव देवकी को यह आकाशवाणी हुई थी कि तुम्हारा पुत्र ऐसे राज्य का अधिपति होगा जो अनन्तकाल तक सारी मानव जाति पर रहेगा। ईसा के जन्म के पूर्व भी देवदूतों ने ऐसी ही बात कही थी। ईसामसीह जब गोद में पल रहे थे तभी हैरॉड (Herod) नामक बादशाह के हिंसापूर्ण अत्याचारों से बचाने के लिए इन्हें चुपचाप मिश्र देश (Egypt) में पहुँचा दिया गया था, श्रीकृष्ण को भी उनके पिता वसुदेव जी रात में छिपकर यमुनाजी के उस पार ननद के घर उनके मामा कंस की भयंकर कुचालों से बचाने के लिए ले गये थे। पीछे श्रीकृष्ण ने कंस को स्वयं युद्ध में मार डाला था। जनता के इन दोनों नायकों के उपदेशों में भी इतना अविरोध है कि उसे देखकर आश्चर्य होता है, केवल अविरोध ही नहीं, सादृश्य भी है। यद्यपि दोनों के ही उपदेश स्वतंत्ररुप से भिन्न-भिन्न समय में हुए हैं, परन्तु दोनों ने ही एक ईश्वर, एक धर्म और एक प्रकृति को माना है जिसकी ओर सारी दृष्टि अग्रसर हो रही है।
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