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श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण और उनका दिव्य उपदेश
श्रीकृष्ण रुक्मिणीकांत गोपीजनमनोहर । कालिन्दी के सुरम्य-तट पर संयुक्त-प्रान्त की मथुरा-नगरी में भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हुआ था। उन्होंने शैषवकाल में ही अनेक बार अपनी अतिमानुष एवं अलौकिक शक्तियों को दिखलाकर सबको चकित कर दिया था। अनेक भयानक पक्षियों, वन्य पशुओं और यमुनाजी में रहने वाले कालिय-सर्प को मारकर लोगों को निर्भय किया था। उनके मधुर मुरली रव को सुनकर मनुष्यों का तो कहना ही क्या, पशु-पक्षी तक व्याकुल हो जाते और दौड़कर उनके पास चले जाते थे। वे जहाँ रहते, वहीं सर्वत्र आनन्द और प्रेम का साम्राज्य छा जाता। गोकुल के ग्वाल-बालों तथा गोप-बालिकाओं के विनोद के लिये वे वृन्दावन के रम्य उपवनों और कुजचों में विविध प्रकार की क्रीड़ाएँ किया करते और वन-भोजन का आनन्द लूटते। युवा होने पर वे अपनी बाल-लीलाओं को भुलाकर एक गम्भीर राजनीतिज्ञ तथा सुयोग्य और शक्तिशाली शासक बन गये थे। इसका कारण यह था कि उन्हें राजनैतिक-क्षेत्र में भी बहुत कुछ काम करना था।
ऋषि सान्दीपनि के आश्रम में इन्होंने अपने बड़े भाई बलरामजी के साथ वेद, शास्त्र, राजनीति, विज्ञान, धनुर्वेद एवं युद्ध-विद्या की शिक्षा प्राप्त की थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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