|
(लेखक- एक प्रेमी महायश)
अत्र सर्गो विसर्गश्च स्थानं पोषणमूतय: ।
मन्वन्तेरेशानुकथाविरोधो मुक्तिराश्रय: ।।
सर्ग[1]- जिसकी पृथ्वी, अप, तेज, वायु और आकाश इन पांच तन्मात्राओं का, श्रोत्र, त्वक्, दृक्, रसना और गन्ध इन पांच ज्ञानेन्द्रियों का और वाक्, पाणि, पाद, पायु ओर मेढ्र इन पांचों कर्मेन्द्रियों का वर्णन हो ।
विसर्ग[2]- जिसमें सत्त्व, रज और तम इन तीनों गुणों के वैषम्य से ब्रह्मा के सृष्टिक्रम का वर्णन किया गया हो ।
स्थान[3]- जिसमें भूगोल, खगोल अथवा सूर्यादि के स्थान या स्थिति आदि बतलाये गये हों ।
पोषण[4]- जिसमें भगवान के अनुग्रह अथवा अजामिल आदि पर किये हुए उपकारों की कथा हो ।
ऊति[5]- जिसमें हिरण्यकशिपु आदि की कर्मवासना बतलायी गयी हो ।
मन्वन्तर[6] - जिसमें चौदह मनुओं का विस्तृत वर्णन किया गया हो ।
ईशानुकथा[7]- जिसमें श्रीकृष्णावतार से पहले के पुरुषों का चरित्र हो ।
विरोध[8]- जिसमें कंसादि के मारे जाने की कथाएं कही गयी हों ।
मुक्ति[9] - जिसमें भेदवर्जित स्व-स्वरूप की स्थिति (विराटरूप) दिखलायी हो ।
आश्रय[10]- जिसमें परब्रह्म परमात्मा शब्द के आभास को आकर्षित करने का अध्यवसाय हो ।
यह दस विषय जिसमें वर्णित हों वह महापुराण कहलाता है। श्रीमद्भागवत के श्रोता, वक्ता और पाठक इस बात को जान सकते हैं कि उपर्युक्त दसों विषय भागवत में किस प्रकार की विद्वत्ता, सौष्ठवता, समीचीनता और विस्तृति के साथ वर्णन किये गये हैं। उसके प्रथम और द्वितीय स्कन्धों में प्रश्नोत्तर, तृतीय में सर्ग, चतुर्थ में विसग्र, पंचम में स्थान, छठे में पोषण, सातवें में ऊति, आठवें में मन्वन्तर, नवें में ईशानुकथा, दसवें में विरोध या दुष्टदमन, ग्यारहवें में मुक्ति और बारहवें में आश्रय का वर्णन किया गया है। यदि इन सब विषयों का ध्यानपूर्वक विचार किया जाय तो मनुष्यों का बहुत कुछ उपकार होना संभव है। इसीलिये अन्य पुराणों की अपेक्षा भागवत सर्वोत्कृष्ट है। ‘श्रीकृष्णांक’ के प्रेमी पाठकों की प्रसन्नता के लिए उसी भागवत से श्रीकृष्ण के कुछ रहस्यपूर्ण चरित्रों का संक्षिप्त स्पष्टीकरण कर देना समयोचित प्रतीत होता है।
कारागार में कृष्णजन्म- बडे़ विचार की बात हे कि वसुदेव को कैद कर देने पर भी उनके गार्हस्थ्य जीवन में कोई बाधा नहीं पड़ी, वे जेल के भीतर भी खूब खाते-पीते, हंसते-खेलते और मौज उड़ाते थे ।
|
|