श्रीकृष्णांक
श्रीकृष्ण तत्त्व
नवीनजलदावलीललितकांतिकांताकृति- भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप-तत्त्व साक्षात ब्रह्मा जी भी नहीं जानते। किसी की शक्ति भी नहीं हैं जो इस तत्त्व का निर्णय कर सके। परन्तु आलोचना का अधिकार सबको हैं और इसका फल भी अत्युत्तम है। भगवान श्रीकृष्ण का श्रवण-कीर्तन पुण्यमय हैं, उनकी गुणावलीं के गाने सुनने से संसार संग के कारण मलिन हुए मनुष्य का मन पवित्र होता है। मुनियों की इसी आश्वासन को स्मरण करके श्रीकृष्ण तत्त्व के सम्बन्ध में यत्किंचित आलोचना की जाती हैं।
श्रीकृष्ण का लीला विलास अनन्त हैं, शास्त्रों में उनके तत्त्व का अनेक प्रकार से वर्णन हैं, उसी को अवलम्बन कर हम कुछ लिखना चाहते हैं।
श्रीकृष्ण अनन्त विभूति सम्पन्न ऐतिहासिक पुरुष हैं, यह सिद्धांत तो इस समय प्रायः सर्वसम्मत हैं। अतएव आलोच्य विषय यह रह जाता हैं कि वे (1) योगसिद्ध मनुष्य थे, या (2) ईश्वर के अंश थे अथवा (3) मानवाकार में अवतीर्ण साक्षात ईश्वर थे। न शक्यं तन्मया भूयस्थता वक्तुमशेषत: । (महाभारत अ. 16।12-13)
(ख) महाभारत अनुशासन पर्व के 14वें अध्याय में वर्णन हैं कि श्रीकृष्ण ने बारह वर्ष तक श्रीशिवजी का आराधना कर उसके फलस्वरूप रूक्मिणीजी के गर्भ से अनेक पुत्र उत्पन्न किये। उन्होंने उपमन्यु ऋषि के आश्रम में जाकर उनके उपदेशों से श्रीशिव की तपस्या की थी, तप से संतुष्ट होकर जब श्रीमहादेव जी प्रकट हुए तब श्रीकृष्ण उनके सामने देख भी नहीं सके, यह बात श्रीकृष्ण ने स्वयं अपने ही श्रीमुख से कहीं हैं- ईक्षितुं च महादेवं न मे शक्तिरभूत्तदा । इन विषयों पर विचार करने से प्रतीत होता है कि श्रीकृष्ण एक योगसिद्ध पुरुष थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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