कृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण का जन्मपत्र
मेरे गुरुवर, परमपद-प्राप्त, सकल शास्त्र-निष्णात, पूज्यपाद पण्डित श्रीगंगासहाय महाराज ने श्रीमद्भागवत की ‘अन्वितार्थ प्रकाशिका’ टीका में दशम स्कन्ध के तृतीय अध्याय की व्याख्या करते समय भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के जन्मोत्सव पर लिखते हुए ‘खमाणिक्य’ ज्योतिष ग्रन्थ के आधार पर भगवान की जन्मपत्री के विषय में एक श्लोक उद्धृत किया है। उसमें लिखा है– उच्चस्था: शशिभौमचान्द्रिशनयो लग्नं वृषो लाभगो इसी से मिलता हुआ एक पद्य मेरे मित्र मुखिया मन्नालाल जी ने ‘चौरासी वैष्णवों की वाता’ से निकालकर मुझे बतलाया है। यह पद्य महात्मा सूरदासजी का है। श्लोक और पद्य का आशय एक है। पद्य इस तरह है– नन्दजू मेरे मन आनन्द भयो, मैं सुनि मथुराते आयो, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यह लेख छपते समय पू. मेहता जी के भानजे पं. रामजीवन जी नागर के पत्र से ज्ञात हुआ कि पूजनीय मेहता जी का गत प्र. आ. शु. 14 सोमवार को 68 वर्ष की अवस्था में परलोकवास हो गया। आप हिन्दी के महारथी, सनातन धर्म के कट्टर पोषक और हरिभक्त महानुभाव थे। श्रीभागवत का प्रतिदिन 12 अध्याय का पाठ करके महीने भर में भागवत का एक पूरा पाठ कर लिया करते थे। श्रीनागरजी लिखते हैं कि अन्तकाल में बेहोशी की हालत में भी आपके मुंह से भागवत का कण्ठस्थ पाठ होता रहा। आपके परलोकवास से सनातन धर्म का एक कट्टर हिमायती और हिन्दी भाषा का एक पुराना सेवक उठ गया। यह क्षति किसी प्रकार पूरी नहीं की जा सकती। - सम्पादक ।
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