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श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण का अवतार-प्रयोजन तथा परत्व
ब्रह्मा, महेश, इन्द्र आदि प्रधान देवगण जिनके श्रीचरण कमलों में पूर्ण अनुराग सहित नम्र भाव से अपने मणिमय मुकुटों को स्पर्श कराते हुए वन्दना करते हैं, ऐसे नव नटनागर भगवान श्रीकृष्ण ने निज भक्तों को भवसागर से पार करने के लिये ही लोक विलक्षण अद्भुत दिव्य मंगल विग्रह धारण किया था। वे अनन्त, अचिन्त्य तथा स्वभाव से ही ज्ञान, ऐश्वर्य, कारुण्य, वात्सल्य, दया, सौन्दर्य, माधुर्य आदि कल्याण गुणों के सागर हैं। आप सच्चिदानन्दस्वरूप अनन्त और अचिन्त्य स्वाभाविक शक्ति-वैभव का आश्रयकर असीम आनन्द प्रदान करते हैं। आप जो कुछ करना चाहते हैं, उसे कोई जान नहीं सकता। आप प्राणि मात्र में सौहार्द रखते हुए सकल वस्तु जात पर अपनी सत्ता रखते हैं। आपकी अनेक लीलाएँ ऐसी हैं, जिनमें मनुष्य की विचार शक्ति सर्वथा स्थगित हो जाती है, आप ही जगत की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय के कारण हैं। आपके चरणारविन्द मुमुक्षु जनों की प्राप्ति का स्थान तथा निरीह जनों की भावना का एकमात्र विषय है। वेदान्त के द्वारा ही आपकी किसी प्रकार अवगति हो सकती है। श्रीब्रह्माजी के अपने चारों मुखों से प्रार्थना करने पर ही व्रजजनों के प्राण प्रिय, सबके अन्तर्यामी और नियन्ता, उज्ज्वल स्वरूप, रमाकान्त श्रीनन्दनन्दन का प्रादुर्भाव पृथ्वी का भार उतारने के लिये श्रीवसुदेवजी की धर्मपत्नी श्रीदेवकीजी के गर्भ से हुआ था। आपके अवतार का प्रयोजन स्पष्टतया बतलाने के लिये हम श्रीकुन्तीजी की स्तुति से श्रीमद्भागवत प्रथम स्कन्ध अष्टमाध्याय के कुछ श्लोक उद्धृत करते हैं-नमस्ये पुरुषं त्वाद्यमीश्वरं प्रकृते: परम्। श्रीकुन्ती जी भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति करती हुई कहती हैं- ‘भगवन् ! आप समस्त जगत के कारण हैं तथा माया से रहित हैं, आप ऐश्वर्ययुक्त, परम पुरुष, किसी के देखने में न आने वाले, जीवों के बाहर भीतर की जानने वाले ताकि संसार में व्यापक हैं। मैं आपको प्रणाम करती हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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