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(लेखक– साहित्याचार्य पं. श्रीशालग्राम जी शास्त्री)
संसार के मूल तत्वों को हम दो भागों में बांट सकते हैं। जड़ और चेतन या प्रकृति और पुरुष। चाहे जड़ कहिये या प्रकृति कहिये, बात एक ही है। चेतन अधिष्ठाता के बिना जड़-वस्तु की क्रियाएं नियमित और श्रृंखलाबद्ध नहीं हो सकती और न इसके बिना एक अधिष्ठान में विरोधी गुण-कर्म दीख सकते हैं, अत: प्रकृति अथवा जड़ जगत का कोई अधिष्ठाता माना जाता है। यदि कोई मोटर आगे भी बढती है, पीछे भी हटती है और दांये-बांये भी घूमती है तो मानना पड़ेगा कि उसके भीतर कोई चलाने वाला (चेतन) अवश्य बैठा है। यदि ऐसा न हो और मोटर को खुला छोड़ दिया जाय तो वह एक ही दिशा में एक से वेग से दौड़ती चली जायगी और उसके आगे जड़ या चेतन[1] जो कुछ भी आ जायेगा उसी से टकरा जायगी। भीड़ को देखकर हॉर्न (भोंपू) बजाना और भैंस को अडकर खड़ी देखकर मुड जाना, यह बिना चेतन अधिष्ठाता के नहीं हो सकता।
इस जड़ या प्रकृति को आप फिर तीन विभागों में बांट सकते हैं। 1- मूल-प्रकृति[2] 2- प्रकृति-विकृति[3] और 3- केवल विकृति[4] इसी प्रकार चेतन को भी आप तीन श्रेणियों में रख सकते हैं। 1- शुद्धब्रह्म, 2- मायाशबलब्रह्म और 3- जीव।
शुद्धब्रह्म और शुद्ध प्रकृति, एक प्रकार की प्रलय की दशा है। न शुद्धब्रह्म में कोई कार्यकलाप सम्भव है, न शुद्धप्रकृति में। प्रलय का अर्थ है प्रत्येक वस्तु का अपने कारण में लीन हो जाना। हर एक वस्तु अपने उपदान कारण में लीन हुआ करती है। जो आभूषण सोने के बने हैं उन्हें यदि गला दिया जाये तो वे सब गलकर सोना हो जायँगे और चांदी के आभूषण गलकर चांदी बन जायँगे। जो वस्तु जिससे बनी है वह उसी के स्वरूप में लीन होती है। संसार के स्थूलभूत– पृथ्वी, जल, तेज आदि– पंचतन्मात्राओं में लीन होते हैं, ये तन्मात्राएं अहंकार में, अहंकार महत्तव में और महत्तत्व मूल प्रकृति में विलीन होता है। यही प्रलयावस्था है। यदि संसार की सभी कार्य-वस्तुएं मूल-प्रकृति में विलीन हो जाये तो महाप्रलय समझिये।
शांकर-सिद्धान्त के अनुसार यह मूल प्रकृति भी अन्ततोगत्वा ब्रह्म में विलीन हो जाती है और, ‘ब्रह्मसत्यं जगन्मिथ्या’ की बात पक्की होती है, परन्तु हम इस पेचीदा पचडे़ में डालकर पाठकों को परेशान करना नहीं चाहते। हां, इतना अवश्यक कहेंगे कि तर्कों के साथ-साथ वेद-वाक्य भी शांकर-मत के पूर्ण समर्थक हैं। शांकर-मत ‘औपनिषद’ मत है और उपनिषदें ही इसका प्रधान अवलम्ब हैं। यह कोरे तर्कों के बल पर खड़ा नहीं किया गया है।
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