श्रीकृष्णांक
महाराष्ट्र में श्रीकृष्ण-भक्ति
ज्ञानदेव इस भक्त समुदाय के अध्यक्ष थे और नामदेव उपाध्यक्ष। इन दोनों ने महाराष्ट्र के भागवत पन्थ का दृढ़ संगठन किया। उनका ज्ञानेश्वरी ग्रन्थ (शाके 1212) श्रीमद्भगवद्गीता की विस्तृत टीका है। यह ग्रन्थ अत्यन्त सम्मान्य और लोकप्रिय है। काव्य की दृष्टि से, तत्वज्ञान की दृष्टि से, भाषा शैली की दृष्टि से, धर्मग्रन्थ की दृष्टि से तथा किसी भी दृष्टि से यह आद्य और अद्वितीय है। मराठी भाषा में इसके जोड़ का बस एक ही ग्रन्थ है, जिसका नाम है एकनाथी भागवत। ज्ञानेश्वरजी के सभी ग्रन्थ है, जिसका नाम एकनाथी भागवत। ज्ञानेश्वरजी के सभी ग्रन्थों में श्रीकृष्ण भक्ति ओत-प्रोत भरी हुई है। जहाँ केवल ‘श्रीकृष्ण बोल’ इतना ही कहना आवश्यक था, वहाँ भी ज्ञानेश्वरी में ज्ञानेश्वरजी ने श्रीकृष्ण प्रेम की तरंगें लहरा दीं। उदाहरणार्थ ‘असे श्रीकृष्णजी पांडवा प्रति बोलिला’ अर्थात श्रीकृष्ण पाण्डव से बोले ‘ वे श्रीकृष्ण कैसे थे ?- यह चराचर के भाग्य, ब्रह्मा तथा ईश के पूजने योग्य, सकल कलाओं को कला, परमानंद की मूर्ति, विश्व के प्राण के प्राण (ज्ञाने. अ. 8) श्यामसुन्द परब्रह्मा, निजजनानंद, जगदादिकन्द, निर्मल, निष्कलंक, लोक-कृपालु, शरण्य, सुर-सहायशील, लोक-लालनशील, प्रणत- प्रतिपालक, धर्मकीर्तिधवल, अगाध दातृत्व में सरल, भक्त वत्सल, प्रेमीजन प्रांजल- ‘तो श्रीकृष्ण वैकुण्ठीचा। चक्रवर्ती निजांचां। सांगे येरु दैवाचा। आइकत असे’। (अ.12) ‘वह वैकुण्ठाधीश चक्रवर्ती कह रहे थे और भाग्यवान (अर्जुन) सुन रहा था। ज्ञानेश्वरीजी ने अपने तथा अर्जुन के मुख से भगवान के लिए जिन विशेषणों का उपयोग किया है, उसके संग्रह करने पर सहज ही श्रीकृष्ण सहस्त्रनाम तैयार हो सकता है। उनके काव्य में भी श्रीकृष्ण वर्णन संबंधी तथा कृष्ण स्तुति संबंधी पद्य बहुत सुन्दर हैं। इन पद्यों में गोकुल के श्रीकृष्ण ही पण्ढरपुर में विट्ठल रुप में खडे़ हैं। निर्गुण परमात्मा ही सगुण साकार रुप से प्रकट हुए हैं वही जीवों के अन्तर्बाह्य लीला करते हैं और अपनी मोहिनी मुरली के मधुर रव से गोपियों को और अन्य सबको आत्म सुख के रंग में रंग रहे हैं। देखिये कैसा सुन्दर वर्णन है- लक्ष लावुनि अंतरीं कृष्णा पाहती नरनारी । अर्थात ‘ लावण्यसागर परमानंद हरि का अन्त:करण में ध्यान धरकर नर-नारी उन्हें निहारते हैं। अनेक छन्दों में मुरली बज रही है, जिसकी मधुर ध्वनि त्रिभुवत में भर रही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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