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श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी-महोत्सव
सं. 2026 वि. के जन्माष्टमी-महोत्सव पर रचित
- ‘अवतारी’ सब अवतारों के सबके ‘अंशी’, नित्य अनादि।
- सभी ईश्वरों के ईश्वर, सब लोक महेश्वर, सबके आदि।।
- षोडशकलापूर्ण, सच्चिद्-घन, षडैश्वर्यसम्पन्न, उदार।
- अज, अबिनश्वर, चिन्मय भगवद्देहरूप, नित विगतविकार।।
- लीलामय, लीला, लीलाके दर्शक, दिव्य सच्चिदानन्द।
- अखिल प्रेम-रससिन्धु, प्रेमघनमूर्ति, प्रेम-बितरक स्वच्छन्द।।
- विविध अचिन्त्यानन्त विरोधी गुणधर्माश्रयरूप महान।
- प्रकट हुए प्रभु कारागृह में कृष्ण अतुल ऐश्वर्यनिधान।।
- साधुजनो का परित्राण, अति दुष्टों का करने निस्तार।
- धर्मस्थापन हेतु स्वयं प्रभु ने यह लिया दिव्य अवतार।।
- हरने को निज प्रेमी, विरही जनका घोर विरह-संताप।
- प्रेमधर्म-संस्थापनार्थ शुचि इच्छामय प्रकटे प्रभु आप।।
- भाद्र, असित अष्टमी, अजनजन्ममक्ष् रोहिणी शुभ नक्षत्र।
- मध्यरात्रि, बुधवार, छा गयी प्रभा सुखद अनुपम सर्वत्र।।
- हुआ सुशोभन काल निरतिशय सर्व शुभगुणों से संयुक्त।
- ग्रह-तारे-नक्षत्र हो उठे सभी तुरंत सौम्यतायुक्त।।
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