श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
भगवान सूर्य का प्रकाश तीनों लोकों में सर्वत्र व्यापक है, वह प्रकाश सूर्य मण्डल से आता है, उसका केन्द्र सूर्य मण्डल है। जहाँ तक प्रकाश जाता है, वहाँ तक सूर्य मण्डल नहीं जाता वह उससे छोटा है, तो भी इस पृथ्वी से बहुत बड़ा है। उस मण्डल में रहने वाले अधिदेवता रूप जो भगवान आदित्य हैं, जिन्हे नारायण अथवा सूर्य नारायण कहते हैं, जिनके परम सुन्दर कमनीय विग्रह में यथास्थान केयूर, मकराकृति-कुण्डल, किरीट, हार आदि भी शोभा पाते हैं, वे अपने मण्डल से भी छोटे हैं तथा सदा अपने धाम में ही रहते हैं; परंतु वह प्रकाश और वह मण्डल सब उन्हीं से हैं। यदि वे न हों तो प्रकाश अथवा मण्डल की सत्ता ही न रहे। सूर्य के उस अधिदैवरूप की प्रप्ति के लिये आदित्य लोक में ही जाना पडेगा, वरुण लोक में नहीं; किंतु वे कारण रूप से या तेज-प्रकाश रूप से सभी लोकों में व्यापक हैं। यही बात श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में भी है। इनके सर्वत्र व्यापक रूपको ‘ब्रह्म’ कहा गया है, जिसकी उपमा प्रकाश से दी गयी है। यह निर्गुण-निराकार रूप है। श्रीकृष्ण जो दूसरा रूप सगृण-निराकार है, वह मण्डल के स्थान पर है; इसी रूप को हम ‘परमात्मा’ कहतें हैं। इसका भी अन्तरात्मभूत जो स्सवरूप है, वही ‘भगवान’ कहलाता है। ये भगवान ही ‘श्रीकृष्ण’ हैं। ये अपने मण्डल में, अपने नित्य-धाम वृन्दावन में ही रहते हैं। जहाँ प्रकट होते हैं, वहाँ वृन्दावन को साथ लेकर ही प्रकट होते हैं। अथवा यों कहिये कि जहाँ ये प्रकट होते हैं, वहीं वृन्दावन है। इस प्रकार श्रीकृष्ण के ही तीन रूप भगवान, परमात्मा और ब्रह्म नाम धारण करते हैं। तीनों की सत्ता श्रीकृष्ण से ही है। श्रीमद्भागवत में भी कहा है-
भगवत्स्वरूप के ज्ञाता इस बात का जानते हैं कि भगवान सर्वव्यापक हैं। जो सर्वव्यापी तत्त्व है, वह कभी कोई भी स्थान छोड़ कर कहीं नहीं जाता। वह कहाँ नहीं है, जहाँ जाय? सर्वत्र वही-वह तो है। जिनके पास आँख है, वे सर्वत्र उसीका दर्शन करते हैं, दूसरे लोग नहीं-‘चक्षुष्मन्तोऽनुपश्यन्ति नेतरेऽद्विदो जनाः।’ इस दृष्टि से भी, यह कहना कि भगवान वृन्दावन छोड़ कर कभी कहीं नहीं जाते, सर्वथा सत्य है।
इससे उनकी व्यापकता ही सिद्ध होती है। जो सर्वत्र व्यापक नहीं है, वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर गये बिना रह नहीं सकता। श्रीकृष्ण वृन्दावन से तथा श्रीराम अयोध्या से अन्यत्र नहीं जाते इस कथन का यह अर्थ भी है कि वृन्दावन में श्रीकृष्ण का ही दर्शन होता है और साकेत धाम में श्रीराम का ही। |
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