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श्रीराधा-स्वरूप-गुण-महिमा
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- मेरी उन राधा के शुचितम प्रेमराज्य में नहीं प्रवेश।
- कामभोग का मलिन, कभी भी किंचित कहीं कल्पना-लेश।।
- रागरहित श्रृंगार अनूठा, मोहरहित है पावन प्रेम।
- सुख-वान्छा-विरहित ममता है, पूर्ण समर्पित योग-क्षेम।।
- स्वादरहित सब खान-पान हैं, है अभिमान रहित अतिमान।
- भोग बहुलता भोगरहित नित, प्रियतम-सुख की शुचितम खान।।
- इन्द्रिय-तन-मन-प्राण-अहं-मति हैं प्रियतम के लिये तमाम।
- नहीं कार्य कुछ निज का उनसे करते सब प्रियतम का काम।।
- संयम पूर्ण सहज ही होते जग में, जग के सब व्यवहार।
- नहीं किसी से उनका मतलब, प्रियतम-सुख ही केवल सार।।
- मेरी ऐसी हैं वे राधा त्रिभुवन-पावनि जीवन साध्य।
- नित्य-तृप्त श्रीमाधव की जो हैं पवित्रतम परमाराध्य।।
इन श्रीराधा का जीवन परम त्यागमय तथा सर्व समर्पणमय है और स्वरूपतः श्रीराधा श्रीमाधव से सर्वथा अभिन्न रहती हुई ही दिव्य-लीला-विहारिणी हैं।
हमें श्रीराधा-माधव ऐसी सद्बुद्धि और सद्दृष्टि प्रदान करें, जिससे हम उनकी यथार्थ स्वरूप-स्थिति को एवं उनकी दिव्य रसमयी लीला के परम पावन रहस्य को समझ-देख सकें।
आज श्रीराधाजी के लीला-प्राकट्य के इस परम पवित्र महान शुभ अवसर पर हम अपने को उनके श्रीचरणों में डालकर उनसे प्रार्थना करें-
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