श्रीनारायणीयम्
चतुर्दशदशकम्
कपिलोपाख्यान
जिनकी उत्पत्ति पद्मयोनि ब्रह्मा के अंग से हुई थी तथा जो आपके चरणयुगल का भलीभाँति अनुस्मरण करने वाले थे, उन स्वायम्भुव मनु ने इकहत्तर चतुर्युगी के परिमाण वाले अपने राज्यकाल (मन्वन्तर)- को, जो सब प्रकार की विघ्न-बाधा से रहित था, आपकी लीलाओं का वर्णन करते हुए सुखपूर्वक व्यतीत किया।।1।।
भगवान! उन्हीं मनु के राज्यकाल में जिनका जन्म ब्रह्मा की छाया से हुआ था वे कर्दम नामक ऋषि ब्रह्मा के आदेश से प्रजा-सृष्टि की कामना लेकर दस हजार वर्ष तक स्वभावतः रमणीय आपकी सेवा करते रहे अर्थात आपकी प्राप्ति के लिए तपस्या करते रहे।।2।।
विभो! तब आपने गरुड़ पर सवार अपने श्रीविग्रह को, जिसकी कान्ति काले मेघ के समान नीली एवं कमनीय थी, जिसके कमल-सदृश हाथ में लीला-कमल सुशोभित हो रहा था तब जिसका मुख मृदु मुस्कान से उल्लसित था, कर्दम के समक्ष प्रकट कर दिया।।3।। |
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