श्रीनारायणीयम्
सप्तचत्वारिंशत्तमदशकम्
श्रीकृष्ण का ओखली से बाँधा जाना
एक समय की बात है, माता यशोदा दही मथ रही थीं, उसी समय आप उनके निकट जा पहुँचे। तब दूध पीने की लालसा से दही का मथना रोककर उनकी गोद में चढ़ गये और स्तनों को पकड़कर दूध पीने लगे।।1।।
उस समय आप बीच-बीच में मन्द-मन्द मुसकुरा देते थे, जिससे आपका मुखकमल बड़ा मनोहर लग रहा था। अभी आप आधा ही दूध पी पाये थे अर्थात् तृप्त नहीं हुए थे तब तक आग पर चढ़ाये हुए दूध में उफान आया। आपकी माता उसे रखने के लिए तुरंत ही (आपको गोद से उतारकर) चली गयीं।।2।।
देव! तब अर्धपीत दुग्ध-रस के पान में विघ्न पड़ जाने के कारण उत्पन्न हुए क्रोध के भार से आपका चित्त परिभूत हो गया। फिर तो आपने मन्थन-काष्ठ-मथानी को उठाकर उस दही के मटके को फोड़ दिया (और आप वहाँ से चलते बने।)।।3।। |
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