श्रीनारायणीयम्
एकपञ्चाशत्तमदशकम्
अघासुर-वध
ईश! एक बार आपने ऐसा निश्चय किया कि आज का कलेवा व्रज बालकों के साथ वन में ही किया जाय। इसलिए बड़े ही तड़के उठकर बहुत से वत्स समूहों से घिरे हुए आप व्यंञ्जनयुक्त भोजन-सामग्री लेकर वन को चल दिये।।1।।
वन जाते हुए आपके दोनों चरणकमलों से उठी हुई त्रिलोक पावनी धूल को महर्षियों ने अपने पुलकित शरीरं पर धारण कर लिया। उस समय वे आपके दर्शनोत्सव की लालसा से आये हुए थे।।2।।
विभो! जब आप ग्वालबालों के साथ प्रचुर घास वाले भूतल पर बछड़ों को चरा रहे थे, उसी समय भयानक अघासुर पाप कर्म करने के लिए अजगर का रूप धारण करके मार्ग को रोककर बैठ गया।।3।। |
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