श्रीनारायणीयम्
षण्णवतितमदशकम्
भगवद्विभूति तथा कर्म, ज्ञान और भक्ति के अधिकारी का वर्णन एवं चित्तोपशम के लिए प्रार्थना
महान् शक्तिशाली विश्वमूर्ते! आप ही साक्षात् परब्रह्म हैं। आप ही अक्षरों में अकार, मन्त्रों में प्रणव और राजाओं में आदिराज मनु हैं। ब्रह्मर्षियों में भृगु, देवर्षियों में नारद, दानवों में प्रह्लाद, पशुओं में सुरभि, पक्षियों में गरुड़, नागों में अनन्त और नदियों में गंगा भी आप ही हैं।।1।।
आप ब्राह्मण भक्तों में बलि हैं। यज्ञों में जप-यज्ञ, वीरों में अर्जुन और भक्तों में उद्धव के रूप में आप ही वर्तमान हैं। आप ही बलवानों के बल तथा तेजस्वियों के तेज हैं। कहाँ तक कहूँ, आपकी विभूति का अन्त नहीं है। अतः जितनी अतिशय विकासयुक्त वस्तुएँ हैं, उन सबके रूप में आप ही हैं। आप ही जीव तथा आप ही प्रधान (प्रकृति) हैं। इस प्रपञ्च में ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जो आपसे रहित हो।।2।। |
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