श्रीनारायणीयम्
त्रयोविंशतितमदशकम्
भगवन्! प्रचेताओं के पुत्र दक्ष, जो ब्रह्मपुत्र दक्ष से भिन्न थे, प्रजासर्ग की वृद्धि की कामना से आपकी उपासना करने लगे। तब आप आठ भुजाओं से सुशोभित होकर उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आपने वरदान तथा अस्विनी नाम की भार्या प्रदान की।।1।।
ईश। उन दक्ष के हर्यश्वसंज्ञक दस हजार तथा शबलाश्व नामक एक हजार पुत्र उत्पन्न हुए। वे सब-के-सब श्रीनारद के निवृत्ति-मार्गोपदेश से आपके मार्ग-मोक्ष प्राप्त हो गये। तब दक्ष ने देवर्षि नारद को शाप दिया कि तुम एक स्थान पर स्थिर नहीं रह सकते। भक्तश्रेष्ठ देवर्षि ने उसे अपने लिये अनुग्रह ही माना ॥2॥ |
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