श्रीनारायणीयम्
द्वितीयस्कन्धपरिच्छेदः
चतुर्थदशकम्
प्रभो! मुझे उतनी नीरोगता प्रदान कर दीजिए जितनी से मैं आपकी उपासना का अनुष्ठान कर सकूँ, क्योंकि यह निश्चित है कि यदि मैं नीरोग हो जाऊँ तो संपूर्णरूप से यम-नियमादि अष्टांगयोग के अनुष्ठान द्वारा शीघ्र ही आपकी प्रसन्नता प्राप्त कर लूँगा।।1।।
ब्रह्मचर्य की दृढ़ता आदि यमों तथा स्नान आदि नियमों के द्वारा पवित्र होकर आपके परायण हुए हम पद्मासन आदि सुखासनों को भी दृढ़ कर रहे हैं।।2।।
तदनन्तर अंदर प्रणव का निरंतर अनुचिन्तन करके तथा प्राणवायु का (पूरक-रेचक-कुम्भक द्वारा) संयमन करके निर्मल हुए हम इंद्रियों को उनके विषयों से हटाकर आपकी उपासना में तत्पर हो जाएंगे।।3।। |
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