श्रीनारायणीयम्
अष्टासप्ततितमदशकम्
बलराम जी का विवाह तथा श्रीकृष्ण का विप्र द्वारा संदेश पाकर रुक्मिणी-स्वयंवर में कुण्डिनपुर जाना
जिसके निर्माण में विश्वकर्मा द्वारा अपना सारा कला-कौशल बढ़ा-चढ़ाकर लगा दिया गया था, जिसे लोकपालों ने समस्त विभूतियाँ प्रदान कर रखी थीं तथा जो समुद्र के मध्य में विराजमान थी, उस नवीनपुरी द्वारका को आप अपनी प्रशस्त देहकान्ति से सुशोभित करने लगे।।1।।
भूपाल रेवत ने ब्रह्मा जी की आज्ञा से अपनी कन्या रेवती बलराम जी को दे दी थी। तब आपने हर्षपूर्वक एकत्रित हुए यादवों के साथ उस महान् विवाहोत्सव को संपन्न किया।।2।।
देव! तदनन्तर विदर्भराज की कन्या रुक्मिणी को, जो आप में अनुराग रखने वाली थी, अकेला उसका सहोदर भाई रुक्मी चेदिराज शिशुपाल को देना चाहता था; क्योंकि अपने अज्ञान के कारण वह असाधु चेदिराज का ही आश्रय ले रहा था।।3।। |
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