श्रीनारायणीयम्
अशीतितमदशकम्
स्यमन्तकोपाख्यान
भगवन्! आपने एक लोभी व्यक्ति की तरह सत्राजित् को सूर्यदेव से प्राप्त हुई दिव्य स्यमन्तक मणि की उनसे याचना की। निश्चय ही, इस मणि-याचना के मुझे अनेक कारण प्रतीत हो रहे हैं। उन्हीं कारणों में एक कारण यह भी है कि सत्राजित् की कन्या सत्यभामा के साथ, जो आपमें ही निरत रहने वाली थी, इसी मणि-याचना के व्याज से आप विवाह करना चाहते थे।।1।।
परंतु संकीर्ण मन वाले सत्राजित् ने वह श्रेष्ठ मणि आपको नहीं दी। एक बार उसका छोटा भाई प्रसेन उस मणि को गले में धारण करके वन में शिकार खेलने के लिए गया। वहाँ उस मणि की चमक में मांस का भ्रम हो जाने के कारण एक सिंह ने प्रसेन को मार डाला। (अभी वह थोड़ी ही दूर गया था कि) वानर- भालुओं के सरदार जाम्बवान् ने सिंह को मारकर मणि छीन ली और उसे बच्चे को खेलने के लिए दे दिया।।2।। |
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