श्रीनारायणीयम्
त्र्यशीतितमदशकम्
पौण्ड्रक-वध, काशीपुरी दहन और बलभद्र जी के प्रताप का वर्णन
तदनन्तर जब बलराम जी एक बार गोकुल गये हुए थे, वहाँ मद से उन्मत्त होकर वे प्रमदाओं के साथ विहार कर रहे थे, तब जल विहार के हेतु बुलाने पर भी यमुना के न आने पर उन्होंने यमुना का दमन किया। पुनः स्वच्छन्दतापूर्वक वे जल विहार में रम गये। उसी समय सेवकों के ‘आप ही जगदीश्वर हैं’- यों कहने से जिसकी बुद्धि मोहाच्छन्न हो गयी थी, उस पौण्ड्रक वासुदेव ने आपके पास दूत भेजकर कहलाया।।1।।
‘मैं ही नारायण हूँ और इस भूतल पर अवतीर्ण हुआ हूँ। तुम भी मेरी श्रीवत्स-कौस्तुभ आदि चिह्नों को धारण करते हो, अतः उन्हें छोड़कर तुम मेरी शरण में आ जाओ।’ इस प्रकार दूत ने महाराज उग्रसेन की सभा में आकर आपसे कहा। यह सुनकर सभी लोग उस दूत की हँसी उड़ाने लगे।।2।। |
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