श्रीनारायणीयम्
चतुश्चत्वारिंशत्तमदशकम्
श्रीकृष्ण के जातकर्म आदि संस्कार का वर्णन
विभो! जिन्हें ज्यौतिष शास्त्र का यथार्थ तत्त्व सम्यक् प्रकार से विदित था, वे मुनि गर्गाचार्य वसुदेव जी के कहने से गुप्त रूप से आप निष्क्रिय का नामकरणादि संस्कार करने के लिए आपके घर पर पधारे।।1।।
उन्हें देखकर नन्द जी का हृदय आह्लादित हो उठा। उन्होंने संयमशीलों में देवतुल्य वन्दनीय गर्गमुनि का यथाविधि आदर-सत्कार किया। तदनन्तर उत्सुकचित्त होकर मंद मुसकराहट आर्द्र वाणी में उन्होंने मुनि से आपके संस्कार करने के लिए कहा।।2।।
तब गर्गाचार्य जी ने यों उत्तर दिया- ‘आर्य! मैं यदुवंश का आचार्य हूँ, अतः यह कार्य अत्यंत गुप्तरूप से संपन्न होना चाहिए। (क्योंकि मेरे संस्कार करने से कहीं कंस को शंका न हो जाय कि यह यदुकुमार है।)’ तदनन्तर आपके स्पर्श से पुलकित शरीर वाले गर्गमुनि अग्रजसहित आपका नामकरण करने को उद्यत हुए।।3।। |
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