नारायणीयम पृ. 61

श्रीनारायणीयम्‌

त्रयोदशदशकम्

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हिरण्याक्ष का युद्ध, उसका वध तथा यज्ञ वराह की स्तुति

हिरण्याक्षं तावद्वरद भवदन्वेषणपरं
चरन्तं सांवर्ते पयसि निजजंघापरिमिते।
भवद्भक्तो गत्वा कपटपटुधी र्नारदमुनिः
शनैरूचे नन्दन् दनुजमपि निन्दंस्तव बलम्।।1।।

वरद! भूमिका उद्धार करते समय जब हिरण्याक्ष अपनी जंघा के बराबर जल वाले प्रलय-पयोधि में आपके अन्वेषण में तत्पर होकर विचर रहा था, तब कपट करने में निपुण बुद्धि वाले आपके भक्त नारदमुनि उसके निकट जाकर आपके भी बल की निन्दा करके उस दानव की प्रशंसा करते हुए नम्रतापूर्वक बोले-।।1।।

स मायावी विष्णुर्हरति भवदीयां वसुमतीं
प्रभो कष्टं कष्टं किमिदमिति तेनाभिगदितः।
नदन् क्वासौ क्वासाविति स मुनिना दर्शितपथो
भवन्तं सम्प्रापद्धरणिधर मुद्यन्तमुदकात्।।2।।

‘सामर्थ्यशाली दानवराज! वह मायावी (वराहरूपधारी) विष्णु आपकी (ब्रह्मा के पास से अपहरण करके लायी हुई) वसुधा को चुराये लिये जा रहा है। कष्ट है! कष्ट है! यह क्या बात है?’ इस प्रकार नारद द्वारा प्रोत्साहित किए जाने पर उसने सिंहगर्जना करके ‘वह कहाँ है? वह कहाँ है?’ यों पूछा। तब मुनि नारद ने जिसे आपका मार्ग बतलाया था वह हिरण्याक्ष धरणी को धारण करके जल से निकलते हुए आपके पास जा पहुँचा।।2।।

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नारायणीयम
क्रमांक विषय पृष्ठ संख्या
(प्रथम स्कन्ध परिच्छेद)
1. भगवन्महिमा का वर्णन 1
2. भगवद्रूप तथा भगवद्भक्ति का वर्णन 6
3. भक्त-स्वरूप-वर्णन तथा भक्ति-प्रार्थना 11
(द्वितीय स्कन्ध परिच्छेद)
4. अष्टांगयोग तथा योग सिद्धि का वर्णन 16
5. विराट पुरुष की उत्पत्ति का वर्णन 21
6. विराट शरीर के जगत्स्वरूपत्व का वर्णन 26
7. हिरण्य गर्भ की उत्पत्ति, तपश्चरण, वैकुण्ठस्वरूप, भगवत्स्वरूप-साक्षात्कार तथा भगवदनुग्रह का वर्णन 31
(तृतीय स्कन्ध परिच्छेद)
8. प्रलयानन्तर जगत्‌ की सृष्टि का वर्णन 36
9. जगत की सृष्टि का वर्णन 42
10. सृष्टि-भेद-वर्णन 47
11. सनकादि का वैकुण्ठ में प्रवेश, जय-विजय को शाप तथा हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष की उत्पत्ति 52
12. वराहावतार और भूमि के उद्धार का वर्णन 56
13. हिरण्याक्ष का युद्ध, उसका वध तथा यज्ञवराह की स्तुति 61
14. कपिलोपाख्यान 66
15. कपिलोपदेश 70
(चतुर्थ स्कन्ध परिच्छेद)
16. नर-नारायण का चरित तथा दक्ष-यज्ञ का वर्णन 75
17. ध्रुव-चरित 80
18. पृथु-चरित 86
19. दक्षोत्पति-वर्णन 91
(पञ्चम स्कन्ध परिच्छेद)
20. ऋषभ-चरित 95
21. जम्बूद्वीप आदि द्वीपों में भगवदुपासना की भिन्नता का वर्णन 99
(पष्ठ स्कन्ध परिच्छेद)
22. अजामिलोपाख्यान 105
23. चित्रकेतु का उपाख्यान तथा मरुद्गणों की उत्पत्ति 110
(सप्तम स्कन्ध परिच्छेद)
24. प्रह्लाद-चरित में नृसिंह भगवान का प्राकट्य 116
25. प्रह्लाद-चरित 121
(अष्टम स्कन्ध परिच्छेद)
26. गजेन्द्र-मोक्ष 126
27. अमृत-मन्थन 131
28. अमृत-मन्थन 137
29. मोहिनी-अवतार का वर्णन 140
30. वामन-चरित 145
31. वामन-चरित 150
32. मत्स्यावतार का वर्णन 155
(नवम स्कन्ध परिच्छेद)
33. अम्बरीष-चरित 158
34. श्रीराम-चरित 163
35. श्रीराम-चरित 168
36. परशुराम-चरित 173
(दशम स्कन्ध परिच्छेद)
37. कृष्णावतार के प्रसंग का वर्णन 179
38. श्रीकृष्ण का गोकुल-गमन 184
39. वसुदेवजी द्वारा योगमाया का लाया जाना 189
40. पूतना-उद्धार 195
41. पूतना के शव का दाह और गोपियों का आनन्द 198
42. शकटासुर-उद्धार 201
43. तृणावर्त-वध 205
44. श्रीकृष्ण के जातकर्म आदि सस्कांर का वर्णन 210
45. श्रीकृष्ण की बालक्रीड़ा 213
46. विश्वरूप-प्रदर्शन 218
47. श्रीकृष्ण का ओखली से बाँधा जाना 221
48. यमलार्जुन-उद्धार 224
49. वृन्दावन-गमन 227
50. वत्सासुर तथा बकासुर का वध 230
51. अघासुर-वध 235
52. ब्रह्मा का मोह 240
53. धेनुकासुर-वध 245
54. कालियोपाख्यान 248
55. कालियोपाख्यान 253
56. कालिय पर कृपा तथा श्रीकृष्ण द्वारा दावानल का पान 256
57. प्रलम्बासुर का वध 260
58. इषीक-वन में गौओं का दावानल से उद्धार 264
59. वेणुगीत और गोपियों का अनुराग 269
60. चीरहरण-लीला 272
61. द्विज-पत्नियों का मोक्ष 276
62. इन्द्रयाग-निवारण 281
63. गोवर्धन-धारण 286
64. गोविन्द पद पर अभिषेक और नन्दजी का वरुण लोक से आनयन 291
65. रासक्रीडा के लिये गोपियों का आगमन 295
66. धर्मोपदेश तथा क्रीडा 300
67. श्रीकृष्ण का अन्तर्धान, गोपियों द्वारा उनका अन्वेषण तथा फिर उनका प्राकट्य 303
68. गोपियों की आनन्द परवशता, प्रणय-कोप एवं भगवान द्वारा दी गयी सान्त्वना 307
69. रासक्रीडा 310
70. सुदर्शन का शाप से उद्धार तथा शखंचूड़ और वृषभासुर का वध 316
71. केशी और व्योमासुर का वध 321
72. अक्रूर का आगमन 325
73. मथुरापुरी की यात्रा 331
74. भगवान का मथुरा में प्रवेश, रजक-निग्रह, दर्जी, माली और कुब्जा पर कृपा तथा धनुर्भंग 334
75. कुवलयापीड, चाणूर, मुष्टिक और भाइयों सहित कंस का वध तथा उग्रसेन को राज्यप्राप्ति 339
76. श्रीकृष्ण और बलराम का गुरुकुल-वास तथा उद्धव का दौत्य कर्म 344
77. कुब्जा की कामनापूर्ति, अक्रूर के घर जाना, जरासंध आदि से युद्ध, कालयवन-उद्धार और मुचुकुन्द पर कृपा 350
78. बलरामजी का विवाह तथा श्रीकृष्ण का विप्र द्वारा संदेश पाकर रुक्मिणी-स्वयंवर में कुण्डिपुर जाना 356
79. रुक्मिणी का हरण तथा परिणय 359
80. स्यमन्तकोपाख्यान 366
81. सुभद्रा-हरण, श्रीकृष्ण के अन्य विवाहों की कथा और नरकासुर का उद्धार 369
82. ऊषा-परिणय, बाणासुर-युद्ध और नृग के शाप मोक्ष का वर्णन 374
83. पौण्ड्रक-वध, काशीपुरी-दहन और बलभद्रजी के प्रताप का वर्णन 379
84. समन्तपञ्चक यात्रा-वर्णन 384
85. जरासंध-वध तथा युधिष्ठिर के राजसूय-यज्ञ का वर्णन 388
86. शाल्व और दन्तवक्त्र का उद्धार तथा महाभारत-युद्ध का वर्णन 394
87. सुदामा-चरित 400
88. देवकी के मरे हुए पुत्रों को वापस लाना, श्रुतदेव और बहुलाश्वर कृपा तथा अर्जुन का गर्व-हरण 403
89. वृकासुर-वध तथा त्रिदेवों में विष्णु की श्रेष्ठता का वर्णन 409
90. आगमों का भगवद्विषयक तात्पर्य-निरूपण 414
(एकादश स्कन्ध परिच्छेद)
91. नि:श्रेयसप्रदायिनी भक्ति का स्वरूप-वर्णन 420
92. कर्ममिश्रित भक्ति के स्वरूप का वर्णन 425
93. पचीस गुरुओं की शिक्षा का वर्णन 430
94. तत्त्व ज्ञानोत्पत्ति प्रकार, बन्ध-मोक्ष स्वरूप तथा अभक्तनिन्दापूर्वक भक्ति-प्रार्थना 436
95. भक्ति द्वारा विशुद्ध चित्त की ही भगवत्स्वरूप-ध्यानयोग्यता का वर्णन 441
96. भगवद्विभूति तथा कर्म, ज्ञान और भक्ति के अधिकारी का वर्णन एवं चित्तोपशम के लिये प्रार्थना 446
(द्वादश स्कन्ध परिच्छेद)
97. उत्तम भक्ति के लिये प्रार्थना और मार्कण्डेय-चरित 451
98. ब्रह्म से जगत की उत्पत्ति आदि का निरूपण 456
99. भगवन्महिमा का वर्णन 426
100. भगवत-केशादि-पादान्त रूप का वर्णन 467
101. अंतिम पृष्ठ 472

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