श्रीनारायणीयम्
एकत्रिंशत्तमदशकम्
वामन चरित
किसी से पराजित न होने वाले भगवन्! तत्पश्चात् आपके श्रीविग्रह के तेज को देखकर दैत्यराज बलि ने प्रसन्नतापूर्वक षोडशोपचार-विधि से आपकी आराधना करके हाथ जोड़कर यों कहा- ‘ब्राह्मण कुमार! स्पष्ट बतलाइये, आप मुझसे धन, भोजन, भवन अथवा भूमि- क्या प्राप्त करना चाहते हैं? मैं आपको सब कुछ प्रदान करूँगा’।।1।।
बलि की उस अक्षीण-जगदीश्वरत्व को प्रकट करने वाली वाणी को सुनकर करुणामूर्ति होने पर भी आपने उसके गर्व का शमन करने के लिए उद्यत हो दैत्यवंश की प्रशंसा करते हुए उससे तीन पग भूमि की याचना की; क्योंकि ‘सर्वं देहि’- ‘सब दो’- यह कहने पर वह वचन किसके लिए हास्यास्पद नहीं होता? अर्थात् सभी उसकी हँसी उड़ाते, इसी से तीन पग भूमि ही माँगी।।2।। |
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