श्रीनारायणीयम्
षट्पञ्चाशत्तमदशकम्
कालिय पर कृपा तथा श्रीकृष्ण द्वारा दावानल का पान
ईश! इस प्रकार आप दीर्घकाल तक कालिय के फणों पर नृत्य करते रहे। उस समय आपका कुण्डल मंडल सुंदर ढंग से हिल रहा था और देवांगनाएँ आकाश में देवों द्वारा बजायी जाती हुई दुन्दुभियों के मधुर स्वर के साथ सुन्दर गान कर रही थीं।।1।।
हरे! उस नाग का जो-जो फण झुक जाता था, उसे-उसे छोड़कर आप दूसरे ऊँचे-ऊँचे फणों पर चढ़ जाते और अपने चरण कमलों द्वारा उसे मथ डालते थे। इस प्रकार चिरकाल तक आप क्रीड़ा करते रहे और अपने हाथों पर ताल देते रहे, जिससे वह नृत्य हृदय को आकर्षित कर रहा था।।2।।
माधव! आपके चरण-प्रहार से जिसके फणसमूह छिन्न-भिन्न हो और जिसके रक्त-वमन करने से यमुना का जल लाल हो रहा था, उस नागराज कालिय के शिथिल पड़ने पर नागपत्नियाँ आपके चरणों में जा गिरीं।।3।। |
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