श्रीनारायणीयम्
द्वात्रिंशत्तमदशकम्
मत्स्यावतार का वर्णन
प्राचीन काल में छठे चाक्षुषमन्वन्तर की समाप्ति के समय अवान्तर प्रलय के अवसर पर जब ब्रह्मा जी निद्रोन्मुख हो रहे थे, उस समय उनके मुख से महासुर हयग्रीव ने वेदों को चुरा लिया। तब आपने (वेदों का उद्धार करने के लिए) मत्स्य-रूप धारण करने की इच्छा की।।1।।
उसी समय द्रविड़ देश के अधिपति महाराज सत्यव्रत कृतमाला नदी में जल में तर्पण कर रहे थे, उनके हाथ की अञ्जलि में आप एक चमकती हुई आकृति वाली छोटी सी मछली के रूप में दिखायी पड़े।।2।।
राजर्षि सत्यव्रत ने आपको जल में फेंक दिया, परंतु पुनः आपको चकित देखकर वे आपको जलपात्र में रखकर अपने घर ले आये। विभो! वहाँ आपने थोड़े ही दिनों में बढ़कर क्रमशः कलश, कूप, बावड़ी तथा सरोवरों को अपने शरीर से आच्छादित कर लिया।।3।। |
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