श्रीनारायणीयम्
दशमस्कन्धपरिच्छेदः
सप्तत्रिंशत्तमदशकम्
कृष्णावतार के प्रसंग का वर्णन
घनीभूत आनन्दस्वरूप भगवन्! प्राचीनकाल में देवासुर संग्राम में आपने जिन राक्षसों का वध किया था, उनमें से भी कुछ राक्षस कर्मभोग शेष होने के कारण मोक्ष को नहीं प्राप्त हुए थे, अतः उन्हें पुनः भूतल पर जन्म लेना पड़ा। उन दैत्यों के भार से अत्यंत पीड़ित हुई भूमि पहले से ही उपस्थित देवताओं के साथ सत्यलोकस्थित ब्रह्मा के पास जाकर कहने लगी-।।1।।
‘हाय! हाय!! ब्रह्मान्! महान् कष्ट है! दुर्जनों के अतिशय भार से पीड़ित तथा समुद्र में मग्नप्राय मुझ अबला की रक्षा कीजिए। खेद है! मेरी विवशता इन देवताओं से पूछ लीजिए।’ हरे! यों बहुत तरह से प्रलाप करती हुई पृथ्वी को देखकर ब्रह्मा चारों दिशाओं में देवताओं के मुखों की ओर दृष्टिपात करके आपके ध्यान में मग्न हो गये।।2।। |
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज