श्रीनारायणीयम्
त्रिसप्ततितमदशकम्
मथुरापुरी की यात्रा
आपके मथुरा जाने की बात सुनकर गोप किशोरियाँ अत्यंत आर्त हो उठीं। ‘यह क्या, यह क्या, ऐसा कैसे होगा?’ इस प्रकार कहती हुई वे सब की सब एकत्र हो विलाप करने लगीं।।1।।
‘ये नन्दनन्दन तो करुणा के सागर हैं, हम गोपियों का इनके सिवा कोई नाथ या रक्षक नहीं है। फिर ये हमें कैसे त्याग सकते हैं। हाय! क्या हमारा भाग्य ऐसा ही था?’- ऐसा कहकर आपमें ही चित्त लगायी हुई वे गोपियाँ विलाप कर रही थीं।।2।।
रात के पिछले पहर में अपने पिता और मित्र मण्डली के साथ जब आप प्रस्थान करने लगे, तब उन गोपांगनों के भारी संताप को शान्त करने के लिए आपने अपने एक सखा को भेज दिया।।3।। |
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