श्रीनारायणीयम्
सप्ततितमशकम्
सुदर्शन का शाप से उद्धार तथा शंखचूड़ और वृषभासुर का वध
इस प्रकार आप रसमग्न होकर जब अपनी वल्लभाओं को रमण-सुख प्रदान कर चुके, तब एक दिन बहुत से गोप आपके साथ अम्बिकेशपुर के अम्बिका वन में गये। वहाँ रात में दिव्य उत्सव का सेवन कर वे सब लोग सुखपूर्वक सोये। उसी समय एक भयंकर अजगर आकर नन्दराय जी की लीलने लगा।।1।।
जगदीश्वर! तब गोपों ने जलती हुई लुआठी लेकर जोर-जोर से उस अजगर के ऊपर उठे मुख पर मारना आरंभ किया। तथापि जब उसने नन्द जी को नहीं छोड़ा, तब समस्त गोपमण्डली ‘बचाओ, बचाओ’- ऐसा कहकर आपके चरणों में गिर पड़ी। तब आपने निकट जाकर एक पैर से उस नाग को छू दिया। इतने ही से वह अपने विद्याधरोचित रूप को ग्रहण करके वहाँ प्रकाशित हो उठा।।2।। |
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