श्रीनारायणीयम्
सप्तमस्कन्धपरिच्छेदः
चतुर्विंशतितमदशकम्
प्रह्लाद-चरित में नृसिंह भगवान् का प्राकट्य
देव! जब आपने श्रेष्ठ वाराह-मूर्ति धारण करके हिरण्याक्ष को मार डाला, तब उसके सहोदर भाई हिरण्यकशिपु का धैर्य शोक और क्रोध के कारण जाता रहा। मुरारे! फिर तो उसने असुरों की सभा में आपके वध के लिए प्रतिज्ञा की।।1।।
तब उसने घोर तपस्या करके कुछ ही दिनों में अपने समक्ष ब्रह्मा का साक्षात्कार किया। उनसे देव, मनुष्य और पशु आदि से न मारे जाने का वरदान प्राप्त करके गर्वित हो उठा। फिर तो आपकी कुछ भी परवाह न करते हुए इस जगत् को, जिसके आप ही एकमात्र स्वामी हैं, पीड़ित करके उसने स्वर्गलोक को भी इंद्र से छीन लिया।।2।। |
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