श्रीनारायणीयम्
दशमदशकम्
सृष्टि-भेद-वर्णन
वैकुण्ठ! तदनन्तर आपकी कृपा से जिनका बल बढ़ा हुआ था, वे पद्मजन्मा ब्रह्मा जीव-शरीरों की रचना करने लगे। उन्होंने वृक्ष आदि स्थावरों, तिर्यग्योनि वालों की विभिन्न जातियों, मनुष्य-समुदायों तथा अनेक विधि देवों की रचना की।।1।।
तत्पश्चात् उन्होंने मिथ्याग्रह (आत्मा से भिन्न प्रपञ्च के अस्तित्व की प्रतीति), अस्मिमति (अस्मिता-शरीरादि में अहंताभिमान), राग (आसक्ति), विकोप (धनादि के अपहरण करने वाले पर क्रोध) तथा भीति (उपभोग्य पदार्थों के व्यय-नाश-जनित भय)- यों पाँच प्रकार की अज्ञानवृत्ति का निर्माण किया; तदनन्तर प्रभूत तामस पदार्थों की रचना से उनका मन खिन्न हो गया। तब वे आत्मशुद्धि के लिए आपके चरणों का ध्यान करने लगे।।2।। |
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज