श्रीनारायणीयम्
चतुःषष्टितमदशकम्
गोविन्दपद पर अभिषेक और नन्द जी का वरुणलोक से आनयन
पर्वत को उठाना आदि आपके भारी प्रभाव को देखकर समस्त गोपों ने आपको जगदीश्वर माना और नन्दराय से आपकी जन्मकुण्डली का फल पूछा।।1।।
तब आपके पिता नन्द ने स्वजन वर्ग को आपका वह प्रभाव कह सुनाया, जिसे मुनिवर गर्गाचार्य ने बताया था। उसे सुनकर गोपों का आपके प्रति पहले से भी अधिक अनुराग और अत्यंत समादर का भाव बढ़ गया।।2।।
तदनन्तर जिन्हें अपमान मिलने से तत्त्व का बोध हो गया था, वे देवराज इंद्र देवलोक की गौ सुरभि के साथ आपके पास आये। उनका सारा गर्व गल गया था। अतः उन्होंने अपने मणिमय मुकुट से आपके चरणारविन्द का स्पर्श करके स्तवन किया।।3।। |
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