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भगवन्महिमा का वर्णन
- सान्द्रानन्दावबोधात्मकमनुपमितं कालदेशावधिभ्यां
- निर्मुक्तं नित्यमुक्तं निगमशतसहस्रेण निर्भास्यमानम्।
- अस्पष्टं दृष्टमात्रे पुनरुरुपुरुषार्थात्मकं ब्रह्मतत्त्वं
- तत्तावद्भाति साक्षाद् गुरुपवनपुरे हन्त भाग्यं जनानाम् ।।1।।
घनीभूत आनन्द और ज्ञान जिसका स्वरूप है जो उपमारहित है, काल और देश की अवधि से निर्मुक्त है, लाख-लाख वेद-वाक्यों द्वारा अस्पष्ट रूप से निर्भास्यमान है तथा दर्शन करने मात्र से जो साधकों के लिए महान पुरुषार्थ (मोक्ष)- रूप हो जाता है- ऐसा जो ब्रह्म तत्त्व है, वह गुरुपवनपुर[1]- में साक्षात रूप से प्रकाशित हो रहा है। यह जनसमुदाय के लिए कितने सौभाग्य की बात है! ।।1।।
- एवं दुर्लभ्यवस्तुन्यपि सुलभतया हस्तलब्धे यदन्यत्
- तन्वा वाचा धिया वा भजति बत जनः क्षुद्रतैव स्फुटेयम्।
- एते तावद् वयं तु स्थिरतरमनसा विश्वपीडापहत्यै
- निश्शेषात्मानमेनं गुरुपवनपुराधीशमेवाश्रयामः।।2।।
ऐसी दुर्लभ वस्तु भी सुलभ होकर जब हाथ में आ गयी हो, तब भी मनुष्य शरीर, वाणी और बुद्धि द्वारा जो अन्य किसी की सेवा करता है, यह स्पष्ट रूप से उसकी क्षुद्रता ही है। किंतु हम लोग तो समस्त पीड़ाओं के नाश के लिए अत्यंत निश्चल मन से सर्वस्वरूप इन गुरुपवनपुराधीश का ही आश्रय लेते हैं ।।2।।
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