श्रीनारायणीयम्
चतुर्थदशकम्
आपके अस्फुट श्रीविग्रह में प्रयत्नपूर्वक बारंबार बुद्धि को लगायेंगे। उससे भक्तिरूपी रस और हृदय की स्नेहार्द्रता को प्राप्त कर लेंगे। तत्पश्चात् हम आपके चरणों की चिंतना करने वाले हो जायेंगे।।4।।
जिसके पादादिकेशान्त अवयवभेद स्पष्ट रूप से प्रतीत हो रहे हैं ऐसे सौंदर्यशाली आपके श्रीविग्रह का चिरकाल तक धारणा-ध्यान के अभ्यास से अनायास ही मन में ध्यान होने लगता है। इस प्रकार हम ध्यानयोग के परायण होकर आपके भक्त हो जायेंगे।।5।।
अयि भगवन्! आपकी ऐसी कलामयी मूर्ति का ध्यान करने वालों तथा अभिव्यक्त हुई मधुरता से अपहृत हुए मन वालों के हृदय में सांद्रानन्दैकरस्वरूप आपका स्वरूपभूत ब्रह्म अवभासित होता है।।6।। |
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