श्रीनारायणीयम्
षष्ठदशकम्
भगवान! अखिल विश्व की रचना आपका दृष्टिपात है। दिशाएँ आपके दोनों कान, दोनों अश्विनी कुमार दोनों नासिकाएँ, लोभ अधरोष्ठ, लज्जा उत्तरोष्ठ, तारागण दाँत और यमराज दाढ़ हैं।।5।।
ईश! आपकी लीलापूर्ण हँसी माया, श्वास वायु देवता, जिह्वा जल, वचन पक्षिसमूह, षड्ज आदि स्वरसमुदाय सिद्धगण, मुखछिद्र अग्नि, भुजाएँ देवगण तथा स्तनयुगल धर्मदेव हैं।।6।। |
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