- महाभारत अनुशासन पर्व के दानधर्म पर्व के अंतर्गत अध्याय 150 में ऋषियों और राजाओं के मंगलमय नामों के कीर्तन-माहात्म्य का वर्णन हुआ है।[1]
विषय सूची
महर्षियों के नामों का वर्णन
अब श्रेष्ठ महर्षियों के नाम बता रहा हूँ- यवक्रीत, रैभ्य, अर्वावसु, परावसु, उशिज के पुत्र कक्षीवान, अंगिरानन्दन बल, मेधातिथि के पुत्र कण्व ऋषि और वर्हिषद- ये सब ऋषि ब्रह्मतेज से सम्पन्न और लोकस्रष्टा बतलाये गये हैं। इनका तेज रुद्र, अग्नि तथा वसुओं के समान है। ये पृथ्वी पर शुभकर्म करके अब स्वर्ग में देवताओं के साथ आनन्दपूर्वक रहते हैं और शुभफल का उपभोग करते हैं।
महेन्द्र के गुरु सातों महर्षि पूर्व दिशा में निवास करते हैं। जो पुरुष शुद्धचित्त से इनका नाम लेता है, वह इन्द्रलोक में प्रतिष्ठित होता है। उन्मुच, प्रमुचु, शक्तिशाली स्वस्त्यात्रेय, दृढ़व्य, ऊर्ध्वबाहु, तृणसोमांगिरा और मित्रावरुण के पुत्र महाप्रतापी अगस्त्य मुनि- ये सात धर्मराज (यम)- के ऋत्विज हैं और दक्षिण दिशा में निवास करते हैं। दृढेयु, ऋतेयु, कीर्तिमान परिव्याध, सूर्य के सदृश तेजस्वी एकत, द्वित, त्रित तथा धर्मात्मा अत्रि के पुत्र सारस्वत मुनि- ये सात वरुण के ऋत्विज हैं और पश्चिम दिशा में इनका निवास है। अत्रि, भगवान वसिष्ठ, महर्षि कश्यप, गौतम, भरद्वाज, कुशिकवंशी विश्वामित्र और ऋचीकनन्दन प्रतापवान उग्रस्वभाव वाले जमदग्नि- ये सात उत्तर दिशा में रहने वाले और कुबेर के गुरु (ऋत्विज) हैं। इनके सिवा सात महर्षि और हैं जो सम्पूर्ण दिशाओं में निवास करते हैं।
वे जगत को उत्पन्न करने वाले हैं। उपर्युक्त महर्षियों का यदि नाम लिया जाय तो वे मनुष्यों की कीर्ति बढ़ाते और उनका कल्याण करते हैं। धर्म, काम, काल, वसु, वासुकि, अनन्त और कपिल- ये सात पृथ्वी को धारण करने वाले हैं। परशुराम, व्यास, द्रोणपुत्र, अश्वत्थामा और लोमश- ये चारों दिव्य मुनि हैं। इनमें से एक-एक सात-सात ऋषियों के समान हैं। ये सब ऋषि इस जगत में शान्ति और कल्याण का विस्तार करने वाले तथा दिशाओं के पालक कहे जाते हैं। ये जिस-जिस दिशा में निवास करें, उस-उस दिशा की ओर मुँह करके इनकी शरण लेनी चाहिये। ये सम्पूर्ण भूतों के स्रष्टा और लोकपावन बताये गये हैं। संवर्त, मेरुसावर्णि, धर्मात्मा मार्कण्डेय, सांख्य,योग, नारद, महर्षि दुर्वासा- ये सात ऋषि अत्यन्त तपस्वी, जितेन्द्रिय और तीनों लोकों में विख्यात हैं। इन सब ऋषियों के अतिरिक्त बहुत- से महर्षि रुद्र के समान प्रभावशाली हैं। इनका कीर्तन करने से ये ब्रह्मलोक की प्राप्ति कराने वाले होते हैं। उनके कीर्तन से पुत्रहीन को पुत्र मिलता है और दरिद्र को धन।[1]
राजाओं के मंगलमय नामों का कीर्तन माहात्म्य वर्णन
इनका नाम लेने वाले मनुष्य के धर्म, अर्थ और काम की सिद्धि होती है। वेन कुमार नृपश्रेष्ठ पृथु का, जिनकी यह पृथ्वी पुत्री हो गयी थी तथा जो प्रजापति एवं सार्वभौम सम्राट थे, कीर्तन करना चाहिये। सूर्यवंश में उत्पन्न और देवराज इन्द्र के समान पराक्रमी इला और बुध के प्रिय पुत्र त्रिभुवनविख्यात राजा पुरूरवा का नाम कीर्तन करें। त्रिलोकी के विख्यात वीर भरत का नामोच्चारण करे, जिन्होंने सत्ययुग में गवामय यज्ञ का अनुष्ठान किया था। उन विश्वविजयिनी तपस्या से युक्त, शुभ लक्षणसम्पन्न एवं लोकपूजित परम तेजस्वी महाराज रन्तिदेव का भी कीर्तन करें।
महातेजस्वी राजर्षि श्वेत का तथा जिन्होंने सगरपुत्रों को गंगाजल से आप्लावित करके उनका उद्धार किया था, उन महाराज भगीरथ का भी कीर्तन एवं स्मरण करे। वे सभी राजा अग्नि के समान तेजस्वी, अत्यन्त रूपवान, महान बलसम्पन्न, उग्रशरीर वाले परम धीर और अपने कीर्ति को बढ़ाने वाले थे। इन सबका कीर्तन करना चाहिये। देवताओं, ऋषियों तथा पृथ्वी पर शासन करने वाले राजाओं का कीर्तन करना चाहिये। सांख्ययोग, उत्तम हव्य-कव्य तथा समस्त श्रुतियों के आधारभूत परब्रह्म परमात्मा का कीर्तन सम्पूर्ण प्राणियेां के लिये मंगलमय परम पावन है। इनके बारंबार कीर्तन से रोगों का नाश होता है। इससे सब कर्मों में उत्तम पुष्टि प्राप्त होती है।
भारत! मनुष्य को प्रतिदिन सबेरे ओर शाम के समय शुद्धचित्त होकर भगवत-कीर्तन के साथ ही उपर्युक्त देवताओं, ऋषियों और राजाओं के भी नाम लेने चाहिये। ये देवता आदि जगत की रक्षा करते, पानी बरसाते, प्रकाश और हवा देते तथा प्रजा की सृष्टि करते हैं। ये ही विघ्नों के राजा विनायक, श्रेष्ठ, दक्ष, क्षमाशील और जितेन्द्रिय हैं। ये महात्मा सब मनुष्यों के पाप-पुण्य के साक्षी हैं। इनका नाम लेने परये सब लोग मानवों के अमंगल का नाश करते हैं। जो सबेरे उठकर इनके नाम और गुणों का उच्चारण करता है, उसे शुभ कर्मों के भोग प्राप्त होते हैं। उसके यहाँ आग और चोर का भय नहीं रहता तथा उसका मार्ग कभी रोका नहीं जाता। प्रतिदिन इन देवताओं का कीर्तन करने से मनुष्यों का दुःस्वप्न नष्ट हो जाता है।
वह सब पापों से मुक्त होता है और कुशलपूर्वक घर लौटता है। जो द्विज दीक्षा के सभी अवसरों पर नियमपूर्वक इन नामों का पाठ करता है, वह न्यायशील, आत्मनिष्ठ, क्षमावान, जितेन्द्रिय तथा दोष-दृष्टि से रहित होता है। रोग-व्याधि से ग्रस्त मनुष्य इसका पाठ करने पर पापमुक्त एवं नीरोग हो जाता है। जो अपने घर के भीतर इन नामों का पाठ करता है, उसके कुल का कल्याण होता है। खेत में इस नाम माला को पढ़ने वाले मनुष्य की सारी खेती जमी और उपजती है। जो गाँव के भीतर रहकर इस नामावाली का पाठ करता है, यात्रा करते समय उसका मार्ग सकुशल समाप्त होता है। अपनी, पुत्रों की, पत्नी की, धन की तथा बीजों और ओषधियों की भी रक्षा के लिये इस नामावली का प्रयोग करे। युद्धकाल में इन नामों का पाठ करने वाले क्षत्रिय के शत्रु भाग जाते हैं और उसका सब ओर से कल्याण होता है। जो देवयज्ञ और श्राद्ध के समय उपर्युक्त नामों का पाठ करता है, उस पुरुष के हव्य को देवता और कव्य को पितर सहर्ष स्वीकार करते हैं।[2]
उसके यहाँ रोग या हिंसक जन्तुओं का भय नहीं रहता। हाथी अथवा चोर से भी कोई बाधा नहीं आती। शोक कम हो जाता है और पाप से छुटकारा मिल जाता है।[3]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 150 श्लोक 22-46
- ↑ महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 150 श्लोक 47-66
- ↑ महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 150 श्लोक 67-82
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| नारद का पुण्डरीक को भगवान नारायण की आराधना का उपदेश
| ब्राह्मण और राक्षस का सामगुण विषयक वृत्तान्त
| श्राद्ध के विषय में देवदूत और पितरों का संवाद
| पापों से छूटने के विषय में महर्षि विद्युत्प्रभ और इन्द्र का संवाद
| धर्म के विषय में इन्द्र और बृहस्पति का संवाद
| वृषोत्सर्ग आदि के विषय में देवताओं, ऋषियों और पितरों का संवाद
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| अग्नि, लक्ष्मी, अंगिरा, गार्ग्य, धौम्य तथा जमदग्नि द्वारा धर्म के गूढ़ रहस्य का वर्णन
| वायु द्वारा धर्माधर्म के रहस्य का वर्णन
| लोमश द्वारा धर्म के रहस्य का वर्णन
| अरुन्धती, धर्मराज और चित्रगुप्त द्वारा धर्म सम्बन्धी रहस्य का वर्णन
| प्रमथगणों द्वारा धर्माधर्म सम्बन्धी रहस्य का कथन
| दिग्गजों का धर्म सम्बन्धी रहस्य एवं प्रभाव
| महादेव जी का धर्म सम्बन्धी रहस्य का वर्णन
| स्कन्ददेव का धर्म सम्बन्धी रहस्य का वर्णन
| भगवान विष्णु और भीष्म द्वारा धर्म सम्बन्धी रहस्यों के माहात्म्य का वर्णन
| जिनका अन्न ग्रहण करने योग्य है और जिनका ग्रहण करने योग्य नहीं है, उन मनुष्यों का वर्णन
| दान लेने और अनुचित भोजन करने का प्रायश्चित
| दान से स्वर्गलोक में जाने वाले राजाओं का वर्णन
| पाँच प्रकार के दानों का वर्णन
| तपस्वी श्रीकृष्ण के पास ऋषियों का आना
| ऋषियों का श्रीकृष्ण का प्रभाव देखना और उनसे वार्तालाप करना
| नारद द्वारा हिमालय पर शिव की शोभा का विस्तृत वर्णन
| शिव के तीसरे नेत्र से हिमालय का भस्म होना
| शिव-पार्वती के धर्म-विषयक संवाद की उत्थापना
| वर्णाश्रम सम्बन्धी आचार
| प्रवृत्ति-निवृत्तिरूप धर्म का निरूपण
| वानप्रस्थ धर्म तथा उसके पालन की विधि और महिमा
| ब्राह्मणादि वर्णों की प्राप्ति में शुभाशुभ कर्मों की प्रधानता का वर्णन
| बन्धन मुक्ति, स्वर्ग, नरक एवं दीर्घायु और अल्पायु प्रदान करने वाले कर्मों का वर्णन
| स्वर्ग और नरक प्राप्त कराने वाले कर्मों का वर्णन
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| योद्धाओं के धर्म का वर्णन
| रणयज्ञ में प्राणोत्सर्ग की महिमा
| संक्षेप से राजधर्म का वर्णन
| अहिंसा और इन्द्रिय संयम की प्रशंसा
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| उमा-महेश्वर संवाद में महत्त्वपूर्ण विषयों का विवेचन
| प्राणियों के चार भेदों का निरूपण
| पूर्वजन्म की स्मृति का रहस्य
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| पाशुपत योग का वर्णन
| शिवलिंग-पूजन का माहात्म्य
| पार्वती के द्वारा स्त्री-धर्म का वर्णन
| वंश परम्परा का कथन और श्रीकृष्ण के माहात्म्य का वर्णन
| श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन और भीष्म का युधिष्ठिर को राज्य करने का आदेश
| श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम्
| जपने योग्य मंत्र और सबेरे-शाम कीर्तन करने योग्य देवता
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| गायत्री मंत्र का फल
| ब्राह्मणों की महिमा का वर्णन
| कार्तवीर्य अर्जुन को वरदान प्राप्ति और उनमें अभिमान की उत्पत्ति का वर्णन
| ब्राह्मणों की महिमा विषयक कार्तवीय अर्जुन और वायु देवता का संवाद
| वायु द्वारा उदाहरण सहित ब्राह्मणों की महत्ता का वर्णन
| ब्राह्मणशिरोमणि उतथ्य के प्रभाव का वर्णन
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| भीष्म द्वारा श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन
| श्रीकृष्ण का प्रद्युम्न को ब्राह्मणों की महिमा बताना
| श्रीकृष्ण द्वारा दुर्वासा के चरित्र का वर्णन करना
| श्रीकृष्ण द्वारा भगवान शंकर के माहात्म्य का वर्णन
| भगवान शंकर के माहात्म्य का वर्णन
| धर्म के विषय में आगम-प्रमाण की श्रेष्ठता
| भीष्म द्वारा धर्माधर्म के फल का वर्णन
| साधु-असाधु के लक्षण तथा शिष्टाचार का निरूपण
| युधिष्ठिर का विद्या, बल और बुद्धि की अपेक्षा भाग्य की प्रधानता बताना
| भीष्म का शुभाशुभ कर्मों को ही सुख-दु:ख की प्राप्ति का कारण बताना
| नित्यस्मरणीय देवता, नदी, पर्वत, ऋषि और राजाओं के नाम-कीर्तन का माहात्म्य
| भीष्म की अनुमति से युधिष्ठिर का सपरिवार हस्तिनापुर प्रस्थान
भीष्मस्वर्गारोहण पर्व
भीष्म के अन्त्येष्टि संस्कार की सामग्री लेकर युधिष्ठिर आदि का आगमन
| भीष्म का धृतराष्ट्र और युधिष्ठिर को कर्तव्य का उपदेश देना
| भीष्म का श्रीकृष्ण आदि से देहत्याग की अनुमति लेना
| भीष्म का प्राणत्याग
| धृतराष्ट्र द्वारा भीष्म का दाह संस्कार
| गंगा का भीष्म के लिए शोक प्रकट करना और श्रीकृष्ण का उन्हें समझाना
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