- महाभारत अनुशासन पर्व के दानधर्म पर्व के अंतर्गत अध्याय 86 में कार्तिकेय का देवसेनापति पद पर अभिषेक और तारकासुर वध का वर्णन हुआ है।[1]
विषय सूची
देवताओं द्वारा स्कंद को अपनी प्रिय वस्तु भेंट
तदनन्तर तैंतीस देवता दसों दिशाऐं, दिक्पाल, रुद्र, धाता, विष्णु, यम, पूषा, अर्यमा, भग, अंश, मित्र, साध्य, वसु, वासव (इन्द्र), अश्विनीकुमार, जल (वरुण), वायु, आकाश, चन्द्रमा, नक्षत्र, ग्रहगण, रवि तथा दूसरे-दूसरे विभिन्न प्राणी जो देवताओं के आश्रित थे, सब-के-सब उस अद्भुत अग्निपुत्र ‘कुमार’ को देखने के लिये वहाँ आये।
ऋषियों ने स्तुति की और गन्धर्वों ने उनका यश गाया। ब्राह्मणों के प्रेमी उस कुमार छह मुख, बारह नेत्र, बारह भुजाऐं, मोटे कंधे और अग्नि तथा सूर्य के समान कांति थी। वे सरकण्डों के झुण्ड झुरमुट में सो रहे थे। उन्हें देखकर ऋषियों सहित देवताओं को बड़ा हर्ष प्राप्त हुआ और यह विश्वास हो गया कि अब तारकासुर मारा जायेगा। तदनन्तर सब देवता उन्हें उनकी प्रिय वस्तुऐं भेंट करने लगे। पक्षियों ने खेल-कूद में लगे हुए कुमार को खिलोने दिये, गरुड़ ने विचित्र पंखों से सुशोभित अपना पुत्र मयूर भेंट किया। राक्षसों ने सूअर और भेंसा- ये दो पशु उन्हें उपहार रूप में दिये। गरुड़ के भाई अरुण ने अग्नि के समान लाल वर्ण वाला एक मुर्गा भेंट किया। चन्द्रमा ने भेड़ दी, सूर्य ने मनोहर कांति प्रदान की, गोमाता सुरभि देवी ने एक लाख गौऐं प्रदान कीं। अग्नि ने गुणवान बकरा, इला ने बहुत से फल-फूल, सुधन्वा ने छकड़ा और विशाल कूबर से युक्त रथ दिये।। वरुण ने वरुणलोक के अनेक सुन्दर एवं दिव्य हाथी दिये। देवराज इन्द्र ने सिंह, व्याघ्र, हाथी, अन्यान्य पक्षी, बहुत से भयानक हिंसक जीव तथा नाना प्रकार के क्षत्र भेंट किये।
कार्तिकेय का सेनापति के पद पर अभिषेक
राक्षसों और असुरों का समुदाय उन शक्तिशाली कुमार के अनुगामी हो गये। उन्हें बड़ा देख तारकासुर ने युद्ध के लिये ललकारा, परंतु अनेक उपाय करके भी वह उन प्रभावशाली कुमार को मारने में सफल न हो सका। देवताओं ने गुहावासी कुमार की पूजा करके उनका सेनापति के पद पर अभिषेक किया और तारकासुर ने देवताओं पर जो अत्याचार किया था, सो कह सुनाया। महापराक्रमी देव सेनापति प्रभु गुह ने वृद्धि को प्राप्त होकर अपनी अमोघ शक्ति से तारकासुर का वध कर डाला। खेल-खेल में ही उन अग्निकुमार के द्वारा जब तारकासुर मार डाला गया, तब ऐश्वर्यशाली देवेन्द्र पुनः देवाताओं के राज्य पर प्रतिष्ठित किये गये। प्रतापी स्कन्द सेनापति के ही पद पर रहकर बड़ी शोभा पाने लगे। वे देवताओं के ईश्वर तथा संरक्षक थे और भगवान शंकर का सदा ही हित किया करते थे। ये अग्निपुत्र भगवान स्कन्द सुवर्णमय विग्रह धारण करते हैं। वे नित्य कुमारावस्था में ही रहकर देवताओं के सेनापति पद पर प्रतिष्ठित हुए हैं।
सुवर्ण कार्तिकेय जी के साथ ही उत्पन्न हुआ है और अग्नि का उत्कृष्ट तेज माना गया है। इसलिये वह मंगलमय, अक्षय एवं उत्तम रत्न है। कुरुनन्दन! नरेश्वर! इस प्रकार पूर्वकाल में वसिष्ठ जी ने परशुराम को यह सारा प्रसंग एवं सुवर्ण की उत्पत्ति और माहत्म्य सुनाया था। अतः तुम स्वर्णदान के लिये प्रयत्न करो। परशुराम जी सुवर्ण का दान करके सब पापों से मुक्त हो गये और स्वर्ग में उस महान स्थान को प्राप्त हुए जो दूसरे मनुष्यों के लिये सर्वथा दुर्लभ है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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| नारद का पुण्डरीक को भगवान नारायण की आराधना का उपदेश
| ब्राह्मण और राक्षस का सामगुण विषयक वृत्तान्त
| श्राद्ध के विषय में देवदूत और पितरों का संवाद
| पापों से छूटने के विषय में महर्षि विद्युत्प्रभ और इन्द्र का संवाद
| धर्म के विषय में इन्द्र और बृहस्पति का संवाद
| वृषोत्सर्ग आदि के विषय में देवताओं, ऋषियों और पितरों का संवाद
| विष्णु, देवगण, विश्वामित्र और ब्रह्मा आदि द्वारा धर्म के गूढ़ रहस्य का वर्णन
| अग्नि, लक्ष्मी, अंगिरा, गार्ग्य, धौम्य तथा जमदग्नि द्वारा धर्म के गूढ़ रहस्य का वर्णन
| वायु द्वारा धर्माधर्म के रहस्य का वर्णन
| लोमश द्वारा धर्म के रहस्य का वर्णन
| अरुन्धती, धर्मराज और चित्रगुप्त द्वारा धर्म सम्बन्धी रहस्य का वर्णन
| प्रमथगणों द्वारा धर्माधर्म सम्बन्धी रहस्य का कथन
| दिग्गजों का धर्म सम्बन्धी रहस्य एवं प्रभाव
| महादेव जी का धर्म सम्बन्धी रहस्य का वर्णन
| स्कन्ददेव का धर्म सम्बन्धी रहस्य का वर्णन
| भगवान विष्णु और भीष्म द्वारा धर्म सम्बन्धी रहस्यों के माहात्म्य का वर्णन
| जिनका अन्न ग्रहण करने योग्य है और जिनका ग्रहण करने योग्य नहीं है, उन मनुष्यों का वर्णन
| दान लेने और अनुचित भोजन करने का प्रायश्चित
| दान से स्वर्गलोक में जाने वाले राजाओं का वर्णन
| पाँच प्रकार के दानों का वर्णन
| तपस्वी श्रीकृष्ण के पास ऋषियों का आना
| ऋषियों का श्रीकृष्ण का प्रभाव देखना और उनसे वार्तालाप करना
| नारद द्वारा हिमालय पर शिव की शोभा का विस्तृत वर्णन
| शिव के तीसरे नेत्र से हिमालय का भस्म होना
| शिव-पार्वती के धर्म-विषयक संवाद की उत्थापना
| वर्णाश्रम सम्बन्धी आचार
| प्रवृत्ति-निवृत्तिरूप धर्म का निरूपण
| वानप्रस्थ धर्म तथा उसके पालन की विधि और महिमा
| ब्राह्मणादि वर्णों की प्राप्ति में शुभाशुभ कर्मों की प्रधानता का वर्णन
| बन्धन मुक्ति, स्वर्ग, नरक एवं दीर्घायु और अल्पायु प्रदान करने वाले कर्मों का वर्णन
| स्वर्ग और नरक प्राप्त कराने वाले कर्मों का वर्णन
| उत्तम और अधम कुल में जन्म दिलाने वाले कर्मों का वर्णन
| मनुष्य को बुद्धिमान, मन्दबुद्धि तथा नपुंसक बनाने वाले कर्मों का वर्णन
| राजधर्म का वर्णन
| योद्धाओं के धर्म का वर्णन
| रणयज्ञ में प्राणोत्सर्ग की महिमा
| संक्षेप से राजधर्म का वर्णन
| अहिंसा और इन्द्रिय संयम की प्रशंसा
| दैव की प्रधानता
| त्रिवर्ग का निरूपण
| कल्याणकारी आचार-व्यवहार का वर्णन
| विविध प्रकार के कर्मफलों का वर्णन
| अन्धत्व और पंगुत्व आदि दोषों और रोगों के कारणभूत दुष्कर्मों का वर्णन
| उमा-महेश्वर संवाद में महत्त्वपूर्ण विषयों का विवेचन
| प्राणियों के चार भेदों का निरूपण
| पूर्वजन्म की स्मृति का रहस्य
| मरकर फिर लौटने में कारण स्वप्नदर्शन
| दैव और पुरुषार्थ तथा पुनर्जन्म का विवेचन
| यमलोक तथा वहाँ के मार्गों का वर्णन
| पापियों की नरकयातनाओं का वर्णन
| कर्मानुसार विभिन्न योनियों में पापियों के जन्म का उल्लेख
| शुभाशुभ आदि तीन प्रकार के कर्मों का स्वरूप और उनके फल का वर्णन
| मद्यसेवन के दोषों का वर्णन
| पुण्य के विधान का वर्णन
| व्रत धारण करने से शुभ फल की प्राप्ति
| शौचाचार का वर्णन
| आहार शुद्धि का वर्णन
| मांसभक्षण से दोष तथा मांस न खाने से लाभ
| गुरुपूजा का महत्त्व
| उपवास की विधि
| तीर्थस्थान की विधि
| सर्वसाधारण द्रव्य के दान से पुण्य
| अन्न, सुवर्ण और गौदान का माहात्म्य
| भूमिदान के महत्त्व का वर्णन
| कन्या और विद्यादान का माहात्म्य
| तिल का दान और उसके फल का माहात्म्य
| नाना प्रकार के दानों का फल
| लौकिक-वैदिक यज्ञ तथा देवताओं की पूजा का निरूपण
| श्राद्धविधान आदि का वर्णन
| दान के पाँच फल
| अशुभदान से भी शुभ फल की प्राप्ति
| नाना प्रकार के धर्म और उनके फलों का प्रतिपादन
| शुभ और अशुभ गति का निश्चय कराने वाले लक्षणों का वर्णन
| मृत्यु के भेद
| कर्तव्यपालनपूर्वक शरीरत्याग का महान फल
| काम, क्रोध आदि द्वारा देहत्याग करने से नरक की प्राप्ति
| मोक्षधर्म की श्रेष्ठता का प्रतिपादन
| मोक्षसाधक ज्ञान की प्राप्ति का उपाय
| मोक्ष की प्राप्ति में वैराग्य की प्रधानता
| सांख्यज्ञान का प्रतिपादन
| अव्यक्तादि चौबीस तत्त्वों की उत्पत्ति आदि का वर्णन
| योगधर्म का प्रतिपादनपूर्वक उसके फल का वर्णन
| पाशुपत योग का वर्णन
| शिवलिंग-पूजन का माहात्म्य
| पार्वती के द्वारा स्त्री-धर्म का वर्णन
| वंश परम्परा का कथन और श्रीकृष्ण के माहात्म्य का वर्णन
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| श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम्
| जपने योग्य मंत्र और सबेरे-शाम कीर्तन करने योग्य देवता
| ऋषियों और राजाओं के मंगलमय नामों का कीर्तन-माहात्म्य
| गायत्री मंत्र का फल
| ब्राह्मणों की महिमा का वर्णन
| कार्तवीर्य अर्जुन को वरदान प्राप्ति और उनमें अभिमान की उत्पत्ति का वर्णन
| ब्राह्मणों की महिमा विषयक कार्तवीय अर्जुन और वायु देवता का संवाद
| वायु द्वारा उदाहरण सहित ब्राह्मणों की महत्ता का वर्णन
| ब्राह्मणशिरोमणि उतथ्य के प्रभाव का वर्णन
| ब्रह्मर्षि अगस्त्य और वसिष्ठ के प्रभाव का वर्णन
| अत्रि और च्यवन ऋषि के प्रभाव का वर्णन
| कप दानवों का स्वर्गलोक पर अधिकार
| ब्राह्मणों द्वारा कप दानवों को भस्म करना
| भीष्म द्वारा श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन
| श्रीकृष्ण का प्रद्युम्न को ब्राह्मणों की महिमा बताना
| श्रीकृष्ण द्वारा दुर्वासा के चरित्र का वर्णन करना
| श्रीकृष्ण द्वारा भगवान शंकर के माहात्म्य का वर्णन
| भगवान शंकर के माहात्म्य का वर्णन
| धर्म के विषय में आगम-प्रमाण की श्रेष्ठता
| भीष्म द्वारा धर्माधर्म के फल का वर्णन
| साधु-असाधु के लक्षण तथा शिष्टाचार का निरूपण
| युधिष्ठिर का विद्या, बल और बुद्धि की अपेक्षा भाग्य की प्रधानता बताना
| भीष्म का शुभाशुभ कर्मों को ही सुख-दु:ख की प्राप्ति का कारण बताना
| नित्यस्मरणीय देवता, नदी, पर्वत, ऋषि और राजाओं के नाम-कीर्तन का माहात्म्य
| भीष्म की अनुमति से युधिष्ठिर का सपरिवार हस्तिनापुर प्रस्थान
भीष्मस्वर्गारोहण पर्व
भीष्म के अन्त्येष्टि संस्कार की सामग्री लेकर युधिष्ठिर आदि का आगमन
| भीष्म का धृतराष्ट्र और युधिष्ठिर को कर्तव्य का उपदेश देना
| भीष्म का श्रीकृष्ण आदि से देहत्याग की अनुमति लेना
| भीष्म का प्राणत्याग
| धृतराष्ट्र द्वारा भीष्म का दाह संस्कार
| गंगा का भीष्म के लिए शोक प्रकट करना और श्रीकृष्ण का उन्हें समझाना
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