विभिन्न तीर्थों के माहात्मय का वर्णन

महाभारत अनुशासन पर्व के दानधर्म पर्व के अंतर्गत अध्याय 25 में ब्विभिन्न तीर्थों के माहात्मय का वर्णन हुआ है[1]-

युधिष्ठिर का पश्न

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! युधिष्ठिर ने पूछा- महाज्ञानी भरतश्रेष्ठ! तीर्थों का दर्शन, उनमें किया जाने वाला स्नान और उनकी महिमा का श्रवण श्रेयस्कर बताया गया है। अतः मैं तीर्थों का यथावत रूप से वर्णन सुनना चाहता हूँ। भरतभूषण! इस पृथ्वी पर जो-जो पवित्र तीर्थ हैं, उन्हें मैं नियमपूर्वक सुनना चाहता हूँ। आप उन्हें बतलाने की कृपा करें।

भीष्म का संवाद

भीष्म जी ने कहा- महातेजस्वी नरेश! पूर्वकाल में अंगिरा मुनि ने तीर्थ समुदाय का वर्णन किया था। तुम्हारा भला हो, तुम उसी को सुनो। इससे तुम्हें उत्‍तम धर्म की प्राप्ति होगी। एक समय की बात है, महामुनि विप्रवर धैर्यवान अंगिरा अपने तपोवन में विराजमान थे। उस समय कठिन व्रत का पालन करने वाले महर्षि गौतम ने उनके पास जाकर पूछा-भगवन! महामुने! मुझे तीर्थों के सम्बन्ध में कुछ धर्म विषयक संदेह है। वह सब मै सुनना चाहता हूँ। आप कृपया मुझे बताइये। महाज्ञानी मुनीश्वर! उन तीर्थों में स्नान करने से मृत्यु के बाद किस फल की प्राप्ति होती है? इस विषय में जैसी वस्तु स्थिति है, वह बताइये।

अंगिरा ने कहा- मुने! मनुष्य उपवास करके चन्द्रभागा (चनाव) और तरंगमालिनी वितस्ता (झेलम)-में सात दिन तक स्नान करे तो मुनि के समान निर्मल हो जाता हैं। काश्मिर प्रान्त की जो-जो नदियां महानद सिन्धु में मिलती हैं, उनमें तथा सिन्धु में स्नान कर के शीलवान पुरुष मरने के बाद स्वर्ग में जाता है। पुष्कर, प्रभास, नैमिषारण्य, सागरोदक समुद्रजल, देवि का, इन्द्रमार्ग तथा स्वर्गविन्दु- इन तीर्थों में स्नान करने से मनुष्य विमान पर बैठकर स्वर्ग में जाता है और अप्सराएं उसकी स्तुति करती हुई उसे जगाती हैं। जो मनुष्य मन और इन्द्रियों को संयम में रखते हुए हिरण्यविन्दु तीर्थ में स्नान करके वहाँ के प्रमुख देवता भगवान कुशेषय को प्रणाम करता है, उसके सारे पाप धूल जाते हैं। गन्धमादन पर्वत के निकट इन्द्र तो या नदी में और कुरंग क्षेत्र के भीतर कर तो या नदी में संयतचित एंव शुद्धभाव से स्नान करके तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है। गंगा द्वार, कुशावर्त, बिल्वक तीर्थ, नील पर्वत तथा कनखल में स्नान करके पाप रहित हुआ मनुष्य स्वर्गलोक को जाता है। यदि कोई क्रोध हीन, सत्यप्रतिज्ञ और अहिंसक होकर ब्रह्मचर्य के पालन पूर्वक सलिलहद नामक तीर्थ में डुब की लगाये तो उसे अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। जहाँ उतर दिशा में भागीरथी गंगा गिरती हैं और वहाँ उनका स्त्रोत तीन भागों में विभक्त हो जाता हैं, वह भगवान महेष्वर का त्रिस्थान नामक तीर्थ है। जो मनुष्य एक मास तक निराहर रहकर वहाँ स्नान करता है, उसे देवताओं का प्रत्यक्ष दर्शन होता है।

विभिन्न तीर्थों के माहात्मय का वर्णन

सप्तगंग, त्रिगंग, और इन्द्रमार्ग में पितरों का तर्पण करने वाला मनुष्य यदि पुनर्जन्म लेता है तो उसे अमृत भोजन मिलता है (अर्थात वह देवता हो जाता है।)। महाश्रम तीर्थ में स्नान करके प्रतिदिन पवित्र भाव से अग्निहोत्र करते हुए जो एक महीने तक उपवास करता है, वह उतने ही समय में सिद्ध हो जाता है। जो लोभ का त्याग करके भृगुतुंग-क्षेत्र के महाहद नामक तीर्थ में स्नान करता है और तीन रात तक भोजन छोड़ देता है, वह ब्रह्माहत्या के पाप से मुक्त हो जाता है। कन्याकूप में स्नान करके बलाका तीर्थ में तर्पण करने वाला पुरुष देवताओं मे कीर्ति पाता है और अपने यश से प्रकाशित होता है। देवि का में स्नान करके सुन्दरिकाकुण्ड़ और अष्विनीतीर्थ में स्नान करने पर मृत्यु के पश्चात दूसरे जन्में मनुष्य को रूप और तेज की प्राप्ति होती है। महागंगा और कृतिकागंरक तीर्थ में स्नान करके एक पक्ष तक निराहार रहने वाला मनुष्य निर्मल-निष्पाप होकर स्वर्गलोक जाता है। जो वैमानिक और किकिंणी का श्रम तीर्थ में स्नान करता है, वह अप्सराओं के दिव्यलोक में जाकर सम्मानित होता और इच्छानुसार विचरता है। जो कालिकाश्रम में स्नान करके विपाशा(व्यास) नदी में पितरों का तर्पण करता है और क्रोध को जीतकर ब्रह्माचर्य का पालन करते हुए तीन रात वहाँ निवास करता है, वह जन्म-मरण के बन्धन से छूट जाता है। जो कृतिकाश्रम में स्नान करके पितरों का तर्पण करता है और महादेव जी को संतुष्ट करता है, वह पाप मुक्त होकर स्वर्गलोक में जाता है। महापुरतीर्थ में स्नान करके पवित्रापूर्वक तीन रात उपवास करने से मनुष्य चराचर प्राणियों तथा मनुष्यों से प्राप्त होने वाले भय को त्याग देता है। जो देवदारूवन में स्नान करके तर्पण करता है, उसके सारे पाप धूल जाते हैं तथा जो वहाँ सात रात तक निवास करता है, वह पवित्र हो मृत्यु के पश्चात देवलोक में जाता है। जो शरस्तम्ब, कुशस्तम्ब और द्रोणषर्मपदतीर्थ के झरनों में स्नान करता है वह स्वर्ग में अप्सराओं द्वारा सेवित होता है। जो चित्रकूट में मन्दाकिनी के जल में तथा जनस्थानमें गोदावरीके जलमें स्नान करके उपवास करता है वह पुरुष राजलक्ष्मीसे सेवित होता है। श्याश्रम में जाकर वहाँ स्नान, निवास तथा एक पक्ष तक उपवास करने वाला पुरुष अन्तर्धान के फलको प्राप्त कर लेता है। जो कौशिकी नदी में स्नान करके लोलुपता त्यागकर इक्कीस रातोंतक केवल हवा पीकर रह जाता है वह मनुष्य स्वर्गको प्राप्त होता है। जो मतंगवापी तीर्थ में स्नान करता है, उसे एक रात में सिद्धि प्राप्त होती है। जो अनालम्ब, अन्धक और सनातन तीर्थ में गोता लगाता है तथा नैमिषारणय के स्वर्ग तीर्थ में स्नान करके इन्द्रिय-संयमपूर्वक एक मास तक पितरों को देता है उसे पुरुषेमध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। गंगा-यमुना के संगमतीर्थ में तथा कालंजर तीर्थ में एक मास तक स्नान और तर्पण करने से दस अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। भरतश्रेष्ठ! षष्टिहद नामक तीर्थ में स्नान करने से अन्नदान से भी अधिक फल प्राप्त होता है। माघ-मास की अमावस्या को प्रयागराज में तीन करोड़ दस हजार अन्य तीर्थों का समागम होता है। भरतश्रेष्ठ! जो नियमपूर्वक उत्‍तम व्रत का पालन करते हुए माघ के महीने में प्रयाग में स्नान करता है वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है। जो पवित्र भाव से मरूद्गण तीर्थ, पितरों के आश्रम तथा वैवस्वत तीर्थ में स्नान करता है, वह मनुष्य स्वयं तीर्थ रूप हो जाता है। जो ब्रह्मासरोवर (पुष्करतीर्थ) और भागीरथी गंगा में स्नान करके पितरों का तर्पण करता और वहाँ एक मास तक निराहर रहता है उसे चन्द्रलोक की प्राप्ति होती है।

उत्पातक तीर्थ में स्नान और अष्टावक्र तीर्थ में तर्पण करके बारह दिनों तक निराहार रहने से नरमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। गया में अश्मपृष्ठ (प्रेतशिला)-पर पितरों को पिण्ड देने से पहली, निरविन्द पर्वत पर पिण्डदान करने से दूसरी तथा क्रौंचपदी नामक तीर्थ में पिण्ड अर्पित करने से तीसरी ब्रह्महत्या को दूर करके मनुष्य सर्वथा शुद्ध हो जाता है। कलविंग तीर्थ में स्नान करने से अनेक तीर्थों में गोते लगाने का फल मिलता है। अग्निपुर तीर्थ में स्नान करने से अग्निकन्यापुर का निवास प्राप्त होता है। करवीरपुर में स्नान, विशाला में तर्पण और देवहद में मंजन करने से मनुष्य ब्रह्म रूप हो जाता है। जो सब प्रकार की हिंसा का त्याग करके जितेन्द्रिय-भाव से आवर्तनन्दा और महानन्दा तीर्थ का सेवन करता है उसकी स्वर्गस्थ नन्दनवन में अप्सराएं सेवा करती हैं। जो कार्तिक की पूर्णिमा को कृतिका का योग होने पर एकाग्रचित्त हो उर्वशी तीर्थ और लौहित्य तीर्थ में विधिपूर्वक स्नान करता है उसे पुण्डरीक यज्ञ का फल मिलता है। रामहद (परशुराम-कुण्ड)-में स्नान और बिपाशा नदी में तर्पण करके बारह दिनों तक उपवास करने वाला पुरुष सब छूट जाता है। महाहद में स्नान करके यदि मनुष्य शुद्ध चित से वहाँ एक मास तक निराहार रहे तो उसे जमदग्नि के समान सदगति प्राप्त होती है। जो हिंसा का त्याग करके सत्य प्रतिज्ञ होकर विन्ध्याचल में अपने शरीर को कष्ट दे विनीत भाव से तपस्या का आश्रय लेकर रहता है उसे एक महीने में सिद्धि प्राप्त हो जाती है।[2]

कोकामुख, उज्जानक एवं कन्याकुमारी तीर्थ का वर्णन

नर्मदा नदी और शूर्पारक क्षेत्र के जल में स्नान करके एक पक्ष तक निराहार रहने वाला मनुष्य दूसरे जन्म में राजकुमार होता है। साधारण भाव से तीन महीने तक जम्बूमार्ग में स्नान करने से तथा इन्द्रिय-संयमपूर्वक एकाग्रचित्त हो वहाँ एक ही दिन स्नान करने से भी मनुष्य सिद्धि प्राप्त कर लेता है। जो कोकामुख तीर्थ में स्नान करके अंजलिकाश्रम तीर्थ में जाकर साग का भोजन करता हुआ चीरवस्त्र धारण करके कुछ काल तक निवास करता है उसे दस बार कन्याकुमारी तीर्थ के सेवन का फल प्राप्त होता है तथा उसे कभी यमराज के घर नहीं जाना पड़ता। जो कन्याकुमारी तीर्थ में निवास करता है वह मृत्यु के पश्चात देवलोक में जाता है। महाबाहो! जो एकाग्रचित्त होकर अमावस्या को प्रभास-तीर्थ का सेवन करता है उसे एक ही रात में सिद्धि मिल जाती है तथा वह मृत्यु के पश्चात देवता होता है। उज्जानक तीर्थ में स्नान करके आष्टिषेण के आश्रम तथा पिंगा के आश्रम में गोता लगाने से मनुष्य सब पापों से छुटकारा पा जाता है। जो मनुष्य कुल्या में स्नान करके अघमर्षण मंत्र का जप करता है तथा तीन रात तक वहाँ उपवास पूर्वक रहता है उसे अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।

मानव पिण्डारक कालोदक, नन्दिकुण्ड तथा उत्तरमानस तीर्थ का माहात्मय

जो मानव पिण्डारक तीर्थ में स्नान करके वहाँ एक रात निवास करता है वह प्रातःकाल होते ही पवित्र होकर अग्निष्टोम यज्ञ का फल प्राप्त कर लेता है। धर्मारण्य से सुशोभित ब्रह्मसर तीर्थ में जाकर वहाँ स्नान करके पवित्र हुआ मनुष्य पुण्डरीक यज्ञ का फल पाता है। मैनाका पर्वत पर एक महीने तक स्नान और संध्योपासन करने से मनुष्य काम को जीतकर समस्त यज्ञों को फल पा लेता है। सौ योजन दूर से आकर कालोदक, नन्दिकुण्ड तथा उत्तरमानस तीर्थ में स्नान करने वाला मनुष्य यदि भ्रूण हत्यारा भी हो तो वह उस पाप से मुक्त हो जाता है। वहाँ नन्दीश्वर की मूर्ति का दर्शन करके मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। स्वर्गमार्ग में स्नान करने से वह ब्रह्मलोक में जाता है। भगवान का श्वशुर हिमवान पर्वत परम पवित्र और संसार में विख्यात है। वह सब रत्नों की खान तथा सिद्ध और चारणों से सेवित है। जो वेदान्त का ज्ञाता द्विज इस जीवन को नाशवान समझकर उस पर्वत पर रहता और देवताओं का पूजन तथा मुनियों को प्रणाम करके विधिपूर्वक अनशन के द्वारा अपने प्राणों को त्याग देता है वह सिद्ध होकर सनातन ब्रह्मलोक को प्राप्त हो जाता है। जो काम, क्रोध, और लोभ को जीतकर तीर्थों में स्नान करता है उसे उस तीर्थयात्रा के पुण्य से कोई वस्तु दुर्लभ नहीं रहती। जो समस्त तीर्थों के दर्शन की इच्छा रखता हो, वह दुर्गम और विषम होने के कारण जिन तीर्थों में शरीर से न जा सके, वहाँ मन से यात्रा करे। यह तीर्थ-सेवन का कार्य परम पवित्र, पुण्यप्रद, स्वर्ग की प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन और वेदों का गुप्त रहस्य है। प्रत्येक तीर्थ पावन और स्नान के योग्य होता है। तीर्थों का यह माहात्म्य द्विजातियों के, अपने हितैशी श्रेष्ठ पुरुष के, सुहदों के तथा अनुगत शिष्य के ही कान में डालना चाहिये। सबसे पहल महातपस्वी अंगिरा ने गौतम को इसका उपदेश दिया। अंगिरा को बुद्धिमान कश्यप जी से इसका ज्ञान प्राप्त हुआ था। यह कथा महर्षियों के पढ़ने योग्य और पावन वस्तुओं में परम पवित्र है। जो सावधान एवं उत्साहयुक्त होकर सदा इसका पाठ करता है वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्गलोक में जाता है। जो अंगिरा मुनि के इस रहस्यमय मत को सुनता है, वह उत्‍तम कुल में जन्म पाता और पूर्वजन्म की बातों को स्मरण करता है।[3]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 25 श्लोक 1-24
  2. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 25 श्लोक 25-49
  3. महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 25 श्लोक 50-71

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आचार्य आदि गुरुजनों के गौरव का वर्णन | मास, पक्ष एवं तिथि सम्बंधी विभिन्न व्रतोपवास के फल का वर्णन | दरिद्रों के लिए यज्ञतुल्य फल देने वाले उपवास-व्रत तथा उसके फल का वर्णन | मानस तथा पार्थिव तीर्थ की महत्ता | द्वादशी तिथि को उपवास तथा विष्णु की पूजा का माहात्म्य | मार्गशीर्ष मास में चन्द्र व्रत करने का प्रतिपादन | बृहस्पति और युधिष्ठिर का संवाद | विभिन्न पापों के फलस्वरूप नरकादि की प्राप्ति एवं तिर्यग्योनियों में जन्म लेने का वर्णन | पाप से छूटने के उपाय तथा अन्नदान की विशेष महिमा | बृहस्पति का युधिष्ठिर को अहिंसा एवं धर्म की महिमा बताना | हिंसा और मांसभक्षण की घोर निन्दा | मद्य और मांस भक्षण के दोष तथा उनके त्याग की महिमा | मांस न खाने से लाभ तथा अहिंसाधर्म की प्रशंसा | द्वैपायन व्यास और एक कीड़े का वृत्तान्त | कीड़े का क्षत्रिय योनि में जन्म तथा व्यासजी का दर्शन | कीड़े का ब्राह्मण योनि में जन्म तथा सनातनब्रह्म की प्राप्ति | दान की प्रशंसा और कर्म का रहस्य | विद्वान एवं सदाचारी ब्राह्मण को अन्नदान की प्रशंसा | तप की प्रशंसा तथा गृहस्थ के उत्तम कर्तव्य का निर्देश | पतिव्रता स्त्रियों के कर्तव्य का वर्णन | नारद का पुण्डरीक को भगवान नारायण की आराधना का उपदेश | ब्राह्मण और राक्षस का सामगुण विषयक वृत्तान्त | श्राद्ध के विषय में देवदूत और पितरों का संवाद | पापों से छूटने के विषय में महर्षि विद्युत्प्रभ और इन्द्र का संवाद | धर्म के विषय में इन्द्र और बृहस्पति का संवाद | वृषोत्सर्ग आदि के विषय में देवताओं, ऋषियों और पितरों का संवाद | विष्णु, देवगण, विश्वामित्र और ब्रह्मा आदि द्वारा धर्म के गूढ़ रहस्य का वर्णन | अग्नि, लक्ष्मी, अंगिरा, गार्ग्य, धौम्य तथा जमदग्नि द्वारा धर्म के गूढ़ रहस्य का वर्णन | वायु द्वारा धर्माधर्म के रहस्य का वर्णन | लोमश द्वारा धर्म के रहस्य का वर्णन | अरुन्धती, धर्मराज और चित्रगुप्त द्वारा धर्म सम्बन्धी रहस्य का वर्णन | प्रमथगणों द्वारा धर्माधर्म सम्बन्धी रहस्य का कथन | दिग्गजों का धर्म सम्बन्धी रहस्य एवं प्रभाव | महादेव जी का धर्म सम्बन्धी रहस्य का वर्णन | स्कन्ददेव का धर्म सम्बन्धी रहस्य का वर्णन | भगवान विष्णु और भीष्म द्वारा धर्म सम्बन्धी रहस्यों के माहात्म्य का वर्णन | जिनका अन्न ग्रहण करने योग्य है और जिनका ग्रहण करने योग्य नहीं है, उन मनुष्यों का वर्णन | दान लेने और अनुचित भोजन करने का प्रायश्चित | दान से स्वर्गलोक में जाने वाले राजाओं का वर्णन | पाँच प्रकार के दानों का वर्णन | तपस्वी श्रीकृष्ण के पास ऋषियों का आना | ऋषियों का श्रीकृष्ण का प्रभाव देखना और उनसे वार्तालाप करना | नारद द्वारा हिमालय पर शिव की शोभा का विस्तृत वर्णन | शिव के तीसरे नेत्र से हिमालय का भस्म होना | शिव-पार्वती के धर्म-विषयक संवाद की उत्थापना | वर्णाश्रम सम्बन्धी आचार | प्रवृत्ति-निवृत्तिरूप धर्म का निरूपण | वानप्रस्थ धर्म तथा उसके पालन की विधि और महिमा | ब्राह्मणादि वर्णों की प्राप्ति में शुभाशुभ कर्मों की प्रधानता का वर्णन | बन्धन मुक्ति, स्वर्ग, नरक एवं दीर्घायु और अल्पायु प्रदान करने वाले कर्मों का वर्णन | स्वर्ग और नरक प्राप्त कराने वाले कर्मों का वर्णन | उत्तम और अधम कुल में जन्म दिलाने वाले कर्मों का वर्णन | मनुष्य को बुद्धिमान, मन्दबुद्धि तथा नपुंसक बनाने वाले कर्मों का वर्णन | राजधर्म का वर्णन | योद्धाओं के धर्म का वर्णन | रणयज्ञ में प्राणोत्सर्ग की महिमा | संक्षेप से राजधर्म का वर्णन | अहिंसा और इन्द्रिय संयम की प्रशंसा | दैव की प्रधानता | त्रिवर्ग का निरूपण | कल्याणकारी आचार-व्यवहार का वर्णन | विविध प्रकार के कर्मफलों का वर्णन | अन्धत्व और पंगुत्व आदि दोषों और रोगों के कारणभूत दुष्कर्मों का वर्णन | उमा-महेश्वर संवाद में महत्त्वपूर्ण विषयों का विवेचन | प्राणियों के चार भेदों का निरूपण | पूर्वजन्म की स्मृति का रहस्य | मरकर फिर लौटने में कारण स्वप्नदर्शन | दैव और पुरुषार्थ तथा पुनर्जन्म का विवेचन | यमलोक तथा वहाँ के मार्गों का वर्णन | पापियों की नरकयातनाओं का वर्णन | कर्मानुसार विभिन्न योनियों में पापियों के जन्म का उल्लेख | शुभाशुभ आदि तीन प्रकार के कर्मों का स्वरूप और उनके फल का वर्णन | मद्यसेवन के दोषों का वर्णन | पुण्य के विधान का वर्णन | व्रत धारण करने से शुभ फल की प्राप्ति | शौचाचार का वर्णन | आहार शुद्धि का वर्णन | मांसभक्षण से दोष तथा मांस न खाने से लाभ | गुरुपूजा का महत्त्व | उपवास की विधि | तीर्थस्थान की विधि | सर्वसाधारण द्रव्य के दान से पुण्य | अन्न, सुवर्ण और गौदान का माहात्म्य | भूमिदान के महत्त्व का वर्णन | कन्या और विद्यादान का माहात्म्य | तिल का दान और उसके फल का माहात्म्य | नाना प्रकार के दानों का फल | लौकिक-वैदिक यज्ञ तथा देवताओं की पूजा का निरूपण | श्राद्धविधान आदि का वर्णन | दान के पाँच फल | अशुभदान से भी शुभ फल की प्राप्ति | नाना प्रकार के धर्म और उनके फलों का प्रतिपादन | शुभ और अशुभ गति का निश्चय कराने वाले लक्षणों का वर्णन | मृत्यु के भेद | कर्तव्यपालनपूर्वक शरीरत्याग का महान फल | काम, क्रोध आदि द्वारा देहत्याग करने से नरक की प्राप्ति | मोक्षधर्म की श्रेष्ठता का प्रतिपादन | मोक्षसाधक ज्ञान की प्राप्ति का उपाय | मोक्ष की प्राप्ति में वैराग्य की प्रधानता | सांख्यज्ञान का प्रतिपादन | अव्यक्तादि चौबीस तत्त्वों की उत्पत्ति आदि का वर्णन | योगधर्म का प्रतिपादनपूर्वक उसके फल का वर्णन | पाशुपत योग का वर्णन | शिवलिंग-पूजन का माहात्म्य | पार्वती के द्वारा स्त्री-धर्म का वर्णन | वंश परम्परा का कथन और श्रीकृष्ण के माहात्म्य का वर्णन | श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन और भीष्म का युधिष्ठिर को राज्य करने का आदेश | श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् | जपने योग्य मंत्र और सबेरे-शाम कीर्तन करने योग्य देवता | ऋषियों और राजाओं के मंगलमय नामों का कीर्तन-माहात्म्य | गायत्री मंत्र का फल | ब्राह्मणों की महिमा का वर्णन | कार्तवीर्य अर्जुन को वरदान प्राप्ति और उनमें अभिमान की उत्पत्ति का वर्णन | ब्राह्मणों की महिमा विषयक कार्तवीय अर्जुन और वायु देवता का संवाद | वायु द्वारा उदाहरण सहित ब्राह्मणों की महत्ता का वर्णन | ब्राह्मणशिरोमणि उतथ्य के प्रभाव का वर्णन | ब्रह्मर्षि अगस्त्य और वसिष्ठ के प्रभाव का वर्णन | अत्रि और च्यवन ऋषि के प्रभाव का वर्णन | कप दानवों का स्वर्गलोक पर अधिकार | ब्राह्मणों द्वारा कप दानवों को भस्म करना | भीष्म द्वारा श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन | श्रीकृष्ण का प्रद्युम्न को ब्राह्मणों की महिमा बताना | श्रीकृष्ण द्वारा दुर्वासा के चरित्र का वर्णन करना | श्रीकृष्ण द्वारा भगवान शंकर के माहात्म्य का वर्णन | भगवान शंकर के माहात्म्य का वर्णन | धर्म के विषय में आगम-प्रमाण की श्रेष्ठता | भीष्म द्वारा धर्माधर्म के फल का वर्णन | साधु-असाधु के लक्षण तथा शिष्टाचार का निरूपण | युधिष्ठिर का विद्या, बल और बुद्धि की अपेक्षा भाग्य की प्रधानता बताना | भीष्म का शुभाशुभ कर्मों को ही सुख-दु:ख की प्राप्ति का कारण बताना | नित्यस्मरणीय देवता, नदी, पर्वत, ऋषि और राजाओं के नाम-कीर्तन का माहात्म्य | भीष्म की अनुमति से युधिष्ठिर का सपरिवार हस्तिनापुर प्रस्थान
भीष्मस्वर्गारोहण पर्व
भीष्म के अन्त्येष्टि संस्कार की सामग्री लेकर युधिष्ठिर आदि का आगमन | भीष्म का धृतराष्ट्र और युधिष्ठिर को कर्तव्य का उपदेश देना | भीष्म का श्रीकृष्ण आदि से देहत्याग की अनुमति लेना | भीष्म का प्राणत्याग | धृतराष्ट्र द्वारा भीष्म का दाह संस्कार | गंगा का भीष्म के लिए शोक प्रकट करना और श्रीकृष्ण का उन्हें समझाना

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