- महाभारत अनुशासन पर्व के दानधर्म पर्व के अंतर्गत अध्याय 14 में उपमन्यु को महादेव के वरदान का वर्णन हुआ है[1]
विषय सूची
उपमन्यु कथन
उपमन्यु बोले- प्रभो! आप देवताओं के भी अधिदेवता हैं। आपको नमस्कार है। आप ही महान देवता हैं, आपकों नमस्कार है। इन्द्र आपके ही रूप हैं। आप ही साक्षात इन्द्र हैं तथा आप इन्द्र का -सा वेश धारण करने वाले हैं। इन्द्र के रूप में आप ही अपने हाथ में वज्र लिये रहते हैं। आपका वर्ण पिंगल और अरुण है, आपको नमस्कार है। आपके हाथ में पिनाक शोभा पाता है। आप सदा शंख और त्रिशूल धारण करते हैं। आपके वस्त्र काले हैं तथा आप मस्तक पर काले घुंघराले केश धारण करते है, आपको नमस्कार है। काला मृगर्च आपका दुपट्टा है। आप श्रीकृष्णाष्टमी व्रत में तत्पर रहते हैं। आपका वर्ण शुक्ल है। आप स्वरूप से भी शुक्ल (शुद्ध) हैं तथा आप श्वेत वस्त्र धारण करते हैं। आपको नमस्कार है। आप अपने सारे अंगों में श्वेत भस्म लपेटे रहते हैं। विशुद्ध कर्म में अनुरक्त हैं। कभी-कभी आप रक्त वर्ण के हो जाते हैं और लाल वस्त्र धारण कर लेते हैं। आपको नमस्कार है। रक्ताम्बरधारी होने पर आप अपनी ध्वजा-पताका भी लाल ही रखते हैं। लाल फूलों की माला पहनकर अपने श्रीअंगों में लाल चन्दन का ही लेप लगाते है। किसी समय आपकी अंगकान्ति पीले रंग की हो जाती है। ऐसे समय में आप पीताम्बर धारण करते हैं। आपको नमस्कार है।[1]
आपके मस्तक पर ऊँचा छत्र तना है। आप सुन्दर किरीट धारण करते हैं। अर्द्धनारीश्वर रूप में आपके आधे अंग में ही हार, आधे में ही केयूर और आधे अंग के ही कान में कुण्डल शोभा पाता है। आपको नमस्कार है। आप वायु के समान वेगशाली हैं। आपको नमस्कार है। आप ही मेरे आराध्यदेव हैं। आपको बारंबार नमस्कार है। आप ही सुरेन्द्र, मुनीन्द्र और महेन्द्र हैं। आपको नमस्कार है। आप अपने आधे अंग को कमलों की माला से अलंकृत करते हैं और आधे में उत्पलों से विभूषित होते हैं। आधे अंग में चन्द का लेप लगाते हैं तो आधे शरीर में फूलों का गजरा और सुगन्धित अंगराग धारण करते हैं। ऐसे अर्द्धनारीश्वर रूप में आपको नमस्कार है। आपके मुख सुर्य के समान तेजस्वी हैं। सूर्य आपके नेत्र हैं। आपकी अंगकान्ति भी सूर्य के ही समान है तथा आप अधिक सादृश्य के कारण सूर्य की प्रतिमा-से जान पड़ते हैं। आप सोमस्वरूप हैं। आपकी आकृति बड़ी सौम्य है। आप सौम्य मुख धारण करते हैं। आपका रूप भी सौम्य है। आप प्रमुख देवता हैं और सौम्य दन्तावली से विभूषित होते हैं। आपको नमस्कार है। आप हरिहररूप होने के कारण आधे शरीर से सांवले और आधे से गोरे हैं। आधे शरीर में पीताम्बर धारण करते हैं और आधे में श्वेत वस्त्र वस्त्र पहनते हैं। आपको नमस्कार है। आपके आधे शरीर में नारी के अवयव हैं और आधे में नर के। आप स्त्री-पुरुष रूप हैं। आपको नमस्कार है। आप कभी बैल पर सवार होते हैं और कभी गजराज की पीठ पर बैठकर यात्रा करते हैं। आप दुर्गम हैं। आपको नमस्कार है, जो दुसरों के लिये अगम्य है, वहाँ भी आपकी गति है। आपको नमस्कार है। प्रथमगण आपकी महिमा गान करते हैं। आप अपने पार्षदों की मण्डली में रत रहते हैं आपके प्रत्येक मार्ग पर प्रथमण आपके पीछे-पीछे चलते हैं। आपकी सेवा ही गणों का नित्य-व्रत है। आपको नमस्कार है। आपकी कान्ति श्वेत बादलों के समान है। आपकी प्रभा संध्याकालीन अरुणराग के समान है। आपका कोई निश्चित नाम नहीं है। आप सदा स्वरूप में ही स्थित रहते हैं। आपको नमस्कार है। आपका सुन्दर वस्त्र लाल रंग का है। आप लाल सूत्र धारण करते हैं। लाल रंग की माला से आपकी विचित्र शोभा होती है। आप रक्त वस्त्र धारी रुद्र देव को नमस्कार है। आपका मस्तक दिव्य मणि से विभूषित है। आप अपने ललाट में अर्द्धचन्द्र का आभूषण धारण करते हैं। आपका सिर विचित्र मणि की प्रभा से प्रकाशमान है और आप आठ पुष्प धारण करते हैं। आपके मुख और नेत्र में अग्नि का निवास है। आपके नेत्र सहस्त्रों चन्द्रमाओं के समान प्रकाशित हैं। आप अग्नि स्वरूप, कमनीय विग्रह और दुर्गम गहन (वन) रूप हैं। आपको नमस्कार है। चन्द्रमा और सूर्य के रूप में आप आकाशचारी देवता को नमस्कार है। जहाँ गौएं चरती हैं उस स्थान से आप विशेष प्रेम रखते हैं। आप पृथ्वी पर विचरने वाले और त्रिभुवन रूप हैं। अनन्त एवं शिवस्वरूप हैं। आपको नमस्कार है। आप दिगम्बर हैं। आपको नमस्कार है। आप सबके आवास-स्थान और सुन्दर वस्त्र धारण करने वाले हैं। सम्पूर्ण जगत आप में ही निवास करता है। आपको सम्पूर्ण सिद्धियों का सुख सुलभ है। आपको नमस्कार है।[2]
उपमन्यु द्वारा शिव के दर्शन का वर्णन
आप मस्तक पर सदा मुकुट बांधे रहते हैं। भुजाओं में विशाल केयूर धारण करते हैं। आपके कण्ठ में सर्पों का हार शोभा पाता है तथा विचित्र आभूषणों से विभूषित होते हैं। आपको नमस्कार है। सूर्य, चन्द्रमा और अग्नि- ये तीन नेत्र रूप होकर आपको त्रिनेत्रधारी बना देते हैं। आपके लाखों नेत्र में आप स्त्री हैं, पुरुष हैं और नपुंसक हैं। आप ही सांख्यवेता और योगी हैं। आपको नमस्कार है। आप यज्ञपूरक 'शंयु' नामक देवता के प्रसाद रूप हैं और अथर्ववेदस्वरूप हैं। आपको बारंबार नमस्कार है। जो सबकी पीड़ा का नाश करने वाले और शोकहारी हैं, उन्हें नमस्कार हैं, नमस्कार है। जो मेघ के समान गम्भीर नाद करने वाले तथा बहुसंख्यक मायाओं के आधार हैं, जो बीज और क्षेत्र का पालन करते हैं और जगत की सृष्टि करने वाले हैं, उन भगवान शिव को बारंबार नमस्कार है। आप देवताओं और असुरों के स्वामी हैं। आपको नमस्कार है। आप सम्पूर्ण विश्व के ईश्वर हैं। आपको बारंबार नमस्कार है। आप वायु के समान वेगशाली तथा वायुरूप हैं। आपको नमस्कार हैं, नमस्कार है। आप सुवर्णमालाधारी तथा पर्वत-मालाओं में विहार करने वाले हैं। देव शत्रुओं मुण्डों की माला धारण करने वाले प्रचण्ड वेगशाली आपको नमस्कार हैं, नमस्कार है। ब्रह्मा जी के मस्तक का उच्छेद और महिष का विनाश करने वाले आपको नमस्कार है। आप स्त्री रूप धारण करने वाले तथा यज्ञके विध्वंसक हैं। आपको नमस्कार है। असुरों के तीनों पुरों का विनाश और दक्ष-यज्ञ का विध्वंस करने वाले आपको नमस्कार है। काम के शरीर का नाश तथा कालदण्ड को धारण करने वाले आपको नमस्कार है। स्कन्द और विशाखरूप आपको नमस्कार है। ब्रहृादण्डस्वरूप आपको नमस्कार है। भव (उत्पादक) और शर्व (संहारक) -रूप आपको नमस्कार है। विश्वरूपधारी प्रभु को नमस्कार है। आप सबके ईश्वर, संसार-बन्धक का नाश करने वाले तथा अन्धकासुर के घातक हैं। आपको नमस्कार है। आप सम्पूर्ण मायास्वरूप तथा चिन्त्य और अचिन्त्यरूप हैं। आपको नमस्कार है। आप ही हमारी गति हैं, श्रेष्ठ हैं और आप ही हमारे हृदय हैं। आप सम्पूर्ण देवताओं में ब्रह्मा तथा रुद्रों में नीललोहित हैं। आप समस्त प्राणियों में आत्मा और सांख्यशास्त्र में पुरुष कहलाते हैं। आप पवित्रों में ऋषभ तथा योगियों में निष्फल शिवरूप हैं। आप आश्रमियों में गृहस्थ, ईश्वरों में महेश्वर, सम्पूर्ण यक्षों में कुबेर तथा यज्ञों में विष्णु कहलाते हैं। पर्वतों में आप मेरु हैं। नक्षत्रों में चन्द्रमा हैं। ऋषियों में वसिष्ठ हैं तथा ग्रहों में सूर्य कहलाते हैं। आप जंगली पशुओं में सिंह हैं। आप ही परमेश्वर हैं। ग्रामीण पशुओं में आप ही लोक सम्मानित सांड़ हैं। आप ही आदित्यों में विष्णु हैं। वसुओं में अग्नि हैं। पक्षियों में आप विनतानन्दन गरुड और सर्पों में अनन्त (शेषनाग) हैा। आप वेदों में सामवेद, यजुर्वेद मन्त्रों में शतरुद्रिय, योगियों में सनत्कुमार और सांख्यवेताओं में कपिल हैं। देव! आप मरूद्गणों में इन्द्र, पितरों में हव्यावाहन अग्नि, लोकों में ब्रहृालोक और गतियों में मोक्ष कहलाते हैं। आप समुद्रों में क्षीरसागर, पर्वतों में हिमालय, वर्णों में ब्राह्मण और ब्राह्मणों में भी दीक्षित ब्राह्मण [3]हैं।[4]
आप ही सम्पूर्ण लोकों के आदि हैं। आप ही संहार करने वाले काल हैं। संसार में और भी जो-जो वस्तुएं सर्वथा तेज में बढ़ी-बढ़ी हैं, वे सभी आप भगवान ही हैं- यही मेरी निश्चित धारण है। भगवन! देव! आपको नमस्कार है। भक्तवत्सल! आपको नमस्कार है। योगेश्वर! आपको नमस्कार है। विश्व की उत्पति के कारण! आपको नमस्कार है। सनातन परमेश्वर! आप मुझ दीन-दु:खी भक्त पर प्रसन्न होइये। मैं ऐश्वर्य से रहित हूँ। आप ही मेरे आश्रयदाता हों। परमेश्वर देवेश! मैंने अनजान में जो अपराध किये हैं, वह सब यह समझकर क्षमा कीजिये कि यह मेरा अपना ही भक्त है। देवेश्वर! आपने अपना रूप बदलकर मुझे मोह में डाल दिया। महेश्वर! इसीलिये न तो मैंने आपको अर्ध्य दिया और न पाद्य ही समर्पित किया। इस प्रकार भगवान शिव की स्तुति करके मैंने उन्हें भक्ति भाव से पाद्य और अर्घ्य निवेदन किया। फिर दोनों हाथ जोड़कर उन्हें अपना सब कुछ समर्पित कर दिया।[5]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 14 श्लोक 274-292
- ↑ महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 14 श्लोक 293-306
- ↑ यज्ञ की दीक्षा लेने वाले
- ↑ महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 14 श्लोक 307-325
- ↑ महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 14 श्लोक 326-345
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| लोमश द्वारा धर्म के रहस्य का वर्णन
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| स्वर्ग और नरक प्राप्त कराने वाले कर्मों का वर्णन
| उत्तम और अधम कुल में जन्म दिलाने वाले कर्मों का वर्णन
| मनुष्य को बुद्धिमान, मन्दबुद्धि तथा नपुंसक बनाने वाले कर्मों का वर्णन
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| संक्षेप से राजधर्म का वर्णन
| अहिंसा और इन्द्रिय संयम की प्रशंसा
| दैव की प्रधानता
| त्रिवर्ग का निरूपण
| कल्याणकारी आचार-व्यवहार का वर्णन
| विविध प्रकार के कर्मफलों का वर्णन
| अन्धत्व और पंगुत्व आदि दोषों और रोगों के कारणभूत दुष्कर्मों का वर्णन
| उमा-महेश्वर संवाद में महत्त्वपूर्ण विषयों का विवेचन
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| पूर्वजन्म की स्मृति का रहस्य
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| मद्यसेवन के दोषों का वर्णन
| पुण्य के विधान का वर्णन
| व्रत धारण करने से शुभ फल की प्राप्ति
| शौचाचार का वर्णन
| आहार शुद्धि का वर्णन
| मांसभक्षण से दोष तथा मांस न खाने से लाभ
| गुरुपूजा का महत्त्व
| उपवास की विधि
| तीर्थस्थान की विधि
| सर्वसाधारण द्रव्य के दान से पुण्य
| अन्न, सुवर्ण और गौदान का माहात्म्य
| भूमिदान के महत्त्व का वर्णन
| कन्या और विद्यादान का माहात्म्य
| तिल का दान और उसके फल का माहात्म्य
| नाना प्रकार के दानों का फल
| लौकिक-वैदिक यज्ञ तथा देवताओं की पूजा का निरूपण
| श्राद्धविधान आदि का वर्णन
| दान के पाँच फल
| अशुभदान से भी शुभ फल की प्राप्ति
| नाना प्रकार के धर्म और उनके फलों का प्रतिपादन
| शुभ और अशुभ गति का निश्चय कराने वाले लक्षणों का वर्णन
| मृत्यु के भेद
| कर्तव्यपालनपूर्वक शरीरत्याग का महान फल
| काम, क्रोध आदि द्वारा देहत्याग करने से नरक की प्राप्ति
| मोक्षधर्म की श्रेष्ठता का प्रतिपादन
| मोक्षसाधक ज्ञान की प्राप्ति का उपाय
| मोक्ष की प्राप्ति में वैराग्य की प्रधानता
| सांख्यज्ञान का प्रतिपादन
| अव्यक्तादि चौबीस तत्त्वों की उत्पत्ति आदि का वर्णन
| योगधर्म का प्रतिपादनपूर्वक उसके फल का वर्णन
| पाशुपत योग का वर्णन
| शिवलिंग-पूजन का माहात्म्य
| पार्वती के द्वारा स्त्री-धर्म का वर्णन
| वंश परम्परा का कथन और श्रीकृष्ण के माहात्म्य का वर्णन
| श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन और भीष्म का युधिष्ठिर को राज्य करने का आदेश
| श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम्
| जपने योग्य मंत्र और सबेरे-शाम कीर्तन करने योग्य देवता
| ऋषियों और राजाओं के मंगलमय नामों का कीर्तन-माहात्म्य
| गायत्री मंत्र का फल
| ब्राह्मणों की महिमा का वर्णन
| कार्तवीर्य अर्जुन को वरदान प्राप्ति और उनमें अभिमान की उत्पत्ति का वर्णन
| ब्राह्मणों की महिमा विषयक कार्तवीय अर्जुन और वायु देवता का संवाद
| वायु द्वारा उदाहरण सहित ब्राह्मणों की महत्ता का वर्णन
| ब्राह्मणशिरोमणि उतथ्य के प्रभाव का वर्णन
| ब्रह्मर्षि अगस्त्य और वसिष्ठ के प्रभाव का वर्णन
| अत्रि और च्यवन ऋषि के प्रभाव का वर्णन
| कप दानवों का स्वर्गलोक पर अधिकार
| ब्राह्मणों द्वारा कप दानवों को भस्म करना
| भीष्म द्वारा श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन
| श्रीकृष्ण का प्रद्युम्न को ब्राह्मणों की महिमा बताना
| श्रीकृष्ण द्वारा दुर्वासा के चरित्र का वर्णन करना
| श्रीकृष्ण द्वारा भगवान शंकर के माहात्म्य का वर्णन
| भगवान शंकर के माहात्म्य का वर्णन
| धर्म के विषय में आगम-प्रमाण की श्रेष्ठता
| भीष्म द्वारा धर्माधर्म के फल का वर्णन
| साधु-असाधु के लक्षण तथा शिष्टाचार का निरूपण
| युधिष्ठिर का विद्या, बल और बुद्धि की अपेक्षा भाग्य की प्रधानता बताना
| भीष्म का शुभाशुभ कर्मों को ही सुख-दु:ख की प्राप्ति का कारण बताना
| नित्यस्मरणीय देवता, नदी, पर्वत, ऋषि और राजाओं के नाम-कीर्तन का माहात्म्य
| भीष्म की अनुमति से युधिष्ठिर का सपरिवार हस्तिनापुर प्रस्थान
भीष्मस्वर्गारोहण पर्व
भीष्म के अन्त्येष्टि संस्कार की सामग्री लेकर युधिष्ठिर आदि का आगमन
| भीष्म का धृतराष्ट्र और युधिष्ठिर को कर्तव्य का उपदेश देना
| भीष्म का श्रीकृष्ण आदि से देहत्याग की अनुमति लेना
| भीष्म का प्राणत्याग
| धृतराष्ट्र द्वारा भीष्म का दाह संस्कार
| गंगा का भीष्म के लिए शोक प्रकट करना और श्रीकृष्ण का उन्हें समझाना
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