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==== युधिष्ठिर का सेना सहित वन प्रस्थान ====
 
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[[वैशम्पायन|वैशम्पायन जी]] कहते हैं- भरतभूषण! [[द्रौपदी|द्रौपदी देवी]] के ऐसा कहने पर [[युधिष्ठिर|राजा युधिष्ठिर]] ने समस्त सेनापतियों को बुलाकर कहा- ‘तुम लोग बहुत से रथ और हाथी घोड़ों से सुसज्जित सेना को कूच करने की आज्ञा दो। मैं वनवासी महाराज धृतराष्ट्र के दर्शन करने के लिये चलूँगा’। इसके बाद राजा ने रनिवास के अध्यक्षों को आज्ञा दी- ‘तुम सब लोग हमारे लिये भाँति भाँति के वाहन और पालकियों को हजारों की संख्या में तैयार करो। आवश्यक सामानों से लदे हुए छकडे़, बाजार, दुकानें, खजाना, कारीगर और कोषाध्यक्ष- ये सब कुरुक्षेत्र के आश्रम की ओर रवाना हो जायँ। नगरवासियों में से जो कोई भी महाराज का दर्शन करना चाहता हो, उसे बेरोक-टोक सुविधापूर्वक सुरक्षित रूप से चलने दिया जाय। पाकशाला के अध्यक्ष और रसोइये भोजन बनाने के सब सामानों तथा भाँति भाँति के भक्ष्य भोज्य पदार्थों को मेरे छकड़ों पर लादकर ले चलें। नगर में यह घोषणा करा दी जाय कि ‘कल सबेरे यात्रा की जायगी; इसलिये चलने वालों को विलम्ब नहीं करना चाहिये।’ मार्ग में हम लोगों के ठहरने के लिये आज ही कई तरह के डेरे तैयार कर दिये जायँ। राजन! इस प्रकार आज्ञा देकर सबेरा होते ही अपने भाई पाण्डवों सहित राजा युधिष्ठिर ने स्त्री और बूढ़ों को आगे करके नगर से प्रस्थान किया। बाहर जाकर पुरवासी मनुष्यों की प्रतीक्षा करते हुए पाँच दिनों तक एक ही स्थान पर टिके रहे। फिर सबको साथ लेकर वन में गये।
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[[वैशम्पायन|वैशम्पायन जी]] कहते हैं- भरतभूषण! [[द्रौपदी|द्रौपदी देवी]] के ऐसा कहने पर [[युधिष्ठिर|राजा युधिष्ठिर]] ने समस्त सेनापतियों को बुलाकर कहा- ‘तुम लोग बहुत से रथ और हाथी घोड़ों से सुसज्जित सेना को कूच करने की आज्ञा दो। मैं वनवासी महाराज धृतराष्ट्र के दर्शन करने के लिये चलूँगा’। इसके बाद राजा ने रनिवास के अध्यक्षों को आज्ञा दी- ‘तुम सब लोग हमारे लिये भाँति-भाँति के वाहन और पालकियों को हजारों की संख्या में तैयार करो। आवश्यक सामानों से लदे हुए छकडे़, बाजार, दुकानें, खजाना, कारीगर और कोषाध्यक्ष- ये सब कुरुक्षेत्र के आश्रम की ओर रवाना हो जायँ। नगरवासियों में से जो कोई भी महाराज का दर्शन करना चाहता हो, उसे बेरोक-टोक सुविधापूर्वक सुरक्षित रूप से चलने दिया जाय। पाकशाला के अध्यक्ष और रसोइये भोजन बनाने के सब सामानों तथा भाँति-भाँति के भक्ष्य भोज्य पदार्थों को मेरे छकड़ों पर लादकर ले चलें। नगर में यह घोषणा करा दी जाय कि ‘कल सबेरे यात्रा की जायगी; इसलिये चलने वालों को विलम्ब नहीं करना चाहिये।’ मार्ग में हम लोगों के ठहरने के लिये आज ही कई तरह के डेरे तैयार कर दिये जायँ। राजन! इस प्रकार आज्ञा देकर सबेरा होते ही अपने भाई पाण्डवों सहित राजा युधिष्ठिर ने स्त्री और बूढ़ों को आगे करके नगर से प्रस्थान किया। बाहर जाकर पुरवासी मनुष्यों की प्रतीक्षा करते हुए पाँच दिनों तक एक ही स्थान पर टिके रहे। फिर सबको साथ लेकर वन में गये।
  
  

01:06, 11 अक्टूबर 2017 का अवतरण

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में आश्रमवास पर्व के अंतर्गत 22वें अध्याय में वैशम्पायन जी ने युधिष्ठिर का रनिवास तथा सेना सहित वन प्रस्थान का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

युधिष्ठिर का सेना सहित वन प्रस्थान

वैशम्पायन जी कहते हैं- भरतभूषण! द्रौपदी देवी के ऐसा कहने पर राजा युधिष्ठिर ने समस्त सेनापतियों को बुलाकर कहा- ‘तुम लोग बहुत से रथ और हाथी घोड़ों से सुसज्जित सेना को कूच करने की आज्ञा दो। मैं वनवासी महाराज धृतराष्ट्र के दर्शन करने के लिये चलूँगा’। इसके बाद राजा ने रनिवास के अध्यक्षों को आज्ञा दी- ‘तुम सब लोग हमारे लिये भाँति-भाँति के वाहन और पालकियों को हजारों की संख्या में तैयार करो। आवश्यक सामानों से लदे हुए छकडे़, बाजार, दुकानें, खजाना, कारीगर और कोषाध्यक्ष- ये सब कुरुक्षेत्र के आश्रम की ओर रवाना हो जायँ। नगरवासियों में से जो कोई भी महाराज का दर्शन करना चाहता हो, उसे बेरोक-टोक सुविधापूर्वक सुरक्षित रूप से चलने दिया जाय। पाकशाला के अध्यक्ष और रसोइये भोजन बनाने के सब सामानों तथा भाँति-भाँति के भक्ष्य भोज्य पदार्थों को मेरे छकड़ों पर लादकर ले चलें। नगर में यह घोषणा करा दी जाय कि ‘कल सबेरे यात्रा की जायगी; इसलिये चलने वालों को विलम्ब नहीं करना चाहिये।’ मार्ग में हम लोगों के ठहरने के लिये आज ही कई तरह के डेरे तैयार कर दिये जायँ। राजन! इस प्रकार आज्ञा देकर सबेरा होते ही अपने भाई पाण्डवों सहित राजा युधिष्ठिर ने स्त्री और बूढ़ों को आगे करके नगर से प्रस्थान किया। बाहर जाकर पुरवासी मनुष्यों की प्रतीक्षा करते हुए पाँच दिनों तक एक ही स्थान पर टिके रहे। फिर सबको साथ लेकर वन में गये।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 22 श्लोक 17-25

सम्बंधित लेख

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में उल्लेखित कथाएँ


आश्रमवास पर्व

युधिष्ठिर तथा कुंती द्वारा धृतराष्ट्र और गांधारी की सेवा | पांडवों का धृतराष्ट्र और गांधारी के अनुकूल बर्ताव | धृतराष्ट्र का गांधारी के साथ वन जाने हेतु उद्योग | धृतराष्ट्र का वन जाने हेतु युधिष्ठिर से अनुमति लेने का अनुरोध | युधिष्ठिर और कुंती आदि का दुखी होना | युधिष्ठिर का धृतराष्ट्र को वन जाने हेतु अनुमति देना | धृतराष्ट्र द्वारा युधिष्ठिर को राजनीति का उपदेश | धृतराष्ट्र द्वारा राजनीति का उपदेश | युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र द्वारा राजनीति का उपदेश | धृतराष्ट्र का कुरुजांगल की प्रजा से वन जाने हेतु आज्ञा माँगना | प्रजाजनों से धृतराष्ट्र द्वारा क्षमा प्रार्थना करना | साम्ब ब्राह्मण का धृतराष्ट्र को सान्त्वनापूर्ण उत्तर देना | धृतराष्ट्र का युधिष्ठिर से श्राद्ध के लिए धन मांगना | धृतराष्ट्र के धन मांगने पर अर्जुन की सहमति और भीम का विरोध | युधिष्ठिर का धृतराष्ट्र को यथेष्ट धन देने की स्वीकृति देना | विदुर का धृतराष्ट्र को युधिष्ठिर का उदारतापूर्ण उत्तर सुनाना | धृतराष्ट्र द्वारा मृत व्यक्तियों के लिए श्राद्ध एवं दान-यज्ञ का अनुष्ठान | गांधारी सहित धृतराष्ट्र का वन प्रस्थान | पांडवों के अनुरोध पर भी कुंती का वन जाने का निश्चय | कुंती द्वारा पांडवों के अनुरोध का उत्तर | पांडवों का स्त्रियों सहित निराश लौटना | कुंती सहित गांधारी व धृतराष्ट्र का गंगातट पर निवास | धृतराष्ट्र आदि का गंगातट से कुरुक्षेत्र गमन | धृतराष्ट्र आदि का शतयूप के आश्रम पर निवास | नारद का धृतराष्ट्र की तपस्या विषयक श्रद्धा को बढ़ाना | नारद द्वारा धृतराष्ट्र को मिलने वाली गति का वर्णन | धृतराष्ट्र आदि के लिए पांडवों तथा पुरवासियों की चिंता | कुंती की चिंता से युधिष्ठिर का वन जाने का विचार | युधिष्ठिर के साथ सहदेव और द्रौपदी का वन जाने का उत्साह | युधिष्ठिर का सेना सहित वन प्रस्थान | पांडवों का सेना सहित कुरुक्षेत्र पहुँचना | पांडवों तथा पुरवासियों का धृतराष्ट्र आदि के दर्शन करना | संजय द्वारा ऋषियों को पांडवों सहित समस्त स्त्रियों का परिचय देना | धृतराष्ट्र और युधिष्ठिर की बातचीत | विदुर का युधिष्ठिर के शरीर में प्रवेश | युधिष्ठिर आदि का ऋषियों के आश्रम देखना | युधिष्ठिर का कलश आदि बाँटना और धृतराष्ट्र के पास बैठना | युधिष्ठिर आदि के पास ऋषियों सहित व्यास का आगमन | व्यास का धृतराष्ट्र से कुशल-क्षेम पूछना | व्यास का धृतराष्ट्र से विदुर और युधिष्ठिर की धर्मरूपता का प्रतिपादन

पुत्रदर्शन पर्व

धृतराष्ट्र का मृत बान्धवों के शोक से दुखी होना | गांधारी और कुंती का व्यास से मृत पुत्रों के दर्शन का अनुरोध | कुंती का कर्ण के जन्म का गुप्त रहस्य बताने का वर्णन | व्यास द्वारा कुंती को सांत्वना देना | व्यास द्वारा धृतराष्ट्र आदि के पूर्वजन्म का परिचय | व्यास के कहने पर सब लोगों का गंगा तटपर जान | व्यास के प्रभाव से कौरव-पाण्डवों का गंगा नदी से प्रकट होना | परलोक से आये व्यक्तियों का रागद्वेषरहित होकर मिलना | व्यास आज्ञा से विधवा क्षत्राणियों का अपने पतियों के लोक जाना | पुत्रदर्शन पर्व के श्रवण की महिमा | वैशम्पायन द्वारा जनमेजय की शंका का समाधान | व्यास की कृपा से जनमेजय को अपने पिता के दर्शन | व्यास की आज्ञा से धृतराष्ट्र आदि पाण्डवों को विदा करना | पाण्डवों का सदलबल हस्तिनापुर में आना

नारदागमन पर्व

नारद का युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र आदि के दावानल में दग्ध होने का समाचार देना | युधिष्ठिर का धृतराष्ट्र आदि की मृत्यु पर शोक करना | धृतराष्ट्र आदि की मृत्यु पर युधिष्ठिर एवं अन्य पांडवों का विलाप | युधिष्ठिर द्वारा धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की हड्डियों को गंगा में प्रवाहित करना

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