विदुर का धृतराष्ट्र को युधिष्ठिर का उदारतापूर्ण उत्तर सुनाना

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में आश्रमवास पर्व के अंतर्गत 13वें अध्याय में वैशम्पायन जी ने विदुर द्वारा धृतराष्ट्र को युधिष्ठिर का उदारतापूर्ण उत्तर सुनाने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

विदुर द्वारा धृतराष्ट्र के समक्ष युधिष्ठिर का उदारतापूर्ण उत्तर सुनाना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! राजा युधिष्ठिर के इस प्रकार कहने पर बुद्धिमानों में श्रेष्ठ विदुर जी धृतराष्ट्र के पास जाकर यह महान अर्थ से युक्त बात बोले- ‘महाराज! मैंने महातेजस्वी राजा युधिष्ठिर के यहाँ जाकर आपका संदेश आरम्भ से कह सुनाया। उसे सुनकर उन्होंने आपकी बड़ी प्रशंसा की। महातेजस्वी अर्जुन भी आपको अपना सारा घर सौंपते हैं। उनके घर में जो कुछ धन है, उसे और अपने प्राणों को भी वे आपकी सेवा में समर्पित करने को तैयार हैं। राजर्षे! आपके पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर अपना राज्य, प्राण, धन तथा और जो कुछ उनके पास है, सब आपको दे रहे हैं। परंतु महाबाहु भीमसेन पहले के समस्त क्लेशों का, जिनकी संख्या अधिक है, स्मरण करके लंबी साँस खींचते हुए बड़ी कठिनाई से धन देने की अनुमति दी है। राजन! धर्मशील राजा युधिष्ठिर तथा अर्जुन ने भी महाबाहु भीमसेन को भलीभाँति समझाकर उनके हृदय में भी आपके प्रति सौहार्द उत्पन्न कर दिया है।

धर्मराज ने आपसे कहलाया है कि भीमसेन पूर्व वैर का स्मरण करके जो कभी कभी आपके साथ अन्याय सा कर बैठते हैं, उसके लिये आप इन पर क्रोध न कीजियेगा। नरेश्वर! क्षत्रियों का यह धर्म प्रायः ऐसा ही है। भीमसेन युद्ध और क्षत्रिय धर्म में प्रायः निरत रहते हैं। भीमसेन के कटु बर्ताव के लिये मैं और अर्जुन दोनों आप से बार-बार क्षमायाचना करते हैं। नरेश्वर! आप प्रसन्न हों। मेरे पास जो कुछ भी है, उसके स्वामी आप ही हैं। पृथ्वीनाथ! भरतनन्दन! आप जितना धन दान करना चाहें, करें। आप मेरे राज्य और प्राणों के भी ईश्वर हैं। ब्राह्मणों को माफी जमीन दीजिये और पुत्रों का श्राद्ध कीजिये।’ युधिष्ठिर ने यह भी कहा है कि ‘महाराज धृतराष्ट्र मेरे यहाँ से नाना प्रकार के रत्न, गौएँ, दास, दासियाँ और भेड़ बकरे मँगवाकर ब्राह्मणों को दान करें। विदुर जी! आप राजा धृतराष्ट्र की आज्ञा से दीनों, अन्धों और कंगालों के लिये भिन्न-भिन्न स्थानों में प्रचुर अन्न, रस और पीने योग्य पदार्थों से भरी हुई अनेक धर्मशालाएँ बनवाइये तथा गौओं के पानी पीने के लिये बहुत से पौंसलों का निर्माण कीजिये। साथ ही दूसरे भी विविध प्रकार के पुण्य कीजिये। इस प्रकार राजा युधिष्ठिर और अर्जुन ने मुझसे बार-बार कहा है। अब इसके बाद जो कार्य करना हो, उसे आप बताइये’। जनमेजय! विदुर के ऐसा कहने पर धृतराष्ट्र ने पाण्डवों की बड़ी प्रशंसा की और कार्तिक की तिथियों में बहुत बड़ा दान करने का निश्चय किया।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 13 श्लोक 1-15

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आश्रमवास पर्व

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पुत्रदर्शन पर्व

धृतराष्ट्र का मृत बान्धवों के शोक से दुखी होना | गांधारी और कुंती का व्यास से मृत पुत्रों के दर्शन का अनुरोध | कुंती का कर्ण के जन्म का गुप्त रहस्य बताने का वर्णन | व्यास द्वारा कुंती को सांत्वना देना | व्यास द्वारा धृतराष्ट्र आदि के पूर्वजन्म का परिचय | व्यास के कहने पर सब लोगों का गंगा तटपर जान | व्यास के प्रभाव से कौरव-पाण्डवों का गंगा नदी से प्रकट होना | परलोक से आये व्यक्तियों का रागद्वेषरहित होकर मिलना | व्यास आज्ञा से विधवा क्षत्राणियों का अपने पतियों के लोक जाना | पुत्रदर्शन पर्व के श्रवण की महिमा | वैशम्पायन द्वारा जनमेजय की शंका का समाधान | व्यास की कृपा से जनमेजय को अपने पिता के दर्शन | व्यास की आज्ञा से धृतराष्ट्र आदि पाण्डवों को विदा करना | पाण्डवों का सदलबल हस्तिनापुर में आना

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नारद का युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र आदि के दावानल में दग्ध होने का समाचार देना | युधिष्ठिर का धृतराष्ट्र आदि की मृत्यु पर शोक करना | धृतराष्ट्र आदि की मृत्यु पर युधिष्ठिर एवं अन्य पांडवों का विलाप | युधिष्ठिर द्वारा धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की हड्डियों को गंगा में प्रवाहित करना

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