संजय द्वारा ऋषियों को पांडवों सहित समस्त स्त्रियों का परिचय देना

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में आश्रमवास पर्व के अंतर्गत 25वें अध्याय में वैशम्पायन जी ने संजय द्वारा ऋषियों को पांडवों, उनकी पत्नियों तथा अन्यान्य स्त्रियों के परिचय देने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

संजय द्वारा ऋषियों को पांडवों सहित समस्त स्त्रियों का परिचय देना

वैशम्पायन जी कहते हैं- "जनमेजय! जब राजा धृतराष्ट्र सुन्दर कमल के से नेत्रों वाले पुरुषसिंह युधिष्ठिर आदि पाँचों भाईयों के साथ आश्रम में विराजमान हुए, उस समय वहाँ अनेक देशों से आये हुए महाभाग तपस्वीगण कुरुराज पांडु के पुत्र-विशाल वक्षःस्थल वाले पांडवों को देखने के लिये पहले से उपस्थित थे। उन्होंने पूछा- 'हम लोग यह जानना चाहते हैं कि यहाँ आये हुए लोगों में महाराज युधिष्ठिर कौन हैं? भीमसेन, अर्जुन, नकुल, सहदेव और यशस्विनी द्रौपदी देवी कौन हैं?’ उनके इस प्रकार पूछने पर सूत संजय ने उन सबके नाम बताकर पांडवों, द्रौपदी तथा कुरु कुल की अन्य स्त्रियों का इस प्रकार परिचय दिया। संजय बोले- 'ये जो विशुद्ध सुवर्ण के समान गोरे और सबसे बड़े हैं, देखने में महान सिंह के समान जान पड़ते हैं, जिनकी नासिका नुकीली तथा नेत्र बड़े-बड़े़ और कुछ-कुछ लालिमा लिये हुए हैं, ये कुरुराज युधिष्ठिर हैं। जो मतवाले गजराज के समान चलने वाले, तपाये हुए सुवर्ण के समान विशुद्ध गौरवर्ण तथा मोटे और चौडे़ कन्धे वाले हैं, जिनकी भुजाएँ मोटी और बड़ी-बड़ी हैं, ये ही भीमसेन हैं। आप लोग इन्हें अच्छी तरह देख लें। इनके बगल में जो ये महाधनुर्धर और श्याम रंग के नवयुवक दिखायी देते हैं, जिनके कंधे सिंह के समान ऊँचे हैं, जो हाथियों के यूथपति गजराज के समान प्रतीत होते हैं और हाथी के समान मस्तानी चाल से चलते हैं, ये कमलदल के समान विशाल नेत्रों वाले वीरवर अर्जुन हैं।

कुन्ती के पास जो ये दो श्रेष्ठ पुरुष बैठे दिखायी देते हैं, ये एक ही साथ उत्पन्न हुए नकुल और सहदेव हैं। ये दोनों भाई भगवान विष्णु और इन्द्र के समान शोभा पाते हैं। रूप, बल और शील में इन दोनों की समानता करने वाला दूसरा कोई नहीं है। ये जो किंचित मध्यम वय का स्पर्श करती हुई, नील कमलदल के समान विशाल नेत्रों वाली एवं नील उत्पलकी-सी श्यामकान्ति से सुशोभित होने वाली सुन्दरी मूर्तिमती लक्ष्मी तथा देवताओं की देवी-सी जान पड़ती हैं, ये ही महारानी द्रुपदकुमारी कृष्णा हैं। विप्रवरो! इनके बगल में जो ये सुवर्ण से भी उत्तम कान्ति वाली देवी चन्द्रमा की मूर्तिमती प्रभा-सी विराजमान हो रही हैं और सब स्त्रियों के बीच में बैठी हैं, ये अनुपम प्रभावशाली चक्रधारी भगवान श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा हैं। ये जो विशुद्ध जाम्बूनद नामक सुवर्ण के समान गौर वर्ण वाली सुन्दरी देवी बैठी हैं, ये नागराज कन्या उलूपी हैं तथा जिनकी अंगकान्ति नूतन मधुक पुष्पों के समान प्रतीत होती है, ये राजकुमारी चित्रांगदा हैं। ये दोनों भी अर्जुन की ही पत्नियाँ हैं। ये जो इन्दीवर के समान श्यामवर्ण वाली राजमहिला विराजमान हैं, भीमसेन की श्रेष्ठ पत्नी हैं। ये उस राजसेनापति एवं नरेश की बहन हैं, जो सदा भगवान श्रीकृष्ण से टक्कर लेने का हौंसला रखता था। साथ ही यह जो चम्पा की माला के समान गौरवर्ण वाली सुन्दरी बैठी हुई है, यह सुविख्यात मगधनरेश जरासंध की पुत्री एवं माद्री के छोटे पुत्र सहदेव की भार्या हैं।'[1]

इनके पास जो नीलकमल के समान श्याम रंग वाली महिला है, वह कमलनयनी सुन्दरी माद्री के ज्येष्ठ पुत्र नकुल की पत्नी है। यह जो तपाये हुए कुन्दन के समान कान्ति वाली तरुणी गोद में बालक लिये बैठी है, यह राजा विराट की पुत्री उत्तरा है। यह उस वीर अभिमन्यु की धर्मपत्नी है, जो महाभारत युद्ध में रथ पर बैठे हुए द्रोणाचार्य आदि अनेक महारथियों द्वारा रथहीन कर दिया जाने पर मारा गया। इन सबके सिवा ये जितनी स्त्रियाँ सफेद चादर ओढे़ बैठी हुई हैं, जिनकी माँगों में सिन्दूर नहीं है, ये सब दुर्योधन आदि सौ भाईयों की पत्नियाँ और इन बूढे़ महाराज की सौ पुत्रवधुएँ हैं। इनके पति और पुत्र रण में नरवीरों द्वारा मारे गये हैं। ब्राह्मणत्व के प्रभाव से सरल बुद्धि और विशुद्ध अन्तःकरण वाले महर्षियों! आपने सबका परिचय पूछा था; इसलिये मैंने इनमें से मुख्य-मुख्य व्यक्तियों का परिचय दे दिया है। ये सभी राजपत्नियाँ विशुद्ध हृदय वाली हैं। वैशम्पायन ने कहा- इस प्रकार संजय के मुख से सबका परिचय पाकर जब सभी तपस्वी अपनी-अपनी कुटिया में चले गये, तब कुरुकुल के वृद्ध एवं श्रेष्ठ पुरुष राजा धृतराष्ट्र इस प्रकार उन नरदेव कुमारों से मिलकर उस समय सबका कुशल-मंगल पूछने लगे। पाण्डवों के सैनिकों ने आश्रममण्डल की सीमा को छोड़कर कुछ दूर पर समस्त वाहनों को खोल दिया और वहीं पड़ाव डाल दिया तथा स्त्री, वृद्ध और बालकों का समुदाय छावनी में सुखपूर्वक विश्राम लेने लगा। उस समय राजा धृतराष्ट्र पाण्डवों से मिलकर उनका कुशल-समाचार पूछने लगे।[2]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 25 श्लोक 1-13
  2. महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 25 श्लोक 14-19

सम्बंधित लेख

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में उल्लेखित कथाएँ


आश्रमवास पर्व

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पुत्रदर्शन पर्व

धृतराष्ट्र का मृत बान्धवों के शोक से दुखी होना | गांधारी और कुंती का व्यास से मृत पुत्रों के दर्शन का अनुरोध | कुंती का कर्ण के जन्म का गुप्त रहस्य बताने का वर्णन | व्यास द्वारा कुंती को सांत्वना देना | व्यास द्वारा धृतराष्ट्र आदि के पूर्वजन्म का परिचय | व्यास के कहने पर सब लोगों का गंगा तटपर जान | व्यास के प्रभाव से कौरव-पाण्डवों का गंगा नदी से प्रकट होना | परलोक से आये व्यक्तियों का रागद्वेषरहित होकर मिलना | व्यास आज्ञा से विधवा क्षत्राणियों का अपने पतियों के लोक जाना | पुत्रदर्शन पर्व के श्रवण की महिमा | वैशम्पायन द्वारा जनमेजय की शंका का समाधान | व्यास की कृपा से जनमेजय को अपने पिता के दर्शन | व्यास की आज्ञा से धृतराष्ट्र आदि पाण्डवों को विदा करना | पाण्डवों का सदलबल हस्तिनापुर में आना

नारदागमन पर्व

नारद का युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र आदि के दावानल में दग्ध होने का समाचार देना | युधिष्ठिर का धृतराष्ट्र आदि की मृत्यु पर शोक करना | धृतराष्ट्र आदि की मृत्यु पर युधिष्ठिर एवं अन्य पांडवों का विलाप | युधिष्ठिर द्वारा धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की हड्डियों को गंगा में प्रवाहित करना

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