व्यास के प्रभाव से कौरव-पाण्डवों का गंगा नदी से प्रकट होना

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में पुत्रदर्शन पर्व के अंतर्गत अध्याय 32 में व्यास के प्रभाव से कौरव-पाण्डवों का गंगा नदी से प्रकट होना का वर्णन हुआ है।[1]

कौरव-पाण्डवों का गंगा नदी से प्रकट होना

वैशम्‍पायन जी कहते हैं– जनमेजय! तदनन्‍तर जब रात होने को आयी, तब जो लोग वहाँ आये थे, वे सब सांयकालोचित नित्‍य नियम पूर्ण करके भगवान व्‍यास के समीप गये। पाण्‍डवों सहित धर्मात्‍मा धृतराष्‍ट्र पवित्र एवं एकाग्रचित्त हो उन ऋषियों के साथ व्यास जी के निकट जा बैठे। कुरुकुल की सारी स्त्रियाँ एक साथ हो गान्धारी के समीप बैठ गयीं तथा नगर और जनपद के निवासी भी अवस्था के अनुसार यथास्थान विराजमान हो गये। तत्पश्चात महातेजस्वी महामुनि व्यास जी ने भागीरथी के पवित्र जल में प्रवेश करके पाण्डव तथा कौरव पक्ष के सब लोगों का आवाहन किया। पाण्डवों तथा कौरवों के पक्ष में जो नाना देशों के निवासी महाभाग नरेश योद्धा बनकर आये थे, उन सब का व्यास जी ने आह्वान किया। जनमेजय! तदनन्तर जल के भीतर से कौरवों और पाण्डवों की सेनाओं का पहले-जैसा ही भयंकर शब्द प्रकट होने लगा। फिर तो भीष्म-द्रोण आदि समस्त राजा अपनी केवल फोटो सेनाओं के साथ सहस्रों की संख्या में उस जल से बाहर निकलने लगे। पुत्रों और सैनिकों सहित विराट और द्रुपद पानी से बाहर आये। द्रौपदी के पाँचों पुत्र, अभिमन्यु तथा राक्षस घटोत्कच ये सभी जल से प्रकट हो गये। कर्ण, दुर्योधन, महारथी शकुनि, धृतराष्ट्र के पुत्र महाबली दुःशासन आदि, जरासन्ध कुमार सहदेव, भगदत्त,पराक्रमी जलसन्ध, भूरिश्रवा, शल, शल्य, भाइयों सहित वृषसेन, राजकुमार लक्ष्मण, धृष्टद्युम्न के पुत्र, शिखण्डी के सभी पुत्र, राजा बाह्लिक, सोमदत्त और चेकितान- ये तथा दूसरे बहुत-से क्षत्रियवीर, जो संख्या में अधिक होने के कारण नाम लेकर नहीं बताये गये हैं, सभी देदीप्यमान शरीर धारण करके उस जल से प्रकट हुए। जिस वीर का जैसा ध्वजा और जैसा वाहन था, वह उसी से युक्त दिखायी दिया। वहाँ प्रकट हुए सभी नरेश दिव्य वस्त्र धारण किये हुए थे।

सबके कानों में चमकीले कुण्डल शोभा पाते थे। उस समय वे वैर, अहंकार, क्रोध और मात्सर्य छोड़ चुके थे। गन्धर्व उनके गुण गाते और बन्दीजन स्तुति करते थे। उन सब ने दिव्य माला और दिव्य वस्त्र धारण कर रखे थे और सभी अप्सराओं से घिरे हुए थे। नरेश्वर! उस समय सत्यवतीनन्दन मुनिवर व्यास ने प्रसन्न होकर अपने तपोबल से धृतराष्ट्र को दिव्य नेत्र प्रदान किये। यशस्विनी गान्धारी भी दिव्य ज्ञान बल से सम्पन्न हो गयी थीं। उन दोनों ने युद्ध में मारे गये अपने पुत्रों तथा अन्य सब सम्बन्धियों को देखा। वहाँ आये हुए सब लोग आश्चर्यचकित हो एकटक दृष्टि से उस अद्भुत, अचिन्त्य एवं अत्यन्त रोमांचकारी दृश्य को देख रहे थे। वह हर्षोत्फुल्ल नर-नारियों से भरा हुआ महान आश्चर्य जनक उत्सव कपड़े पर अंकित किये गये चित्र की भाँति दिखायी देता था। भरतश्रेष्ठ! राजा धृतराष्ट्र मुनिवर व्यास की कृपा से मिले हुए दिव्य नेत्रों द्वारा अपने समस्त पुत्रों और सम्बन्धियों को देखते हुए आनन्दमग्न हो गये।[1]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 32 श्लोक 1-21

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धृतराष्ट्र का मृत बान्धवों के शोक से दुखी होना | गांधारी और कुंती का व्यास से मृत पुत्रों के दर्शन का अनुरोध | कुंती का कर्ण के जन्म का गुप्त रहस्य बताने का वर्णन | व्यास द्वारा कुंती को सांत्वना देना | व्यास द्वारा धृतराष्ट्र आदि के पूर्वजन्म का परिचय | व्यास के कहने पर सब लोगों का गंगा तटपर जान | व्यास के प्रभाव से कौरव-पाण्डवों का गंगा नदी से प्रकट होना | परलोक से आये व्यक्तियों का रागद्वेषरहित होकर मिलना | व्यास आज्ञा से विधवा क्षत्राणियों का अपने पतियों के लोक जाना | पुत्रदर्शन पर्व के श्रवण की महिमा | वैशम्पायन द्वारा जनमेजय की शंका का समाधान | व्यास की कृपा से जनमेजय को अपने पिता के दर्शन | व्यास की आज्ञा से धृतराष्ट्र आदि पाण्डवों को विदा करना | पाण्डवों का सदलबल हस्तिनापुर में आना

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