धृतराष्ट्र का युधिष्ठिर से श्राद्ध के लिए धन मांगना

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में आश्रमवास पर्व के अंतर्गत 11वें अध्याय में वैशम्पायन जी ने धृतराष्ट्र का विदुर के द्वारा युधिष्ठिर से श्राद्ध के लिए धन मांगने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

धृतराष्ट्र का युधिष्ठिर से श्राद्ध हेतु धन मांगना

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! तदनन्तर जब रात बीती और सबेरा हुआ, तब अम्बिकानन्दन राजा धृतराष्ट्र ने विदुर जी को युधिष्ठिर के महल में भेजा। राजा की आज्ञा से अपने धर्म से कभी विचलित न होने वाले राजा युधिष्ठिर के पास जाकर समस्त बुद्धिमानों में श्रेष्ठ महातेजस्वी विदुर ने इस प्रकार कहा- ‘राजन! महाराज धृतराष्ट्र वनवास की दीक्षा ले चुके हैं। इसी कार्तिकी पूर्णिमा को जो कि अब निकट आ पहुँची है, वे वन की यात्रा करेंगे। कुरुकुलश्रेष्ठ! इस समय वे तुमसे कुछ धन लेना चाहते हैं। उनकी इच्छा है कि महात्मा भीष्म, द्रोणाचार्य, सोमदत्त, बुद्धिमान बाह्लीक और युद्ध में मारे गये अपने समस्त पुत्रों तथा अन्य सुहृदों का श्राद्ध करें। यदि तुम्हारी सम्मति हो तो वे उस नराधम सिन्धुराज जयद्रथ का भी श्राद्ध करना चाहते हैं’। विदुर की यह बात सुनकर युधिष्ठिर तथा पाण्डुपुत्र अर्जुन बड़े प्रसन्न हुए और उनकी सराहना करने लगे। परंतु महातेजस्वी भीमसेन के हृदय में उनके प्रति अमिट क्रोध जमा हुआ था। उन्हें दुर्योधन के अत्याचारों का स्मरण हो आया, अतः उन्होंने विदुर जी की बात नहीं स्वीकार की।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 11 श्लोक 1-17

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