पांडवों का सेना सहित कुरुक्षेत्र पहुँचना

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में आश्रमवास पर्व के अंतर्गत 23वें अध्याय में वैशम्पायन जी ने पांडवों की यात्रा तथा उनके सेना सहित कुरुक्षेत्र पहुँचने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

पांडवों की सेना सहित यात्रा तथा हस्तिनापुर गमन

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर भरत कुलभूषण राजा युधिष्ठिर ने लोकपालों के समान पराक्रमी अर्जुन आदि वीरों द्वारा सुरक्षित अपनी सेना को कूच करने की आज्ञा दी। ‘चलने को तैयार हो जाओ, तैयार हो जाओ’ इस प्रकार उनका प्रेमपूर्ण आदेश प्राप्त होते ही घुड़सवार सब ओर पुकार-पुकार कर कहने लगे, ‘सवारियों को जोतो, जोतो!’ इस तरह की घोषणा करने से वहाँ महान कोलाहल मच गया। कुछ लोग पालकियों पर सवार होकर चले और कुछ लोग महान वेगशाली घोड़ों द्वारा यात्रा करने लगे। कितने ही मनुष्य प्रज्वलित अग्नि के समान चमकीले सुवर्णमय रथों पर आरूढ़ होकर वहाँ से प्रस्थित हुए। नरेश्वर! कुछ लोग गजराजों पर सवार थे और कुछ ऊँटों पर। कितने की बघनखों और भालों से युद्ध करने वाले वीर पैदल ही चल रहे थे। नगर और जनपद के लोग भी राजा धृतराष्ट्र को देखने की इच्छा से नाना प्रकार के वाहनों द्वारा कुरुराज युधिष्ठिर का अनुसरण करते थे। राजा युधिष्ठिर के आदेश से सेनापति कृपाचार्य भी सेना को साथ लेकर आश्रम की ओर चल दिये। तत्पश्चात् ब्राह्मणों से घिरे हुए कुरुराज युधिष्ठिर बहुसंख्यक सूत, मागध और वन्दीजनों के मुख से अपनी स्तुति सुनते हुए मस्तक पर श्वेत छत्र धारण किये विशाल रथ सेना के साथ वहाँ से चले।

भयंकर पराक्रम करने वाले पवनपुत्र भीमसेन पर्वताकार गजराजों की सेना के साथ जा रहे थे। उन गजराजों की पीठ पर अनेकानेक यन्त्र और आयुध सुसज्जित किये गये थे। माद्रीकुमार नकुल और सहदेव भी घोड़ों पर सवार थे और घुड़सवारों से ही घिरे हुए शीघ्रतापूर्वक चल रहे थे। उन्होंने अपने शरीर में कवच और घोड़ों की पीठ पर ध्वज बाँध रखे थे। महातेजस्वी जितेन्द्रिय अर्जुन श्वेत घोड़ों से जूते हुए सूर्य के समान तेजस्वी दिव्यरथ पर आरूढ़ हो राजा युधिष्ठिर का अनुसरण करते थे। द्रौपदी आदि स्त्रियाँ भी शिबिकाओं में बैठकर दीन-दुखियों को असंख्य धन बाँटती हुई जा रही थीं। रनिवास के अध्यक्ष सब ओर से उनकी रक्षा कर रहे थे। पाण्डवों की सेना में रथ, हाथी और घोड़ों की अधिकता थी। उसमें कहीं वंशी बजती थी और कहीं वीणा। भरतश्रेष्ठ! इन वाद्यों की ध्वनि से निनादित होने के कारण वह पाण्डव सेना उस समय बड़ी शोभा पा रही थी। प्रजानाथ! वे कुरुश्रेष्ठ वीर नदियों के रमणीय तटों तथा अनेक सरोवरों पर पड़ाव डालते हुए क्रमशः आगे बढ़ते गये। महातेजस्वी युयुत्सु और पुरोहित धौम्य मुनि युधिष्ठिर के आदेश से हस्तिनापुर में ही रहकर राजधानी की रक्षा करते थे। उधर राजा युधिष्ठिर क्रमशः आगे बढ़ते हुए परम पावन यमुना नदी को पार करके कुरुक्षेत्र में जा पहुँचे। कुरुनन्दन! वहाँ पहुँचकर उन्होंने दूर से ही बुद्धिमान राजर्षि शतयूप तथा धृतराष्ट्र के आश्रम को देखा। भरतभूषण! इससे उन सब लोगों को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने उस वन में महान कोलाहल फैलाते हुए अनायास ही प्रवेश किया।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 23 श्लोक 1-18

सम्बंधित लेख

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में उल्लेखित कथाएँ


आश्रमवास पर्व

युधिष्ठिर तथा कुंती द्वारा धृतराष्ट्र और गांधारी की सेवा | पांडवों का धृतराष्ट्र और गांधारी के अनुकूल बर्ताव | धृतराष्ट्र का गांधारी के साथ वन जाने हेतु उद्योग | धृतराष्ट्र का वन जाने हेतु युधिष्ठिर से अनुमति लेने का अनुरोध | युधिष्ठिर और कुंती आदि का दुखी होना | युधिष्ठिर का धृतराष्ट्र को वन जाने हेतु अनुमति देना | धृतराष्ट्र द्वारा युधिष्ठिर को राजनीति का उपदेश | धृतराष्ट्र द्वारा राजनीति का उपदेश | युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र द्वारा राजनीति का उपदेश | धृतराष्ट्र का कुरुजांगल की प्रजा से वन जाने हेतु आज्ञा माँगना | प्रजाजनों से धृतराष्ट्र द्वारा क्षमा प्रार्थना करना | साम्ब ब्राह्मण का धृतराष्ट्र को सान्त्वनापूर्ण उत्तर देना | धृतराष्ट्र का युधिष्ठिर से श्राद्ध के लिए धन मांगना | धृतराष्ट्र के धन मांगने पर अर्जुन की सहमति और भीम का विरोध | युधिष्ठिर का धृतराष्ट्र को यथेष्ट धन देने की स्वीकृति देना | विदुर का धृतराष्ट्र को युधिष्ठिर का उदारतापूर्ण उत्तर सुनाना | धृतराष्ट्र द्वारा मृत व्यक्तियों के लिए श्राद्ध एवं दान-यज्ञ का अनुष्ठान | गांधारी सहित धृतराष्ट्र का वन प्रस्थान | पांडवों के अनुरोध पर भी कुंती का वन जाने का निश्चय | कुंती द्वारा पांडवों के अनुरोध का उत्तर | पांडवों का स्त्रियों सहित निराश लौटना | कुंती सहित गांधारी व धृतराष्ट्र का गंगातट पर निवास | धृतराष्ट्र आदि का गंगातट से कुरुक्षेत्र गमन | धृतराष्ट्र आदि का शतयूप के आश्रम पर निवास | नारद का धृतराष्ट्र की तपस्या विषयक श्रद्धा को बढ़ाना | नारद द्वारा धृतराष्ट्र को मिलने वाली गति का वर्णन | धृतराष्ट्र आदि के लिए पांडवों तथा पुरवासियों की चिंता | कुंती की चिंता से युधिष्ठिर का वन जाने का विचार | युधिष्ठिर के साथ सहदेव और द्रौपदी का वन जाने का उत्साह | युधिष्ठिर का सेना सहित वन प्रस्थान | पांडवों का सेना सहित कुरुक्षेत्र पहुँचना | पांडवों तथा पुरवासियों का धृतराष्ट्र आदि के दर्शन करना | संजय द्वारा ऋषियों को पांडवों सहित समस्त स्त्रियों का परिचय देना | धृतराष्ट्र और युधिष्ठिर की बातचीत | विदुर का युधिष्ठिर के शरीर में प्रवेश | युधिष्ठिर आदि का ऋषियों के आश्रम देखना | युधिष्ठिर का कलश आदि बाँटना और धृतराष्ट्र के पास बैठना | युधिष्ठिर आदि के पास ऋषियों सहित व्यास का आगमन | व्यास का धृतराष्ट्र से कुशल-क्षेम पूछना | व्यास का धृतराष्ट्र से विदुर और युधिष्ठिर की धर्मरूपता का प्रतिपादन

पुत्रदर्शन पर्व

धृतराष्ट्र का मृत बान्धवों के शोक से दुखी होना | गांधारी और कुंती का व्यास से मृत पुत्रों के दर्शन का अनुरोध | कुंती का कर्ण के जन्म का गुप्त रहस्य बताने का वर्णन | व्यास द्वारा कुंती को सांत्वना देना | व्यास द्वारा धृतराष्ट्र आदि के पूर्वजन्म का परिचय | व्यास के कहने पर सब लोगों का गंगा तटपर जान | व्यास के प्रभाव से कौरव-पाण्डवों का गंगा नदी से प्रकट होना | परलोक से आये व्यक्तियों का रागद्वेषरहित होकर मिलना | व्यास आज्ञा से विधवा क्षत्राणियों का अपने पतियों के लोक जाना | पुत्रदर्शन पर्व के श्रवण की महिमा | वैशम्पायन द्वारा जनमेजय की शंका का समाधान | व्यास की कृपा से जनमेजय को अपने पिता के दर्शन | व्यास की आज्ञा से धृतराष्ट्र आदि पाण्डवों को विदा करना | पाण्डवों का सदलबल हस्तिनापुर में आना

नारदागमन पर्व

नारद का युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र आदि के दावानल में दग्ध होने का समाचार देना | युधिष्ठिर का धृतराष्ट्र आदि की मृत्यु पर शोक करना | धृतराष्ट्र आदि की मृत्यु पर युधिष्ठिर एवं अन्य पांडवों का विलाप | युधिष्ठिर द्वारा धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की हड्डियों को गंगा में प्रवाहित करना

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः