गांधारी सहित धृतराष्ट्र का वन प्रस्थान

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में आश्रमवास पर्व के अंतर्गत 15वें अध्याय में वैशम्पायन जी ने गांधारी सहित धृतराष्ट्र का वन प्रस्थान करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

धृतराष्ट्र और गांधारी का वन प्रस्थान

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर ग्यारहवें दिन प्रातःकाल गान्धारी सहित बुद्धिमान अम्बिकानन्दन धृतराष्ट्र ने वनवास की तैयारी करके वीर पाण्डवों को बुलाया और उनका यथावत अभिनन्दन किया। उस दिन कार्तिक की पूर्णिमा थी। उसमें उन्होंने वेद के पारंगत विद्वान ब्राह्मणों से यात्रा कालोचित इष्टि करवाकर वल्कल ओर मृगचर्म धारण किये और अग्निहोत्र को आगे करके पुत्र वधुओं से घिरे हुए राजा धृतराष्ट्र राजभवन से बाहर निकले। विचित्रवीर्यनन्दन राजा धृतराष्ट्र के इस प्रकार प्रस्थान करने पर कौरवों और पाण्डवों की स्त्रियाँ तथा कौरव राजवंश की अन्यान्य महिलाएँ सहसा रो पड़ीं। उनके रोने का महान शब्द उस समय सब ओर गूँज उठा था। घर से निकल कर राजा धृतराष्ट्र ने लावा और भाँति-भाँति के फूलों से उस राजभवन की पूजा की और समस्त सेवक वर्ग का धन से सत्कार करके उन सबको छोड़कर वे महाराज वहाँ से चल दिये। तात! उस समय राजा युधिष्ठिर हाथ जोडे़ हुए काँपने लगे। आँसुओं से उनका गला भर आया। वे जोर जोर से महान आर्तनाद करते हुए फूट-फूट कर रोने लगे। और ‘महात्मन्! आप मुझे छोड़कर कहाँ चले जा रहे हैं।’ ऐसा कहते हुए पृथ्वी पर गिर पड़े। उस समय भरतवंश के अग्रगण्य वीर अर्जुन दुस्सह दुःख से संतप्त हो बारंबार लंबी साँस खींचते हुए वहाँ युधिष्ठिर से बोले- ‘भैया! आप ऐसे अधीर न हो जाइये।’ यों कहकर वे उन्हें दोनों हाथों से पकड़कर दीन की भाँति शिथिल होकर बैठ गये।

तत्पश्चात् युधिष्ठिर सहित भीमसेन, अर्जुन, वीर माद्रीकुमार, विदुर, संजय, वैश्यापुत्र युयुत्सु, कृपाचार्य, धौम्य तथा और भी बहुत से ब्राह्मण आँसू बहाते हुए गद्गद कण्ठ होकर उनके पीछे-पीछे चले। आगे-आगे कुन्ती अपने कंधे पर रखे हुए गान्धारी के हाथ को पकड़े चल रही थी। उनके पीछे आँखों पर पट्टी बाँधे गान्धारी थीं और राजा धृतराष्ट्र गान्धारी के कंधे पर हाथ रखे निश्चिन्ततापूर्वक चले जा रहे थे। द्रुपदकुमारी कृष्णा, सुभद्रा, गोद में नन्हा सा बालक लिये उत्तरा, कौरव्य नाग की पुत्री उलूपी, बभ्रुवाहन की माता चित्रांगदा तथा अन्य जो कोई भी अन्तःपुर की स्त्रियाँ थीं; वे सब अपनी बहुओं सहित राजा धृतराष्ट्र के साथ चल पड़ीं। राजन! उस समय वे सब स्त्रियाँ दुःख से व्याकुल हो कुररियों के समान उच्च स्वर से विलाप कर रहीं थी। उनके रोने का कोलाहल सब ओर व्याप्त हो गया था। उसे सुनकर पुरवासी ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों और शूद्रों की स्त्रियाँ भी चारों ओर से घर छोड़कर बाहर निकल आयीं। राजन! जैसे पूर्वकाल में द्यूतक्रीड़ा के समय कौरव सभा से निकलकर वनवास के लिये पाण्डवों के प्रस्थान करने पर हस्तिनापुर के नागरिकों का समुदाय दुःख में डूब गया था, उसी प्रकार धृतराष्ट्र के जाते समय भी समस्त पुरवासी शोक से संतप्त हो उठे थे। रनिवास की जिन रमणियों ने कभी बाहर आकर सूर्य और चन्द्रमा को भी नहीं देखा था, वे ही कौरवराज धृतराष्ट्र के महावन के लिये प्रस्थान करते समय शोक से व्याकुल होकर खुली सड़क पर आ गयी थीं।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 15 श्लोक 1-13

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महाभारत आश्रमवासिक पर्व में उल्लेखित कथाएँ


आश्रमवास पर्व

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पुत्रदर्शन पर्व

धृतराष्ट्र का मृत बान्धवों के शोक से दुखी होना | गांधारी और कुंती का व्यास से मृत पुत्रों के दर्शन का अनुरोध | कुंती का कर्ण के जन्म का गुप्त रहस्य बताने का वर्णन | व्यास द्वारा कुंती को सांत्वना देना | व्यास द्वारा धृतराष्ट्र आदि के पूर्वजन्म का परिचय | व्यास के कहने पर सब लोगों का गंगा तटपर जान | व्यास के प्रभाव से कौरव-पाण्डवों का गंगा नदी से प्रकट होना | परलोक से आये व्यक्तियों का रागद्वेषरहित होकर मिलना | व्यास आज्ञा से विधवा क्षत्राणियों का अपने पतियों के लोक जाना | पुत्रदर्शन पर्व के श्रवण की महिमा | वैशम्पायन द्वारा जनमेजय की शंका का समाधान | व्यास की कृपा से जनमेजय को अपने पिता के दर्शन | व्यास की आज्ञा से धृतराष्ट्र आदि पाण्डवों को विदा करना | पाण्डवों का सदलबल हस्तिनापुर में आना

नारदागमन पर्व

नारद का युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र आदि के दावानल में दग्ध होने का समाचार देना | युधिष्ठिर का धृतराष्ट्र आदि की मृत्यु पर शोक करना | धृतराष्ट्र आदि की मृत्यु पर युधिष्ठिर एवं अन्य पांडवों का विलाप | युधिष्ठिर द्वारा धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की हड्डियों को गंगा में प्रवाहित करना

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