युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र द्वारा राजनीति का उपदेश

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में आश्रमवास पर्व के अंतर्गत सातवें अध्याय में वैशम्पायन जी ने युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र द्वारा राजनीति का उपदेश देने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र द्वारा राजनीति का उपदेश

धृतराष्ट्र ने कहा- 'नृपश्रेष्ठ युधिष्ठिर! तुम्हें संधि और विग्रह पर भी दृष्टि रखनी चाहिये। शत्रु प्रबल हो तो उसके साथ संधि करना और दुर्बल हो तो उसके साथ युद्ध छेड़ना- ये संधि और विग्रह के दो आधार हैं। इनके प्रयोग के उपाय भी नाना प्रकार के हैं और इनके प्रकार भी बहुत हैं। कुरुनन्दन! अपनी द्विविध अवस्था बलाबल का अच्छी तरह विचार करके शत्रु से युद्ध या मेल करना उचित है। यदि शत्रु मनस्वी है और उसके सैनिक हष्ट पुष्ट एवं संतुष्ट हैं तो उस पर सहसा धावा न करके उसे परास्त करने का कोई दूसरा उपाय सोचे। आक्रमण काल में शत्रु की स्थिति विपरीत रहनी चाहिये अर्थात उसके सैनिक हष्ट पुष्ट एवं संतुष्ट नहीं होने चाहिये। राजेन्द्र! यदि शत्रु से अपना मान मर्दन होने की सम्भावना हो तो वहाँ से भागकर किसी दूसरे मित्र राजा की शरण लेनी चाहिये। वहाँ यह प्रयत्न करना चाहिये कि शत्रुओं पर कोई संकट आ जाय या उनमें फूट पड़ जाय, वे क्षीण और भयभीत हो जायँ तथा युद्ध में उनकी सेना नष्ट हो जाय। शत्रु पर चढ़ाई करने वाले शास्त्रविशारद राजा को अपनी और शत्रु की त्रिविध शक्तियों पर भलीभाँति विचार कर लेना चाहिये। भारत! जो राजा उत्साह शक्ति, प्रभु शक्ति और मन्त्र शक्ति में शत्रु की अपेक्षा बढ़ा चढ़ा हो, उसे ही आक्रमण करना चाहिये। यदि इसके विपरित अवस्था हो तो आक्रमण का विचार त्याग देना चाहिये।

प्रभो! राजा को अपने पास सैनिक बल, धन बल, मित्र बल, अरण्य बल, भृत्य बल और श्रेणी बल का संग्रह करना चाहिये। राजन! इनमें मित्रबल और धनबल सबसे बढ़कर है। श्रेणी बल और भृत्य बल ये दोनों समान ही हैं, ऐसा मेरा विश्वास है। नरेश्वर! चारबल (दूतों का बल) भी परस्पर समान ही है। राजा को समय आने पर अधिक अवसरों पर इस तत्त्व को समझे रहना चाहिये। महाराज! कुरुनन्दन! राजा पर आने वाली अनेक प्रकार की आपत्तियाँ भी होती हैं, जिन्हें जानना चाहिये। अतः उनका पृथक-पृथक वर्णन सुनो। राजन! पाण्डुनन्दन! उन आपत्तियों के अनेक प्रकार के विकल्प हैं। राजा साम आदि उपायों द्वारा उन सबको सामने लाकर सदा गिने। परंतप नरेश! देश काल की अनुकूलता होने पर सैनिक बल तथा राजोचित गुणों से युक्त राजा अच्छी सेना साथ लेकर विजय के लिये यात्रा करे। पाण्डुनन्दन! अपने अभ्युदय के लिये तत्पर रहने वाला राजा यदि दुर्बल न हो और उसकी सेना हष्ट पुष्ट हो तो वह युद्ध के अनुकूल मौसम न होने पर भी शत्रु पर चढ़ाई की। शत्रुओं के विनाश के लिये राजा अपनी सेनारूपी नदी का प्रयोग करे। जिसमें तरकस की प्रस्तर खण्ड के समान हैं, घोड़े और रथरूपी प्रवाह शोभा पाते हैं, जिसका कूल किनारा ध्वजरूपी वृक्षों से आच्छादित है तथा पैदल और हाथी जिसके भीतर अगाध पंग के समान जान पड़ते हैं। भारत! युद्ध के समय युक्ति करके सेना का शकट, पद्म अथवा वज्र नामक व्यूह बना ले। प्रभो! शुक्राचार्य जिस शास्त्र को जानते हैं, उसमें ऐसा ही विधान मिलता है।[1]

गुप्तचरों द्वारा शत्रु सेना की जाँच पड़ताल करके अपनी सैनिक शक्ति का भी निरीक्षण करे। फिर अपनी या शत्रु की भूमि पर युद्ध आरम्भ करे। राजा को चाहिये कि वह पारितोषिक आदि के द्वारा सेना को संतुष्ट रखे और उसमें बलवान मनुष्यों की भर्ती करे। अपने बलाबल को अच्छी तरह समझकर साम आदि उपायों के द्वारा संधि या युद्ध के लिये उद्योग करे। महाराज! इस जगत में सभी उपायों द्वारा शरीर की रक्षा करनी चाहिये और उसके द्वारा इहलोक तथा परलोक में भी अपने कल्याण का उत्तम साधन करना उचित है। महाराज! जो राजा इन सब बातों का विचार करके इनके अनुसार ठीक ठीक आचरण और प्रजा का धर्मपूर्वक पालक करता है, वह मृत्यु के पश्चात स्वर्गलोक में जाता है। तात! कुरुश्रेष्ठ! इस प्रकार तुम्हें इहलोक और परलोक में सुख पाने के लिये सदा ही प्रजावर्ग के हित साधन में संलग्न रहना चाहिये। नृपश्रेष्ठ! भीष्म जी, भगवान श्रीकृष्ण तथा विदुर ने तुम्हें सभी बातों का उपदेश कर दिया है। मेरा भी तुम्हारे ऊपर प्रेम है, इसीलिये मैंने भी तुम्हें कुछ बताना आवश्यक समझा है। यज्ञ में प्रचुर दक्षिणा देने वाले महाराज! इन सब बातों का यथोचित रूप से पालन करना। इससे तुम प्रजा के प्रिय बनोगे और स्वर्ग में सुख पाओगे। जो राजा एक हज़ार अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान करता है अथवा दूसरा जो नरेश धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करता है, उन दोनों को समान फल प्राप्त होता है।[2]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 7 श्लोक 1-15
  2. महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 7 श्लोक 16-23

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धृतराष्ट्र का मृत बान्धवों के शोक से दुखी होना | गांधारी और कुंती का व्यास से मृत पुत्रों के दर्शन का अनुरोध | कुंती का कर्ण के जन्म का गुप्त रहस्य बताने का वर्णन | व्यास द्वारा कुंती को सांत्वना देना | व्यास द्वारा धृतराष्ट्र आदि के पूर्वजन्म का परिचय | व्यास के कहने पर सब लोगों का गंगा तटपर जान | व्यास के प्रभाव से कौरव-पाण्डवों का गंगा नदी से प्रकट होना | परलोक से आये व्यक्तियों का रागद्वेषरहित होकर मिलना | व्यास आज्ञा से विधवा क्षत्राणियों का अपने पतियों के लोक जाना | पुत्रदर्शन पर्व के श्रवण की महिमा | वैशम्पायन द्वारा जनमेजय की शंका का समाधान | व्यास की कृपा से जनमेजय को अपने पिता के दर्शन | व्यास की आज्ञा से धृतराष्ट्र आदि पाण्डवों को विदा करना | पाण्डवों का सदलबल हस्तिनापुर में आना

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