युधिष्ठिर आदि का ऋषियों के आश्रम देखना

महाभारत आश्रमवासिक पर्व में आश्रमवास पर्व के अंतर्गत 27वें अध्याय में वैशम्पायन जी ने युधिष्ठिर आदि का ऋषियों के आश्रम देखने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

युधिष्ठिर आदि का ऋषियों के आश्रम देखना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर उस आश्रम पर निवास करने वाले इन समस्त पुण्यकर्मा मनुष्यों की ऩक्षत्र-मालाओं से सुशोभित वह मंगलमयी रात्रि सकुशल व्यतीत हुई। उस समय उन लोगों में विचित्र पदों और नाना श्रुतियों से युक्त धर्म और अर्थ सम्बन्धी चर्चाएँ होती रहीं। नरेश्वर! पाण्डव लोग बहुमूल्य शय्याओं को छोड़कर अपनी माता के चारों ओर धरती पर ही सोये थे। महामनस्वी राजा धृतराष्ट्र ने जिस वस्तु का आहार किया था, उसी वस्तु का आहार उस रात में उन नरवीर पाण्डवों ने भी किया था। रात बीत जाने पर पूर्वाह्णकालिक नैत्यिक नियम पूरे करके राजा युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र की आज्ञा ले भाइयों, अन्तःपुर की स्त्रियों, सेवकों और पुरोहितों के साथ सुखपूर्वक भिन्न-भिन्न स्थानों में घूम-फिरकर मुनियों के आश्रम देखे। उन्होंने देखा, वहाँ आश्रमों में यज्ञ की वेदियाँ बनी हैं, जिन पर अग्निदेव प्रज्वलित हो रहे हैं। मुनि लोग स्नान करके उन वेदियों के पास बैठे हैं और अग्नि में आहुति दे रहे हैं। वन के फूलों और घृत की आहुति से उठे हुए धूमों से भी उन वेदियों की शोभा हो रही है। वहाँ निरन्तर वेदध्वनि होने के कारण मानो वे वेदियाँ वेदमय शरीर से संयुक्त जान पड़ती थीं। मुनियों के समुदाय सदा उनसे सम्पर्क बनाये रखते थे। प्रभो! उन आश्रमों में जहाँ-तहाँ मृगों के झुंड निर्भय और शान्तचित्त होकर आराम से बैठे थे। पक्षियों के समुदाय निःशंक होकर उच्च स्वर से कलरव करते थे। मोरों के मधुर केकारव, दात्यूह नाम पक्षियों के कल-कूजन और कोयलों की कुहू-कुहू ध्वनि हो रही थी। उनके शब्द बड़े ही सुखद तथा कानों और मन को हर लेने वाले थे। कहीं-कहीं स्वाध्यायशील ब्राह्मणों के वेद-मन्त्रों का गम्भीर घोष गूँज रहा था और इन सबके कारण उन आश्रमों की शोभा बहुत बढ़ गयी थी एवं वह आश्रम फल-मूल का आहार करने वाले महापुरुषों से सुशोभित हो रहा था।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 27 श्लोक 1-26

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आश्रमवास पर्व

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